श्रीकृष्ण - विमुख- संग- त्याग

श्रीकृष्ण - विमुख- संग- त्याग-
" वरं हुतबहज्वालापंजरान्तर्व्येवस्थिति:
न शौरिचिन्ताविमुखो जनसंवासवैशशसम् "
" आलिंगनं वरं मन्ये व्यालव्यघ्रजर्लोकसाम्
न संग : शल्ययुक्ताम् नामदेवैकसेविनाम् "
( विष्णु पुराण )
अर्थात् धधकती हुई आग की ज्वाला-युक्त पिंजड़े में जलना ठीक है , किंतु भगवद्विमुख के संग , महान् से महान् इन्द्रादि लोकों में भी रहना ठीक नहीं , तथा भयंकर साँपों , सिंहों , एवं जोंकों से लिपट जाना अच्छा है, किंतु अनंतानंत देवताओं से भी सेवित भगवद्विमुखों का संग करना ठीक नहीं है |
:- श्री महाराज जी

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