भाव शरीर , मेडिटेशन ।।

भाव शरीर के बारे में डिटेल्स  -
 हमारे श्री महाराज जी जब धारा धाम पर थे तो उनके स्थूल शरीर के अंदर सूक्ष्म शरीर या कारण शरीर आदि नहीं था , उनके पंचमहाभौतिक प्राकृत शरीर के अंदर दिव्य शरीर, चिन्मय शरीर था केवल । 

प्रश्न : जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो सूक्ष्म शरीर धारण करती है, तो क्या वह सूक्ष्म शरीर में थोड़े दिन के लिए रह सकती है? या तुरन्त स्थूल शरीर धारण करना पड़ता है?

उत्तर( श्री महाराज जी ) : नहीं, वह हजार युग रहे, रहने को क्या है? सूक्ष्म शरीर तो सदा है सब आत्माओं के, तुम्हारे भी है। स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर - तीन शरीर होते हैं। और इन तीन शरीरों को पार कर जाय तो दिव्य शरीर मिलता है। 
गोलोक, वैकुण्ठ लोक, भगवान का लोक। तो सूक्ष्म शरीर तो already सब के है ही है। बिना शरीर के जीव कभी नहीं रह सकता। बिना शरीर के आत्मा नहीं रहती, बिना आत्मा के शरीर नहीं रहता। इनका अन्यान्य संबंध है।

 खाली स्थूल शरीर जो है उसके बिना आत्मा रह सकती है। लेकिन सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर, कारण शरीर माने संस्कार और सूक्ष्म शरीर जो आँखों से दिखाई न पड़े। आतिवाहिक शरीर भी कहते हैं उसको। तो जैसे ये तमाम योनियाँ हैं भूत, प्रेत, पिशाच आदि, ये सब सूक्ष्म शरीर वाले हैं। देवता भी सूक्ष्म शरीर वाले हैं। वे भी दिखाई नहीं पड़ेंगे आपको material आँख से।

 यहाँ देवता जा रहा है आप नहीं देख सकते। तो ये सूक्ष्म शरीर वाले प्राणी हैं हजारों प्रकार के जिनका शरीर सूक्ष्म है। और वह कोई हजार वर्ष जीवित रहते हैं, कोई दो हजार वर्ष, कोई चार हजार वर्ष। देवता लोग लाखों वर्ष जीवित रहते हैं। तो सूक्ष्म शरीर से जितने दिन कर्म भोग है, अच्छा कर्म है स्वर्ग भोगेगा, बुरा कर्म है तो और गंदी योनियों में जायेगा सूक्ष्म शरीर ले करके। जब वह भोग खत्म होगा तब फिर वह किसी माँ के पेट में उस सूक्ष्म शरीर को लेके जाएगा। 
तब वह स्थूल शरीर पायेगा। तुरंत जन्म होने का सवाल नहीं है किसी का। लेकिन हो सकता है किसी का ऐसे ही हिसाब हो ईश्वरीय राज्य में। उसके कर्म इसी प्रकार के हों कि यहाँ से सूक्ष्म शरीर निकला और दूसरी माँ के पेट में चला गया। ऐसा भी possible है। एक दिन में गया, एक दिन का तो अनुभव था उसका? एक, हजार वर्ष में गया, ऐसा कर्म भोग था। इसलिए इसका decision कर्म पर depend करता है।
:- जगद्गुरु श्रीकृपालु जी महाप्रभु ।।

तो श्री महाराज जी के तत्वज्ञान से स्पष्ट हुआ की आत्मा बिना शरीर के नहीं रह सकती है एक क्षण भी । 
भगवद् प्राप्त होने के बाद कारण शरीर सूक्ष्म शरीर नष्ट हो जाते हैं , ए पंचक्लेश , पंचकोष , आदि सब भष्म हो जाता है और दिव्य शरीर गुरू द्वारा मिलता है। 

संतों के, महापुरुषों के भगवान के शरीर दिव्य चिन्मय होते हैं , जब वो इस धरा धाम पर होते हैं तो उनके स्थूल शरीर के भीतर सूक्ष्म शरीर , कारण शरीर नहीं होता हम जीवों के जैसा , उनके पांचभौतिक शरीर यानि स्थूल शरीर के अंदर सूक्ष्म शरीर के जगह पर दिव्य , चिन्मय शरीर होता है । 
यह उनका शरीर सब प्रकार के मानवीए शरीर के विकारों से सर्वथा मुक्त होते हैं । और जब इस धरा धाम को छोड़कर जाते हैं तो पंचभूत का स्थूल शरीर यहीं छोड़ केवल दिव्य शरीर से अपने धाम लौट जाते हैं ।

अब समझिए भाव शरीर , तो जब हम रूपसाधना करने बैठते है तो भाव शरीर बनाते मन से अपना।
ऐसा भाव शरीर कल्पना के द्वारा बनाते है जिससे दिव्य प्रकाश और दिव्य खुशबु निकल रहा हो , तब हम इसी भाव शरीर में अपने आत्मा को महसूस कर दिव्य लोक जाकर प्रिया प्रीतम जू , गुरूदेव से मिलते हैं , उनकी सेवा करते हैं रूप ध्यान में ।
और जब हमारा अंत:करण शुद्ध हो जाता है तो हमारे गुरूदेव हमारे इसी स्थूल शरीर के अंदर सूक्ष्म शरीर , कारण शरीर , अंत:करण के पाप पुण्य , और पंचकोष पंचक्लेश , त्रिविध ताप आदि को नष्ट कर दिव्य शरीर दे देते हैं हमें , जिससे हमारी आत्मा को एक नया दिव्य शरीर मिल जाता है , इसी प्रक्रिया के साथ भगवद् प्राप्त हो जाता है , हमारी इंद्रियां दिव्य हो जाती है जिससे हम भगवान के मूल स्वरूप का दर्शन , उनका आलिंगन कर पाते हैं , उनकी दिव्य सेवा कर पाते हैं । और फिर उसी दिव्य शरीर से उनके लोक चले जाते हैं ।

तो पहले हमें वही भाव शरीर बना कर रूपध्यानसाधना करनी परती है । और एक हीं भाव शरीर बनाना चाहिए,  चाहे वो सोलह साल का बालक हो या बालिका के रूप का भाव शरीर । भगवद्प्राप्ति के समय गुरू द्वारा वहीं भाव शरीर मिल जाता है साधकों को सदा के लिए । इसलिए भाव शरीर बदलना नहीं चाहिए साधना में । 

तो श्री महाराज जी जब थे स्थूल शरीर में इस धराधाम पर तो उनके स्थूल शरीर के अंदर सूक्ष्म शरीर या कारण शरीर नहीं था , उनके पंचमहाभौतिक प्राकृत शरीर के अंदर दिव्य , चिन्मय शरीर था केवल । श्री राधे ।

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