संसार में लोग सम्पन्नता के बावजूद इतना दुखी क्यों हैं

एक साधक का प्रश्न :- संसार में लोग सम्पन्नता के बावजूद इतना दुखी क्यों हैं , और हमारा उद्धार कैसे होगा ? मन को कब शांति मिलेगी ? हमारा कल्याण कैसे होगा ? 
मां का उत्तर :- बड़ा अच्छा प्रश्न है तुम्हारा , श्री महाराज जी ने कई बार इस पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि यही बात एक बार शौनकादिक ऋषीयों के द्वारा सुत जी से पुछा गया की कलयुग में लोगों का कल्याण कैसे होगा ? 
सुत जी ने कहा की कलयुग में लोगों की यादास्त बहुत कमजोर होगी , लोगों को भुलने की बीमारी होगी , प्रारब्ध बहुत कमजोर होगा , लोग शारीरिक रुप से कमजोर होंगें , मानसीक शक्ति क्षीण होती जाएगी , लोग पाप और पूण्य में , धर्म अधर्म में फर्क नही समझ पाऐंगें , अच्छे बुरे के ज्ञान का आभाव होगा , लोग तर्क , कुतर्क , वितर्क में समय गवाऐंगें , 
झूठ बोलने , पापादी में लिप्त रहने के कारण आयु क्षीण होती जाऐगी | कुसंगादि के कारण अपना नुकसान ही नुकसान करेंगें | अहंकार विनाश का प्रमुख कारण होगा |
महाराज जी ने समझाया है कि "जीव समझ नही पायेगा कि वह जो कष्ट भोग रहा है वह उसके ही अनन्त जन्मो पल्स वर्तमान जन्मों के बुरे कर्मो का फल है | "
लोग देवी देवता का चक्कर काटते हैं , मन्दीर में जाकर तमाम मनता मनौती मनाते है , जादु मंतर के चक्कर में पड़ते है | बड़े बड़े बाबाओं के चक्कर में पड़कर अपना तमाम तरह का नुकसान पँहुचाते हैं | 
दो चार का प्रारब्ध पुरा हो जाने पर ठीक हो जाता है तो उसके द्वारा ढोल पिटवाते है कि अमुख बाबा बड़े सिद्ध हैं फिर कुछ लोग और इस चक्कर में पड़कर अपना और नुकसान कर बैठते हैं | 
वो समझते है देवी देवता खुश हो गये और हम ठीक हो गए | अरे क्या खाक ठीक हो गए , जिसको भगवान ने उसके प्रारब्ध का फल दिया उसे कौन ठीक कर सकता वो तो भोगने बाद ही ठीक होगा | देवी देवता में ऐसी हिम्मत कहां जो हरि के दिये हुऐ फल को काट सके | ये देवी देवता के अवलम्ब , आधार तो खुद श्रीकृष्ण है | इनकी ऐसी हिम्मत कहां जो अपने व हमारे इष्ट के खिलाफ जाऐं | 
अरे ये देवी देवता भी तभी खुश होते है जब वे देखते है कि ये हमारे इष्ट को ही भज रहा है | ये उनका हीं हो गया | ध्यान दो - श्री कृष्ण का हीं , श्री कृष्ण का भी नहीं | 
अत: देखते हो संसार में तमाम तरह के नए नए रोग बढ़ रहें हैं कीड़े मकोड़े की संख्या बढ़ रही है , लोग काल का ग्रास बन रहें हैं फिर भी नही चेतते , क्योंकि बुद्धि भ्रष्ट हो चूकिँ हैं | शास्त्रों , पुरानों को अपने अपने तरीके से अर्थ निकाल कर अनर्थ के तरफ बढ रहे हैं | पाप में लिप्त है , धन का दुरुपयोग बढ रहा है | 
अत: इन चीजों को समझों , कुसंग मत करो , हरिगुरु के शरण में जाओ , बार बार सिद्धान्तो को पढ़ो , हरिगुरु संग करो , गुरुधाम जाओ , हरिगुरु के बुद्धि से अपनी बुद्धि को जोड़ दो , हरिगुरु के बताऐ मार्ग पर चलों , रुपध्यान करो , हरिगुरु निर्दिष्ट साधना करो , साढ़े छ अरब मनुष्यों मे हम सब बड़भागी हैं कि कृपालु जैसा गुरु मिला , जो स्वयं परम तत्व हैं उनका दामन कभी मत छोड़ों , मन को शांति श्री कृष्ण प्रेम पाने के बाद ही मिलेगी , तर्क , कुतर्क मत करो , अपनी तुक्छ बुद्धि मत लगाओ , ज्यादा से ज्यादा उनके पुस्तकों को पढो , बार बार पढो , उनकी पुस्तके मामुली पुस्तकें मत समझो , यह उनके द्वारा रचित महानतम ग्रन्थ है |



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