दिव्योपहार

दिव्योपहार 
"यह विश्व चिर ऋणी रहेगा जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का , जिन्होने समस्त विश्व को भक्ति और प्रेम से सराबोर कर वास्तविक दिव्यानंद की प्राप्ति का मार्ग बताया | 
जिन्होने रसास्वादन कराया उस विशुद्ध भगवत्प्रेम का, जिसके लिए समस्त जीव प्रतिपल प्रयत्नशील हैं | जो उनके प्राकट्य काल में उनका सान्निध्य लाभ ले पाय , वे तो धन्य हो ही गए , किंतु परम कृपालु प्रभु ने उनकी भी सुधि ली जो उनके अप्राकट्य के बाद धराधाम पर इस परम दुर्लभ दिव्यानंद की प्राप्ति हेतु मानव जीवन प्राप्त करेंगे |
भक्ति मंदिर , प्रेम मंदिर , भक्ति भवन एवं देश - विदेश में उनके द्वारा स्थापित विभिन्न आश्रमों के माध्यम से हमें उनका सान्निध्य आज भी उसी प्रकार मिलता रहेगा |"


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"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।