जब भगवान लीला संवरण करते है , महापुरुष लीला संगोपान करते है , तो अनुयायियों के पास मार्गदर्शन के लिए क्या बच गया ?

बहुत बहुत महत्वपुर्ण है , श्रध्दालु अवस्य पढ़े , समझें और लाभ लें |
अब तीसरा प्रश्न :- जब भगवान लीला संवरण करते है , महापुरुष लीला संगोपान करते है , तो अनुयायियों के पास मार्गदर्शन के लिए क्या बच गया ?
उत्तर युगलशरण महाराज जी द्वारा :- चलिए , इतिहास में चलते हैं | गौरांग महाप्रभु ने अपनी लीला संवरण से पूर्व अपने प्रमुख अनुयायी रुपगोस्वामी जी को आज्ञा दी थी :-
ग्राम्यकथा न शुनिबे ग्राम्यवार्त्ता न कहिबे |
भाल ना खाइबे , आर भाल न परिबे ||
अमानी मानद हआ कृष्णनाम सदा लबे |
ब्रज राधाकृष्ण - सेवा मानसे करिबे ||
- श्री श्रीचैतन्य चरितामृत
' अपने आपको कुसंग से बचाकर रखना है | ग्राम्य कथा ( संसार की बाते , अरोस परोष की बातें , इधर उधर की बातें ) न सुनना है , न कहना है | साधक बनकर रहना है , बिल्कुल सरल बन कर | भगवन्नाम सदा लेकर मन से राधाकृष्ण की सेवा ! मानसी सेवा करनी है , यह महाप्रभु की आज्ञा थी |
महाप्रभु जाने से पूर्व उन्हे यह भी आज्ञा दी थी - देखो , राधाकृष्ण की भक्ति प्रचार करोगे स्वयं आचरण करके |
राधाकृष्ण की भक्ति पर आधारित ग्रंथ लिखोगे | और भविष्यत् वंशधर के लिए विशाल मंदिर बनवाओगे , जिससे समग्र संसार राधाकृष्ण की ओर आकृष्ट होगा | इन अनुयायियों ने वही किया | स्वयं कड़ी साधना की और साधना से जो अनुभव हुआ , उससे उन्होने ग्रंथ की रचना की | इस प्रकार शक्ति उनके पास आ गई | कहीं ये लोग गए नहीं , लोग आए इनके पास और कहा - हम आप लोगों की सेवा करना चाहते हैं | वृन्दावन में जो विशाल - विशाल मंदिर आप देख रहे हैं - मदन मोहन का मन्दिर , गोविन्द जी का मन्दिर , इन लोगों ने बनवाया |
अब आगे चलिए | जब रामकृष्ण देव चले गए , तो विवेकानंद ने क्या किया ? विवेकानंद के साथ उनके कई भाईलोग थे | यानी गुरुभाई लोग | कोई संवल नही था | रामकृष्णदेव ने कोई आश्रम नही बनवाया था | इन साथियों को लेकर वे एक पुराने मकान में रहने लगे , जहां लोग रहने से डरते थे | भूत रहता है, ऐसा बोलते थे | उन्हे बहुत सस्ते किराये में वह मकान मिल गया था | विवेकानंद साथियों को लेकर अधिकांश समय वहाँ साधना में बैठते थे |
बताया जाता है कि सब लंगोटी पहनते थे क्योंकि कोई साधन नही था | और साधना में इतने तल्लीन हो जाते थे कि जो गुरु भाई रसोई के दायित्व में थे , वे इनके मुख में खाना भर देते थे | इस प्रकार साढ़े छ: साल विवेकानंद ने अपने साथियों को लेकर साधना की | इसके बाद रामकृष्णदेव के सिद्धान्त का प्रचार करने निकल पड़े | और वह इतिहास बन गया |
तो यह इतिहास है कि जब भगवान लीला संवरण करते हैं महापुरुष लीला संगोपान करतें हैं | उनके अनुसायियों को क्या करना चाहिए ?
जीसस ने भी कहा था - जब भगवान आते हैं , महापुरुष आता है , तो उनके साथ सबलोग बारात में आते हैं और बड़े विभोर होकर आनंद में रहते हैं | जब महापुरुष चले जाते हैं वही बाराती लोग उन्ही घड़ीयों को याद करते हुए रोते हैं पुकारते हैं और प्रभु को प्राप्त कर लेतें हैं यह इतिहास हैं
( अत: साधक लोग , उनके अनुयायि खुद साधना तो करते है और अपने प्रभु के सिद्घान्तों का प्रचार प्रसार करते हैं | जिससे प्रचार प्रसार करने वाले को लाभ तो मिलता ही हैं और अन्य लोगों का कल्याण भी होता है , )


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