नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं |
प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||
बड़े बड़े कहलाने वाले सुग्रीव वगैरह भूल गये राम को | नशा कर देता है धन | 
सुइ के छेद से हजारो ऊँटों का गुजरना संभव है परन्तु एक धनी जिसके पास अथाह पैसा हो जाए वो भगवान की आराधना करे , भक्त बन जाए वो असंभव है , महापुरुषों को छोड़ कर | जैसे प्रह्लाद वैगरह सारी पृथ्वी के राजा रहे | 
" श्रीमद वक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काही "
ये लक्ष्मी का मद किसको टेढ़ा नही कर देता , कोई पैदा नहीं हुआ विश्व में जो टेढ़ा न हो जाये |
अपने को असिस्टेन्ट भगवान् मान लेता है जिसके पास ज्यादा पैसा हो जाता है | क्योंकि चारों ओर से लोग घेरे रहता है | डाक्टर साहब भी आ रहे है , मास्टर साहब भी आ रहे है , वकील साहब भी आ रहे है | हाँ सेठ जी ! हाँ सेठ जी ! वो समझता है हम वहुत काबिल है | वो अहंकार बढ़ा देता है | सेठ जी कितनी वेवकुफी की बात बोले जायें लेकिन बड़े-बड़े काबिल लोग जो बैठे हैं वो कहते हैं - वाह वाह !!
मै तो शास्त्र वेद के अनुसार वोल रहा हूँ 
इसलिय जरुरत से ज्यादा पैसा है या आवे दान कर अपना इहलोक और परलोक वना लो | 
खेतों में जितनी जरुरत हो उतनी ही पानी रखो नहीं तो पेड़ सड़ जाऐंगे , उससे हानी हो जाएगी |
ये धन सबसे अधिक विनाशकारक है और बढिया भी है | अगर परमार्थ में लग जाए तो और नही तो यही धन तुम्हारे विनाश का कारण है | 
:- श्री महराज जी


Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।