जिन्दगी क्या है ?

जिन्दगी क्या है ? जन्म से मृत्यु तक का सफर जिन्दगी है , जिन्दगी साधन है साध्य नहीं ! साधन है हरि का दिव्य प्रेम पाने के लिय | पर
हम मनुष्यों ने कुछ पाया कहां , सिर्फ खोया है | या युँ कहें कि हमने सिर्फ उन्हीं चीजों को प्राप्त करने का प्रयास किया या कर रहे है जो खो जाए | हमने अपनी प्रभु प्रदत् सारी शक्ति , मानव तन , मन , धन उन्हीं चीजों को प्राप्त करने में , हांसिल करने में लगा दी, जो हम खो दें , क्योंकि हम हमेशा नश्वर चीजों के पीछे भागते रहे तमाम उम्र |
तन का स्वरुप बदलता रहा , हम पाते और खोते रहे |
सारी उम्र पाते और खोते रहे , चलनी में पानी भरते रहे , और हम अपने को बहुत समझदार समझते रहे | अन्त मे हाथ लगा सिर्फ शुन्य |
जन्म हुआ , मानव जीवन मिला , शिशु रुप में मां के गर्भ से संसार में आय,
वाल्यावस्था मिली तो शैशवता खो दी , थोड़ा बड़े हुए तो युवावस्था आया , और जब युवावस्था आया तो बचपना खो दी , फिर प्रौढ़ावस्था आया तो युवावस्था खो दी , और जब बुढ़ापा आया तो प्रौढावस्था खो दी | और अन्त में मृत्यु आई तो जिन्दगी खो दी |
अनमोल मानव जीवन ऐसे खोया जैसै मिट्टी का खिलौना |
हम हमेशा नश्वर को पाते रहे खोते रहे ! और एक दिन काल का ग्रास बनते रहे |
भगवान् ने करुणाकर मानव तन दिया , साश्वत सत्य , सत् चित् आनंद को पाने के लिए , श्री हरि को पाने के लिए , उनके कभी न खोने बाले दिव्य प्रेम को पाने के लिय , खुद गुरु रुप में आए , रास्ता दिखाया , हमे चिल्ला चिल्लाकर चेताया ! हमारे लिए तमाम तरह के कष्ठ उठाए , पर हमने ठान लिया है कि हम नही मानेगें |
कितना आश्चर्य है यह ? ये हमारी विडम्वना नही हमारी बदमाशी है |
इसलिय अब भी वक्त है | ठहरो , सोंचों , समझो , जानो , मानो , साधना करो और वो प्राप्त करो जो गुरु तुम्हे देना चाहता है | गुरु तुम्हे देना चाहता है वो अनमोल दिव्य प्रेम जो तुम पाकर कभी नही खोओगे | आगे तुम्हारी मरजी |

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