नामापराध - किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है |
नामापराध - किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है | साधकगण बहुधा अपने आपको तथा अपने महापुरुष को ही सत्य समझते हैं , शेष साधकों एवं महापुरुषों में दुर्भावना -पूर्ण निर्णय देते हैं | यह महान भूल है | इससे नामापराध हो जायगा , जिसके परिणामस्वरुप अपना महापुरुष तथा अपना इष्टदेव भी प्रसन्न न हो सकेगा ; क्योंकि समस्त महापुरुष तथा भगवान् परस्पर एक ही हैं | यदि किसी अन्य महापुरुष से तुम्हारी साधना के अनुकूल लाभ प्राप्त होता है तो उसे अवस्य ग्रहण करना चाहिये | किन्तु , इसमें बड़ी सावधानी की आवश्यक्ता है | अन्यथा कहीं यदि महापुरुष पर दुर्भावना हो गई तो ' एक पैसा कमाया एक लाख गँवाया' वाली कहावत सिद्ध हो जायगी |
भगवान् के समस्त नाम , समस्त गुण , समस्त लीला , समस्त धाम एवं उनके समस्त भक्त परस्पर एक हैं | एक के प्रति भी दुर्भावना करना सभी के प्रति दुर्भावना करना है | इनमें कोई छोटा बड़ा नहीं है | सबमें सबका निवास है और नित्य निवास है काल्पनिक नहीं | आपके नाम में आपका निवास नहीं है किन्तु भगवान् के नाम में भगवान् का निवास है और जहाँ उनका निवास है वहाँ उनके जन का निवास है | जहाँ उनके जन का निवास है वहाँ भगवान् स्वयं रहते हैं इसलिये सबमें एकत्व है | इसलिये इनमें छोटा बड़ा समझना ही सबसे बड़ा कुसंग माना गया है | तो इसको नामापराध कहते है |:- श्री महाराज जी
भगवान् के समस्त नाम , समस्त गुण , समस्त लीला , समस्त धाम एवं उनके समस्त भक्त परस्पर एक हैं | एक के प्रति भी दुर्भावना करना सभी के प्रति दुर्भावना करना है | इनमें कोई छोटा बड़ा नहीं है | सबमें सबका निवास है और नित्य निवास है काल्पनिक नहीं | आपके नाम में आपका निवास नहीं है किन्तु भगवान् के नाम में भगवान् का निवास है और जहाँ उनका निवास है वहाँ उनके जन का निवास है | जहाँ उनके जन का निवास है वहाँ भगवान् स्वयं रहते हैं इसलिये सबमें एकत्व है | इसलिये इनमें छोटा बड़ा समझना ही सबसे बड़ा कुसंग माना गया है | तो इसको नामापराध कहते है |:- श्री महाराज जी
Comments
Post a Comment