भगवान् कि उपासना कैसे करें ?

हम साधकों के लिय अति महत्वपूर्ण गाईड लाईन :-
भाव जगत् में भगवान् कि उपासना कैसे करें ?
हमलोग अपने भावानुसार ईश्वर की उपासना करते हैं परन्तु जब साधक भावजगत् में प्रवेश करता है तो उस ईश्वर को ईश्वर नहीं मानता अपितु उसी सर्वशक्तिमान , सर्वाधार , सर्वेश्वर को जो पूर्णमिद: पूर्णमिदम पूर्णमेवावशिस्यते हैं , को अपने ह्रदय में धारण कर लेता है |
एक आधार है भाव और उसी भाव के आधार पर साधक , भगवान की उपासना पांच उपायों में करता हैं , पांच भावों में करता है जो आपलोगों को पता हैं जैसे - शान्त भाव , दास भाव , सख्य भाव , वात्सल्य भाव और माधुर्य भाव ! डीटेल में नही जाउँगीं , क्योंकि आप सभी को पता है |
अब हम सभी चूँकि रागानुगा मार्गी वाले हैं , जो रागात्मिका भक्ति कर चुके हैं , उनके अनुगत होकर रागानुगा भक्ति करते है , जैसा की हमारे श्री महाराज जी ने हमें साधना की पद्धति सिखाएँ हैं |
हमारे श्री महाराज जी ने उन पांच भावो में से हमे माधुर्य भाव का चयन करने का आदेश दिया हैं | और हम लोग माधुर्य भाव में श्री कृष्ण की उपासना करते हैं | लेकिन हमारे श्री महराज जी हमें यहां से भी आगे देखना चाहते हैं | उन्होने हमे बतलाया है , आदेश दिए हैं कि हमे केवल श्री कृष्ण की उपासना नही करनी हैं वल्कि रस की , प्रेम की उपासना करनी है |
प्रेम की उपासना का अर्थ होता है कि हमारे स्वामी और स्वामिनी जूँ को किस प्रकार सुख मिलें , उन्हे आपस में प्रेम व्यवहार में , उनके प्रेम रस में हम किस प्रकार सहायक बनें | हम उनको कैसे सुख पहुंचाए और उनको प्रेम रस में पाकर , देखकर हम सुख का अनुभव करें | किस प्रकार हम उनकी सेवा करें कि उनको सुख मिले |
जब हम अपने गुरु को देखें कि उनको सुख मिल रहा हैं , वे रस से ओतप्रोत हैं | वो प्रेम रस में विभोर हैं तो उनके इस सुख को देखकर हमको सुख मिलता है तो, इसे कहते है , रस की उपासना , प्रेम की उपासना | प्रेम रस की उपासना , जो सबसे उँच्च दर्जे की उपासना है |
इसी को कहते है गोपि प्रेम , निष्काम प्रेम , इसमें हम केवल अपने स्वामीं और स्वामिनी जूँ के ही सुख का ध्यान रखते हैं |
हम श्री कृष्ण को अपना स्वामी , ठाकुर और राधारानी को अपना स्वामिनी मानते हैं ठकुरानी मानते हैं |
अब हमे इससे भी आगे बढ़ जाना है | जिस प्रकार माधुर्य भाव के कई क्लासेज हैं उसी प्रकार प्रेम रस के उपासना के भी कई क्लासेज हैं |
हमें आगे बढ जाना है और राधारानी , हमारी ठकुरानी की जो स्वयं प्रेम रस का मूर्तिमान रुप है कि, उपासना करनी है |
भाव :- "मै हूँ सखी किशोरी जूँ के नाता मम् बरसाने से "
" कृष्णेण आराध्यते इति: राधा "
जिसकी उपासना स्वयं ब्रह्म करते हैं सेवा करते हैं , अपने मुकूट से उनके मार्ग को बुहारते हैं | उनके चरणों को दवाते हैं | उनकी चाकरी करते हैं , हमें उनकी उपासना करनी है |
जबतक हम अपने राधारानी की उपासना नही करेंगें जो स्वयं प्रेम शक्ति हैं , हमारा काम नही बनेगा |
हमें लक्ष्य नही मिलेगा | प्रेम नही मिलेगा | हमे कृपा नही मिलेगी !
भगवान तो न्यायी हैं वो स्वयं दया नही कर सकते , कृपा नही कर सकते , क्योकि वो तो हमारी पात्रता देखतें हैं | वो जल्दी नही रीझते !
तो हमें कृष्ण प्रेम पाना है तो राधा रानी की उपासना करनी पड़ेगी |
और राधारानी की उपासना से कृष्ण की उपासना स्वत: हो जाएगी | अपने आप हो जाएगी , पक्का है |
नारदपंचरात्र में बतलाया गया है कि यदि कोई साधक शुद्ध ह्रदय से , शुद्ध भाव से निष्काम होकर , राधा प्रेम में अतिव्याकुल होकर , तरप कर जैसे हीं ' रा ' कहता है तो श्री कृष्ण उस साधक के पीछे पीछे चलने लगते हैं ! सोंचो चलने लगते है | और जैसे ही वह साधक ' धा ' कहता है तो वो कृपा कर देतें हैं | लुट जाते हैं , विक जाते है विन मोल , विन मागें प्रेम दान देते हैं | सबकुछ न्योछावर कर देतें हैं | मुट्टी में हो जाते है उसके , फिर वो पात्रता वात्रता कुछ नहीं देखते |
अत: जो राधा नाम अति व्याकुल होकर , विभोर होकर लेता है उसकी मुट्टी में हो जाते हैं श्री कृष्ण |
इसलिय तो महाराज जी ने लाईन बनाई है :-
' जा पे टुक कृपा करे सुकुमारी '
जिसपे थोड़ी भी कृपा ठकुरानी कर देती हैं उसके पीछे पीछे वनवारी डोलने लगते हैं |
और सिर्फ राधारानी के दरवार में ही ऐसी दया है कि वो साधकों के अधिकारीत्व को नही देखतीं हैं |
" कोउ हो या न हो अधिकारी , सबपे कृपा करें प्यारी |'
राधारानी तो अवढ़रदानी हैं | वो कहती हैं कि मैं तो अपने शिशु की योग्यता , पात्रता नही देखतीं |
जल्दी पिघल जाती हैं अपने शिशु की व्याकुलता देख कर |
संसार में तो हम सभी पात्रता देखकर दोस्ती करते हैं | एक जज चपरासी से दोस्ती नही करता | हम सभी स्टेट्स देख , योग्यता देखकर मैत्री करते हैं |
पर भावजगत में साधना करते हुए उनके दरवार में जब जाओगे तो शिशु बनकर जाना होगा | बालक बनकर भी नही , और शिशु की क्या योग्यता होती है ! कुछ भी नही , अत: शिशु बन कर जब उनके दरबार में जाकर उनको पुकारोगे तो वो योग्यता , पात्रता नही देखतीं हैं और तुरत पिघलकर कृपा कर देती हैं | वो दीन पर , पतित पर अकिंचन पर जिसको कोई सम्मान नही देता , सब अपमान करते है संसार में उसका और वो वास्तव में शुद्ध ह्रदय से यह रियलाईज करता है कि मैं दीन हीन हूँ पतित हूँ , तुमको छोड़कर मै कहां जाऊँ माँ , पर विशेष कृपा यानि तुरंत कृपा कर देती है | बस हमको अनन्यता याद रखनी हैं
तुम चाहो तो राधा रानी की उपासना करो , या उनके युगल स्वरुप का या राधारानी और श्री महाराज जी का या युगलसरकार , श्री महाराज जी
और अम्मा का | या रामसीता लक्षुमण और हनुमान जी का ! सब अनन्यता है |
जितने भगवद् एरीया में मन लगाओगे सब अनन्यता है |
पर माया एरीया वाले को भी ह्रदय में रखोगे तो अनन्यता समाप्त |
:- मां रासेस्वरी मां

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