दिव्यादेश

दिव्यादेश :- जहां भी जायँ , जैसे भी रहें , हमारे साथ हमारे श्यामसुन्दर हैं , हमारे गुरु हैं | यह फेथ पक्का करो बार-बार बार-बार चिन्तन के द्वारा | बस | फिर ऐसा हो जायेगा | हर समय नशे में रहोगे | हमारे अंदर बैठे हैं वो , अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड नायक , सर्वद्रष्टा , सर्वनियन्ता , सर्वसाक्षी , सर्वसुह्रत् , सर्वेश्वर , सर्वशक्तिमान् , भगवान् | और अन्त:करण शुद्ध हो जाऐगा | - श्री महराज जी


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"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।