राग , द्वेश
" जहां राग हो, द्वेश हो , घृणा हो , ईश्या हो , लोभ हो , मोह हो , नफ़रत का राज हो , क्रोध पलता हो , अहंकार हो , क्रोधी रहता हो , वहां से दुर रहना ही वेहतर है , वहां से पलायन करना ही वेहतर है , नही तो अनुकुल परिस्थिति प्राप्त कर , ऐ सारे दोष अपना काम कर जाते हैं जो हमारे अंदर दमित रहते है उसी प्रकार जैसे आग की एक चिनगारी सुखी लकड़ी प्राप्त कर भड़क जाती है | ऐ सब दोष हम सभी में भगवद्प्राप्ति तक रहते है अत: कुसंग और कुसंगी से दुर रहना ही वेहतर है " :- प्रवचन से ( मार्च २०११)
Comments
Post a Comment