ज्ञान, तत्त्वज्ञान और सिद्धांत क्या है ? क्या अंतर है ?
ज्ञान, तत्त्वज्ञान और सिद्धांत क्या है ? क्या अंतर है ?
श्री महाराज जी बार बार कहतें हैं कि
" यह सब ज्ञान की बातें हैं ,इसको छोड़ो , केवल तत्त्वज्ञान को और सिद्धांत को हमेशा अपने मस्तिष्क में बैठाए रखो , यह जरूरत के समय सुरक्षा करेगा , तुम्हारी रक्षा करेगा , पतन नहीं होने देगा । "
अब हमको यह अंतर अगर मालुम नहीं है कि कौन ज्ञान है और कौन तत्त्वज्ञान है तो हम किसको छोड़ें , किसको रखें ?
तो ज्ञान जो है वो तमाम तरह का है भौतिक ज्ञान , संसार का ज्ञान । इतिहास, भूगोल , मैथ जीव विज्ञान आदि ज्ञान है , और भौतिक में सिद्धांत भी है जैसे -तमाम तरह का वैज्ञानिक जैसे - न्यूटन , का आर्कमिडीज आदि का सब जानते हैं , यह सब भी ज्ञान है , पर हमको जानना है केवल आध्यात्मिक- ज्ञान , तत्त्वज्ञान और सिद्धांत ।
तो सबसे पहले हमसब यह जानते है कि ज्ञान चाहे वो भौतिक हो या आध्यात्मिक वो हमेशा सत्य होता है , जो असत्य है वो परिकल्पना है , वो मिथ्या है, यह ज्ञान नहीं है इसमें कोई बहस नहीं ।
अब अध्यात्म में जो जानकारी है वो ज्ञान है और आध्यात्म में जो विज्ञान है वो तत्त्वज्ञान है । और आध्यात्म में जो सिद्धांत है जो संतों द्वारा शास्त्रों से मथ कर वनाया गया है हमारे आध्यात्मिक लाभ के लिए , आध्यात्मिक जीवन मुल्यों के लिए वो सिद्धांत हैं ।
तो जैसे भौतिक विज्ञान का सिद्धांत खोजा गया , दिया गया आर्कमिडीज के द्वारा "प्लवन का सिद्धांत" ठीक उसी प्रकार आध्यात्म का वैज्ञानिक -उनके संत जो सिद्धांत का प्रतिपादन किए और जिसका आदेश , उपदेश हमे दिए , जिससे हमारा परम कल्याण हो सके वो सिद्धांत है ।
अब उदाहरण -नारियल का फल - जिस प्रकार नारियल का फल होता है उसका ऊपरी परत अज्ञान है मान लिजिए थोड़ी देर के लिए , तो उसके अंदर का रेशा , वो ज्ञान है परत दर परत , उसके वाद उसके अंदर फल है उजला , जिसको हम खातें हैं तो यह तत्त्वज्ञान है , और उसका पानी सिद्धांत हैं । और किसी नारियल में फुल है वो भक्ति है ।
तो इस उदाहरण से यह समझ आया की ज्ञान में तत्त्वज्ञान , सिद्धांत और भक्ति छुपा रहता है । यह एक साथ रहता है ।
बिना ज्ञान का अज्ञान नहीं जाएगा । और बिना अज्ञान समाप्त हुए तत्त्वज्ञान नहीं होगा । और बिना तत्त्वज्ञान के भक्ति करना असंभव है । असंभव ।
बिना भक्ति किए भगवद् भक्ति "ओरिजनल भक्ति" गुरू द्वारा नहीं मिलेगा ।
अब अच्छे से समझते हैं । एक जीव वो शास्त्र पढ़ लिया और आध्यात्मिक शिक्षक ( विना भगवद् प्राप्त शिक्षक ) से ज्ञान पाया इतिहास की तरह उपर ही उपर वो केवल ज्ञान है उनको तत्वज्ञान नहीं है । तो यह मृत ज्ञान हुआ ।
बिना तत्त्वज्ञान के ज्ञान मृत कहलाता है । क्योंकि तत्वज्ञान ज्ञान का प्राण होता है ।
ज्ञान का उदाहरण- अब वो शिक्षक तमाम प्रोफैशनल प्रवचन कर्ता है बिना प्रैक्टिकल के केवल थ्योरी है उनके पास वो स्पीच देतें हैं जैसे राम की कहानी कह दिया , श्रीकृष्ण की कहानी आदि । मतलब इतिहास की तरह कि दशरथ के पिता का नाम ए था उनके चार पुत्र हुए फिर आगे कथा की तरह कह दिया सभी कांड रामायण का और बोल दिया की भगवान के अवतार थे राम और कृष्ण । फिर और कोई थोड़ा और बोल दिया विष्णु के अवतार थे , फिर पुछा विष्णु कौन थे तो शास्त्रों का शाब्दिक अर्थ बोल दिया विष्णु भगवान थे , पालन कर्ता है यह सब उपर उपर का बात ज्ञान हैं । वो ए भी बोल दिय कि हम आत्मा है । फिर आत्मा क्या है तो बोल दिय परमात्मा का अंश है बस इसके आगे उनको नहीं पता जो तत्वज्ञान है वो नहीं मालुम उनको ठीक ठीक ।
तत्त्वज्ञान का उदाहरण - पर असली संत प्रैक्टिकल संत , भगवद् प्राप्त ओरिजनल जगद्गुरू हीं अपने प्रैक्टिकल अनुभव से तत्त्वज्ञान बता सकते है । क्योंकि तत्वज्ञान थ्योरि की चीज नहीं अनुभव की बात है ।
जैसे आत्मा किस प्रकार से भगवान का अंश हैं । जैसे यह भगवान श्रीकृष्ण के हीं जीव शक्ति विशेष का अंश है । उनके उर्जा का अंश है, छोटा है ,लिमिट है ,जैसे एक लाख वाट का सौ वाट बल वो है और परमात्मा से हीं प्रकाशित है । परमात्मा प्रकाशक हैं , आत्मा प्रकाशित है परमात्मा सर्वशक्तिमान हैं तो कैसें हैं आत्मा अल्पशक्ति धारक कैसे है आदि आदि।
इसी प्रकार भगवान कौन है? परमात्मा और ब्रह्म कौन हैं क्या अंतर है ? क्या क्या शक्ति प्रकट है अलग अलग तीनों में तो यह तत्वज्ञान हुआ ।
भगवान का , उनका लीला का "नौलेज" ज्ञान है पर भगवान के बारे में और उनके उनके लीला विशेष का उद्देश्य , रहस्य , तत्त्वज्ञान है । ठीक उसी प्रकार भगवान का गुण , भगवान का धाम , उनके संत, उनके शक्ति की बिशेष जानकारी तत्वज्ञान है । माया के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान भी तत्वज्ञान है ।
तो रामायण में , गीता में तमाम ज्ञान है और उनमे छुपा तत्वज्ञान है जो मूल है शास्त्रों का । प्राण है शास्त्रों का ।
जैसे और समझ लिजिए क्लियर हो जायगा उदाहरण से गीता में भगवान अर्जुण को उपदेश दिए तो सतरह अध्याय तक अर्जुण पुछता रहा भगवान ज़बाब देते रहे सब प्रकार का ज्ञान जैसे कर्म , धर्म , राजयोग , जप ,तप , यज्ञ , आसन , प्राणायाम , आदि का वो ज्ञान है ।
फिर अंत में अर्जुण जब यह पुछा कि हे माधव आप कौन हैं , मैं कौन हुं , ए सब कौन है , संसार क्या है लोक परलोक क्या है आदि आदि , तभी वो तत्वज्ञान दिय भगवान और अपना वास्तविक स्वरूप भी दिखाय।
तो जो तत्वज्ञान दिया । तत्त्व यानी परम तत्त्व यानी भगवान कौन ? उनका रूप , गुण , शक्ति आदि सहित तमाम बातें तत्वज्ञान हैं । और अंत में सिद्धांत बोल दिए भगवान कि तमाम ज्ञान , कर्म , धर्म , पाप पुण्य की चिंता छोड़ मेरे शरण में मन और बुद्धि से शरण में आ जाओ । तो यह सिद्धांत हुआ ।
अब सिद्धांत - तो भगवान को पाने के लिए उनके संत जो शास्त्रों से मथ कर या स्वयं जो नियम बना दिय साधको के लिए वो सिद्धांत है । जैसे श्री महाराज जी ने चौबिस मुख्य सिद्धांत बतलाए हैं ।जो कितनी बार यहां फेसबुक पर घूमा है सबके सामने से, कुछ उदाहरण तोर पर यह है- जैसे -
किसी के प्रति दुर्भावना ना करो ।
किसी निंदनिय की भी निंदा ना करों , आज का नास्तिक कल का उच्च साधक हो सकता हैं ।
तो इस प्रकार ऐसी तमाम निर्देश जो है वो सिद्धांत हैं ।
और रूपध्यान का विज्ञान तो हमें दिया ही हैं उन्होंने सभी को कि कैसे इसे करना है ।
तो अब जब भी श्री महाराज जी का यह बात सुनिय कि 'तमाम ज्ञान को फेंक दो , तत्वज्ञान मस्तिष्क में बैठा लो और अपने गुरू द्वारा दिया गया , बनाया गया नियम को फौलो करो । और केवल चार बातें याद रखो,और साधना करो ( चार बातें कौन सी है सबको मालुम ही है ) " तो समझ जाइए कि वो किसको छोड़ने के लिए वोले और क्या याद रखने और क्या करने के लिए । फिर हमें कनफ्युजन नहीं होगा । श्री राधे ।
Radhey Radhey
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