चौथा प्रश्न - हम लोगों को अब क्या करना है ?
चौथा प्रश्न - हम लोगों को अब क्या करना है ?
उत्तर - हम लोगों को अब वही करना है , जो सबने किया है | जो रुप गोस्वामी ने किया है | सनातन गोस्वामी ने किया है | स्वामी विवेकानंद ने किया है | जो जीसस ने सिखाया है | लीला संगोपान से पूर्व हमने माया शक्ति का सामान देकर प्रभु की सेवा की | धन आदि देकर ! जीव शक्ति का भी सामान देकर हम लोगों ने सेवा की | लोगों को उनके पास लाकर ! अब समय आ गया हैं - पराशक्ति का ! जो प्रभु को सबसे प्रिय है , वही शक्ति दे कर हम उनकी सेवा करेंगें | निरंतर आँसु बहा - बहाकर उनको रिझाएँगें क्योंकि जब प्रभु रहते है, एकदेशिय , एक स्थान पर दिखाई पड़ते हैं | जब प्रभु चले जाते हैं , सर्वत्र उनका अनुभव होता है | सर्वत्र उवका अनुभव होगा , जितनी मात्रा में हम साधना करेंगें | पुराने लोगों से जानने में आता है , पहले महाराज जी केवल कीर्तन कराते थे
| और उस दौरान कोई किसी से बोलता नहीं था | उनलोगों की इतनी रुचि थी नाम में कि सिद्धान्त की आवश्यकता ही नही पड़ी |
ये प्रारंभिक साधक थे | सबस् बढ़िया साधक ! नाम में प्रगाढ़ रुचि ! बाद में जो साधक आए , उन्होने नाम में इतनी रुचि नहीं ली | इसलिय महाराज जी ने सिद्धान्त समझाया | सिद्धान्त सुनने के बाद नाम में रुचि आई , फिर आगे बढ़ गए | लेकिन हमलोग लिला के उस चरण में आए थे जब हम लोगों की नाम में स्वाभाविक रुचि नही थी | और सिद्धान्त सुनकर ह्रदय में क्रांति हो , ऐसी स्थिति भी नहीं थी | इसलिय हमलोग अनाधिकारी हैं | हम अनाधिकारियों को अधिकारित्व प्रदान करने के लिए प्रभु ने सेवा दी | सेवा करके अन्त:करण थोड़ा थोड़ा शुद्ध हुआ , सिद्धान्त भीतर गया | सिद्धान्त भीतर जाने के बाद नाम में थोड़ी-थोड़ी रुचि हुई , तो प्रभु ने अधिकारित्व दिया | अभी समय है | जिस प्रकार रुप सनातन गोस्वामी ने किया , जिस प्रकार जीसस ने सिखाया , जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने किया ! हम लोग उसी प्रकार साधना करेंगें | प्रगाढ़ साधना ! और सब समय प्रभु को ढूँढ़ेगें | उससे हमारा अन्त:करण शुद्ध होगा | तभी वे ताकत देंगें , उनका काम करने के लिए | चाहे प्रचार का कार्य हो, चाहे आश्रम का कार्य हो , चाहे समाजिक कार्य हो |
आजतक विश्व के आध्यात्मिक इतिहास में किसी भगवान के अवतार , किसी सन्त ने जो सार्वजनिक रुप में जो चीजे नही दी थी , हमारे प्रभु ने वही जगत को दी | जगत अनंत काल तक उनका ऋणी रहेगा |
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि रुप गोस्वामी - सनातन गोस्वामी तो उनके पार्षद थे , हम जैसे पतितों को भी प्रभु ने इतना उँचा सम्मान दिया | इतनी कृपा है आशा है उनकी , अब हमलोग बार बार आत्मनिरीक्षण करेंगें , आत्मविश्लेषण करेंगें | हम लायक नही हैं | फिर भी उनकी हमसे आशा है | हम जरुर इस आशा को साकार रुप देंगें और महाप्रभु जी का जो स्वप्न था की सम्पूर्ण विश्व में भगवन्नाम का प्रचार हो , यही हम करके अपने प्रभु को सुख देंगें |
यही हम सभी का संकल्प होना चाहिए - युगलशरण जी
उत्तर - हम लोगों को अब वही करना है , जो सबने किया है | जो रुप गोस्वामी ने किया है | सनातन गोस्वामी ने किया है | स्वामी विवेकानंद ने किया है | जो जीसस ने सिखाया है | लीला संगोपान से पूर्व हमने माया शक्ति का सामान देकर प्रभु की सेवा की | धन आदि देकर ! जीव शक्ति का भी सामान देकर हम लोगों ने सेवा की | लोगों को उनके पास लाकर ! अब समय आ गया हैं - पराशक्ति का ! जो प्रभु को सबसे प्रिय है , वही शक्ति दे कर हम उनकी सेवा करेंगें | निरंतर आँसु बहा - बहाकर उनको रिझाएँगें क्योंकि जब प्रभु रहते है, एकदेशिय , एक स्थान पर दिखाई पड़ते हैं | जब प्रभु चले जाते हैं , सर्वत्र उनका अनुभव होता है | सर्वत्र उवका अनुभव होगा , जितनी मात्रा में हम साधना करेंगें | पुराने लोगों से जानने में आता है , पहले महाराज जी केवल कीर्तन कराते थे
| और उस दौरान कोई किसी से बोलता नहीं था | उनलोगों की इतनी रुचि थी नाम में कि सिद्धान्त की आवश्यकता ही नही पड़ी |
ये प्रारंभिक साधक थे | सबस् बढ़िया साधक ! नाम में प्रगाढ़ रुचि ! बाद में जो साधक आए , उन्होने नाम में इतनी रुचि नहीं ली | इसलिय महाराज जी ने सिद्धान्त समझाया | सिद्धान्त सुनने के बाद नाम में रुचि आई , फिर आगे बढ़ गए | लेकिन हमलोग लिला के उस चरण में आए थे जब हम लोगों की नाम में स्वाभाविक रुचि नही थी | और सिद्धान्त सुनकर ह्रदय में क्रांति हो , ऐसी स्थिति भी नहीं थी | इसलिय हमलोग अनाधिकारी हैं | हम अनाधिकारियों को अधिकारित्व प्रदान करने के लिए प्रभु ने सेवा दी | सेवा करके अन्त:करण थोड़ा थोड़ा शुद्ध हुआ , सिद्धान्त भीतर गया | सिद्धान्त भीतर जाने के बाद नाम में थोड़ी-थोड़ी रुचि हुई , तो प्रभु ने अधिकारित्व दिया | अभी समय है | जिस प्रकार रुप सनातन गोस्वामी ने किया , जिस प्रकार जीसस ने सिखाया , जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने किया ! हम लोग उसी प्रकार साधना करेंगें | प्रगाढ़ साधना ! और सब समय प्रभु को ढूँढ़ेगें | उससे हमारा अन्त:करण शुद्ध होगा | तभी वे ताकत देंगें , उनका काम करने के लिए | चाहे प्रचार का कार्य हो, चाहे आश्रम का कार्य हो , चाहे समाजिक कार्य हो |
आजतक विश्व के आध्यात्मिक इतिहास में किसी भगवान के अवतार , किसी सन्त ने जो सार्वजनिक रुप में जो चीजे नही दी थी , हमारे प्रभु ने वही जगत को दी | जगत अनंत काल तक उनका ऋणी रहेगा |
सबसे आश्चर्य की बात यह है कि रुप गोस्वामी - सनातन गोस्वामी तो उनके पार्षद थे , हम जैसे पतितों को भी प्रभु ने इतना उँचा सम्मान दिया | इतनी कृपा है आशा है उनकी , अब हमलोग बार बार आत्मनिरीक्षण करेंगें , आत्मविश्लेषण करेंगें | हम लायक नही हैं | फिर भी उनकी हमसे आशा है | हम जरुर इस आशा को साकार रुप देंगें और महाप्रभु जी का जो स्वप्न था की सम्पूर्ण विश्व में भगवन्नाम का प्रचार हो , यही हम करके अपने प्रभु को सुख देंगें |
यही हम सभी का संकल्प होना चाहिए - युगलशरण जी
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