आज संसार में हर कोई दु:खी है | सुखी कोई नही केवल संतों को महापुरुषों को छोड़ कर !

चलो चलें हर कदम हरिगुरु की ओर, आनंद की ओर - आज संसार में हर कोई दु:खी है | सुखी कोई नही केवल संतों को महापुरुषों को छोड़ कर ! 
हममे से प्रत्येक व्यक्ति अपने संसारिक दुख और सुख का कारण एक दुसरे को मानता हैं | जबकी हम अपने ९९% संसारिक सुख और दु:ख का कारण स्वयं हैं | लेकिन अज्ञानता बस हम अपने दु:ख का कारण दुसरे को मानते हुए आजीवन सुख की तलाश में तमाम उम्र गुजार देते हैं ! यह जानने की कभी कोशिश ही नही करते की ये दु:ख जो हम झेल रहें है उसका कारण बाहर कहीं नही बल्कि हमारे अंदर है | 
कोई इसलिय दु:खी है कि उसको संतान नही है | और जिसके पास संतान है वो संतान से दु:खी हैं | कोइ इसलिए दुखी है कि उसकी शादी नही हो रही है | और जिसकी शादी हो गई वो पति पत्नी से और पत्नी पति से परेशान है | कोई इसलिय दु:खी है कि उसको रोजी रोजगार नही है | और जिसके पास रोजी रोजगार है वो रोजी रोजगार से दु:खी है | कोइ दु:खी है क्योंकि उसके पास धन नही है तो हर धनवान इसलिए दु:खी है कि इतना धन के बाद भी उसके जीवन में शांति और सुकुन के दो पल मयस्सर नही हैं | सोहरत वाला अपने सोहरत को वनाऐ रखने के लिय परेशान है | तो कोई सोहरत पाने के लिये परेशान हैं | 
अत: इस संसार में कोइ सुखी नही है | अगर कोइ कहता है कि हम सुखी है तो वो दुसरे को दिखाने के लिए ऐसा कहता हैं | 
कोई अमीर अपने से गरीब के सामने सुखी होने का ढ़ोंग करता है | और जैसे ही उसे अपने से अमीर मिलता है वो ऐसे दुबकता है जैसे एक कमजोर जानवर अपने से मजबुत जानवर के एरिया में जाकर दुम दवाकर उसका बर्चस्व स्वीकार कर लेता है | 
हरेक अधिकारी अपने से नीचे के क्रमचारी के सामने सीना तान कर चलता है | परन्तु जैसे ही उसके सामने अपने से उँचा अधिकारी आता है तो वो अपनी कुर्सी छोड़ कर सैल्यूट दागता हैं | यही है जमीनी सच्चाई ससांरिक सुख की और दु:ख की | 
आज हम लोगों की बड़ी दयनिय स्थिति हैं | संसार में एक पल में अपने अनुकुल परिस्थिति ( अपने पसंद की बातो का , सोंच के अनुसार ) को पाकर खुश और दुसरे पल ही मुड औफ ! 
अत: संसार मे न सुख है न दु:ख , मानव जीवन हमे संसारिक मौज मस्ती , काल्पनिक सुख और दुख मे जीने के लिय नही मिला है | 
कड़ोड़ो कल्पो तक अनंत योनियों में भटकने के बाद हम पर हरि की करुणा हुई , दया हुई और उन्होने तरस खाकर नर देह दिया हमें , जिसके द्वारा हम अपने वास्तविक लक्ष्य को , वास्तविक परलौकिक सुख को , परमानंद को , कभी न कम होने बाला सुख को प्राप्त कर सकें | 
हमें पल पल सोंचना चाहिऐ | हमे संसार मे उतना ही व्यवहार करना चाहिऐ जिससे हमारे शरीर का काम चल जाऐ | 
ज्यादा से ज्यादा स्नेह हमें हरि से हरि गुरु से करना चाहिऐ | हमें मन के वहकावे मे नही आना चाहिए , मन के अनुकुल मनमानी नही करना चाहिए , बल्कि मन से कार्य करवाना चाहिए , वो भी हरि निमित्त , मन के सुख के लिये नही , बल्कि हरि और गुरु के सुख के लिये , मन तो बहुत पापी है इसके सुख के लिये कार्य करोगे तो यह गर्त में ले जाऐगा , यह वहां धकेल देगा जहां सुख का लवलेश भी नही है |अत: मन के बस में मत रहो , मनमानी मत करो , हरि के सुख के लिए सोंचो , हरि के सुख के लिये सोंचोगे, करोगे तो तुमको भी आनंद मिलेगा , उतने मात्रा में जितना तुम हरि से प्रेम करोगे | तुमको भी प्रेम का अनुभव होगा , अवस्य होगा | यह जीवन ही नही तमाम जीवन कभी न समाप्त होने बाले आनंद से भर जाऐगा | 
अगर हरि से गुरु से प्रेम कर रहे हो और अनुभव नही हो रहा है तो सच मानो तुम्हारे प्रयास में कमी है | विस्वास में कमी है |और जोड़ लगाओ , प्रयास बढ़ाओ , दुगुना करदो , देखो कम्पटिशन में सफलता प्राप्त नही करने पर कैसे जोड़ लगाते हों ? आठ घण्टे से बढ़ाकर दस घण्टा पढ़ाई करते हो की नही , इसी प्रकार इधर भी प्रयास बढ़ा दो , दो गुणा कर दो , ज्यादा से ज्यादा हरि कथा , गुण गाण करें , रो कर याचना करें , हरि के सुख के लिये सोंचे , हरि के सुख के लिये काम करें | प्रयास जरुर सफल होगा | कमी हममे है | हमारे प्रयास में हैं | उनके कृपा में कोइ कमी नही , मानो गुरु की बात , डट जाओ , 
:- प्रवचन सार से मां के  


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