जीवन मे दुख है , उसका कारण है और उसका निदान है.
जीवन मे दुख है , उसका कारण है और उसका निदान है.
एक सच्ची कहानी जो इस प्रकार हैं
एक शहर मे एक धनी सेठ था , वह व्यापार द्वारा अच्छा खासा धन संग्रह कर रखा था | धन उसके पास इतना था कि आने वाला उसका चौथा पीढ़ी भी बिना कुछ श्रम किए अपना जीवन बड़े ही संसारिक ऐशो आराम के साथ गुजर वसर कर सकता था |
वह सेठ बड़ा खुश रहता था .
एक दिन एक ज्योतिष ने उसके हाथ के लकिर को पढ़ कर उसके भविष्य के बाड़े मे फल कथन किया और बोला की " आप बड़े भाग्यशाली व्यक्ति है , धन की देवी आप पर अगले तीन पीढ़ी तक मेहरवान रहेगीं, अन्न धन , की कमी आपके अगले तीन पुस्तो को नही होने वाली है " यह सुन कर वह सेठ बड़ा खुश हुआ , अच्छी खासी दक्छिना देकर सेठ ने ज्योतिष से अपने भावी चौथी पीढी के बारे मे पुछा"
ज्योतिष ने बड़ी विनम्रता से वताया कि महाराज आपकी चौथी पीढ़ी को धन का घोर आभाव होगा और वह सन्याष को प्राप्त होगा .
और इसका कोइ निदान नही है , यही आपके चौथी पीढ़ी का प्रारब्ध है. यह कहकर वह चला गया.
जिस दिन से सेठ यह सुना वह चिन्तित रहने लगा . धीरे धीरे वीमार भी रहने लगा , वह ज्योतिष की भविष्यवानी अपने एक नेक मुनीम को छोड़ कर किसी से नही बताया.
उसका मुनीम बहुत सरल तथा श्रीहरि एवं अपने हरिगुरु का परम भक्त था.
काल क्रम मे सेठ वीमार रहने लगा. उसकी पत्नी एवं बच्चे बड़े से बड़े बैद , हकीम , डौक्टर से उसका इलाज करया परन्तु सेठ दिन प्रति दिन और वीमार होता गया.
उसकी यह स्थिति देख कर उसका मुनीम मालकिन के पास जाकर छमा प्रार्थी मुद्रा मे खड़ा हो कर अपने वीमार सेठ को अपने गुरु से , जो संयोग वस कुछ ही कोस की दुरी पर एक पेड के नीचे प्रवचन देने के लिय आय थे, मिलने के लिय विनती किया .
सेठानी और उसके वच्चे झट से तैयार होकर दुसरे ही दिन सुबह दो बैलगाड़ी पर बहुत सारे धन, फल फुल , वस्त्र , अनाज आदि दान सामग्री लेकर उस परम आदरणिय संत के दर्शन कि लालसा लिय उनके स्थान पर पहुँच गया |
संत एक पेड़ के नीचे बहुत सारे जिज्ञाषुओं से घीरे प्रवचन तथा किर्तन मे मगन थे. पास ही एक झोपरी मे उनकी पत्नी कुछ सेवक सेविका की सहायता दोपहर के लिय प्रसाद वना रही थी.
मुनीम के इसारे पर सेठ सेठानी उनके बच्चे एक खाली स्थान पर बैठ कर संत का प्रवचन सुनने लगा तथा प्रवचन समाप्त होने के वाद मुनीम की सहायता से संत को अपनी सारी वाते जो ज्योतिष के द्वारा सुनी थी, वतलाइ, उनसे इसके निदान का मार्ग पुछा और आशिर्वाद मागां.
संत तो होते ही है बड़े दयालु सो उन्होने सेठ को गीता देते हुए कहा की "तुम प्रतिदिन पुरी निष्ठा और विष्वास के साथ गीता पाठ करो और श्री हरि महाप्रभु का ध्यान करो मेरा दावा है तुम इस विकट प्रस्थिति से जरुर निकल जाओगे और तुम्हारे चौथे पीढ़ी तो क्या किसी भी पीढ़ी का कुछ भी बुरा नही होगा."
यह सुन कर सेठ और उसका परिवार बहुत खुश हुआ और सारा धन जो दान के लिय लाया था संत के चरणो मे चढ़ा दिया.
संत थोड़ी देर खामोश थे परन्तु कुछ ही देर मे अपनी पत्नी को आवाज देकर पुछा " अरी वो भाग्यवान जरा कुटीया मे देख कर बताओ तो की खाने पीने की कितनी सामग्री है"
संत की पत्नी - गुरुमां ने वड़ी सौम्य भाव से आकर जवाव दिया " हे नाथ अभी का भोजन तो तैयार है तथा रात्रि मे किसी तरह से काम चल जाएगा"
एक सच्ची कहानी जो इस प्रकार हैं
एक शहर मे एक धनी सेठ था , वह व्यापार द्वारा अच्छा खासा धन संग्रह कर रखा था | धन उसके पास इतना था कि आने वाला उसका चौथा पीढ़ी भी बिना कुछ श्रम किए अपना जीवन बड़े ही संसारिक ऐशो आराम के साथ गुजर वसर कर सकता था |
वह सेठ बड़ा खुश रहता था .
एक दिन एक ज्योतिष ने उसके हाथ के लकिर को पढ़ कर उसके भविष्य के बाड़े मे फल कथन किया और बोला की " आप बड़े भाग्यशाली व्यक्ति है , धन की देवी आप पर अगले तीन पीढ़ी तक मेहरवान रहेगीं, अन्न धन , की कमी आपके अगले तीन पुस्तो को नही होने वाली है " यह सुन कर वह सेठ बड़ा खुश हुआ , अच्छी खासी दक्छिना देकर सेठ ने ज्योतिष से अपने भावी चौथी पीढी के बारे मे पुछा"
ज्योतिष ने बड़ी विनम्रता से वताया कि महाराज आपकी चौथी पीढ़ी को धन का घोर आभाव होगा और वह सन्याष को प्राप्त होगा .
और इसका कोइ निदान नही है , यही आपके चौथी पीढ़ी का प्रारब्ध है. यह कहकर वह चला गया.
जिस दिन से सेठ यह सुना वह चिन्तित रहने लगा . धीरे धीरे वीमार भी रहने लगा , वह ज्योतिष की भविष्यवानी अपने एक नेक मुनीम को छोड़ कर किसी से नही बताया.
उसका मुनीम बहुत सरल तथा श्रीहरि एवं अपने हरिगुरु का परम भक्त था.
काल क्रम मे सेठ वीमार रहने लगा. उसकी पत्नी एवं बच्चे बड़े से बड़े बैद , हकीम , डौक्टर से उसका इलाज करया परन्तु सेठ दिन प्रति दिन और वीमार होता गया.
उसकी यह स्थिति देख कर उसका मुनीम मालकिन के पास जाकर छमा प्रार्थी मुद्रा मे खड़ा हो कर अपने वीमार सेठ को अपने गुरु से , जो संयोग वस कुछ ही कोस की दुरी पर एक पेड के नीचे प्रवचन देने के लिय आय थे, मिलने के लिय विनती किया .
सेठानी और उसके वच्चे झट से तैयार होकर दुसरे ही दिन सुबह दो बैलगाड़ी पर बहुत सारे धन, फल फुल , वस्त्र , अनाज आदि दान सामग्री लेकर उस परम आदरणिय संत के दर्शन कि लालसा लिय उनके स्थान पर पहुँच गया |
संत एक पेड़ के नीचे बहुत सारे जिज्ञाषुओं से घीरे प्रवचन तथा किर्तन मे मगन थे. पास ही एक झोपरी मे उनकी पत्नी कुछ सेवक सेविका की सहायता दोपहर के लिय प्रसाद वना रही थी.
मुनीम के इसारे पर सेठ सेठानी उनके बच्चे एक खाली स्थान पर बैठ कर संत का प्रवचन सुनने लगा तथा प्रवचन समाप्त होने के वाद मुनीम की सहायता से संत को अपनी सारी वाते जो ज्योतिष के द्वारा सुनी थी, वतलाइ, उनसे इसके निदान का मार्ग पुछा और आशिर्वाद मागां.
संत तो होते ही है बड़े दयालु सो उन्होने सेठ को गीता देते हुए कहा की "तुम प्रतिदिन पुरी निष्ठा और विष्वास के साथ गीता पाठ करो और श्री हरि महाप्रभु का ध्यान करो मेरा दावा है तुम इस विकट प्रस्थिति से जरुर निकल जाओगे और तुम्हारे चौथे पीढ़ी तो क्या किसी भी पीढ़ी का कुछ भी बुरा नही होगा."
यह सुन कर सेठ और उसका परिवार बहुत खुश हुआ और सारा धन जो दान के लिय लाया था संत के चरणो मे चढ़ा दिया.
संत थोड़ी देर खामोश थे परन्तु कुछ ही देर मे अपनी पत्नी को आवाज देकर पुछा " अरी वो भाग्यवान जरा कुटीया मे देख कर बताओ तो की खाने पीने की कितनी सामग्री है"
संत की पत्नी - गुरुमां ने वड़ी सौम्य भाव से आकर जवाव दिया " हे नाथ अभी का भोजन तो तैयार है तथा रात्रि मे किसी तरह से काम चल जाएगा"
अब संत ने बड़ी विनम्रता से सेठ की तरफ मुखातिव होकर कहा की आप के इस दान मे से कुछ भी मै स्विकार करने मे असमर्थ हु क्योकि अभी का प्रसाद तैयार है और शाम के प्रसाद के लिय भी उनकी कृपा से है ही. कल की व्यवस्था कल देखेंगे आप मेहरवानी करके ए सभी अपने चौथे पीढी के लिय मेरे तरफ से रख लििजए.
मै आज को छोड़ कल के लिय कुछ भी स्विकार नही करता .
यह सुन कर सेठ बहुत लज्जित हुआ और संत के चरणो मे गिर कर रोने लग गया और कहा की मै अब तो आपही के शरण मे हुं.
आपको कल की चिन्ता नही है और मै तुक्छ सा प्राणी चौथे पीढ़ी कि चिन्ता मे गला जा रहा हुं.
उस दिन से उस सेठ को वैराग्य हो गया तथा स्वस्थ हो हरिगुरु के सेवा को प्राप्त हुआ |
बोलिय राधे राधे
मै आज को छोड़ कल के लिय कुछ भी स्विकार नही करता .
यह सुन कर सेठ बहुत लज्जित हुआ और संत के चरणो मे गिर कर रोने लग गया और कहा की मै अब तो आपही के शरण मे हुं.
आपको कल की चिन्ता नही है और मै तुक्छ सा प्राणी चौथे पीढ़ी कि चिन्ता मे गला जा रहा हुं.
उस दिन से उस सेठ को वैराग्य हो गया तथा स्वस्थ हो हरिगुरु के सेवा को प्राप्त हुआ |
बोलिय राधे राधे
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