सब भक्ति के अधिकारी हैं
भक्ति तो जननी है | इसके बच्चे हैं - सब ज्ञान वैराग्य वगैरह |इसलिये भक्ति को किसी और की आवश्यकता नहीं |
'भक्ति स्वतंत्र सकलसुख खानी '
और भक्ति में सार्वत्रकिता भी है | सर्वत्र किसी के लिये कोई प्रतिबन्ध नहीं कि यह भक्ति नही कर सकता | कर्म में कायदे कानून , ज्ञान में बहुत बड़े कायदे कानून , लेकिन भक्ति में कुछ नहीं |
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: |
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रोस्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ||
( गीता ९-३२)
अहो बत श्र्वपचोऽतो गरीयान् यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम् |
तेपुस्तपस्ते जुहुवु: सस्नुरार्या ब्रह्मानूचुर्नाम गृणन्ति ये ते ||
( भागवत ३-३३-७)
सर्वधर्मबहिर्भूत: सर्वपापरतस्तथा |
मुच्यते नात्र संदेहो विषणोर्नामानुकीर्तनात् ||
( वैशम्पायन संहिता )
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रोस्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ||
( गीता ९-३२)
अहो बत श्र्वपचोऽतो गरीयान् यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम् |
तेपुस्तपस्ते जुहुवु: सस्नुरार्या ब्रह्मानूचुर्नाम गृणन्ति ये ते ||
( भागवत ३-३३-७)
सर्वधर्मबहिर्भूत: सर्वपापरतस्तथा |
मुच्यते नात्र संदेहो विषणोर्नामानुकीर्तनात् ||
( वैशम्पायन संहिता )
कैसा भी हो , सब भक्ति के अधिकारी हैं -
सर्वेऽधिकारिणो ह्मत्र | ( पद्मपुराण)
अरे ! राम न कह सकने वाला वाल्मीकि भी अधिकारी बना दिया गया |
'मरा' 'मरा' कह करके महापुरुष हो गया |
'मरा' 'मरा' कह करके महापुरुष हो गया |
तो भक्ति में कोई अधिकारित्व की शर्त नहीं है -
पुरुष नपुंसक नारि नर, जीव चराचर कोय |
सर्वभाव भज कपट तजि, मोहिं परम प्रिय सोय ||
सर्वभाव भज कपट तजि, मोहिं परम प्रिय सोय ||
'भक्तिवन्त अति नीचहु प्रानी ' कोई हो | जीव हो , बस मेरा दास है | सबको अधिकार है | मेरे सब बच्चे हैं लायक , नालायक , कोई भी हो | सदाचारी , दुराचारी दोनो में भक्ति | साधक , सिद्ध दोनो में भक्ति | मुक्त मुमुक्षु दोनों मे भक्ति | विरक्त , आसक्त दोनो में भक्ति | समस्त स्थानों में भक्ति सर्वत्र भक्ति | सबको अधिकार एक सा |
लेकिन भक्ति मन से हीं करनी होगी , और शरणागत् होना होगा सदा के लिये | - श्री महाराज जी
लेकिन भक्ति मन से हीं करनी होगी , और शरणागत् होना होगा सदा के लिये | - श्री महाराज जी
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