भक्ति हीन मनुष्य पशु के सामान है वल्कि उससे भी नीचे है

भक्ति हीन मनुष्य पशु के सामान है वल्कि उससे भी नीचे है चाहे वो बड़े से बड़ा ज्ञानी, ध्यानी , योगी तपस्वी , क्युँ न हो | भक्ति विहीन नर पशु समाना |
क्योंकि वह देखो ! भगवान् ब्रह्मा के लिये भी बोल गये -
'भक्तिहीन विरंचि किन होई '
भक्तिहीन अगर ब्रह्मा भी है तो हमको प्रिय नहीं | ब्रह्मा ने जरा सी गड़बड़ की कृष्णावतार में | उनकी सीट छीन ली गई | रोये , गाये , चिल्लाये , अनेक प्रकार के आँसू बहाकर दहाड़ मार कर के ब्रज में आये तो भगवान् ने कहा
" अच्छा जाओ | आइन्दा गड़बड़ न करना , समझे रहना , जाओ | तुमको सीट फिर से दे रहे हैं |
पावर-हाउस से कौन दुश्मनी मोल ले ? और मोल ले तो कैसे प्रकाश में रहे सीधी सी बात है :- श्री महाराज जी ( दिव्य स्वार्थ - ६३ )

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