राग , द्वेश

" जहां राग हो, द्वेश हो , घृणा हो , ईश्या हो , लोभ हो , मोह हो , नफ़रत का राज हो , क्रोध पलता हो , अहंकार हो , क्रोधी रहता हो , वहां से दुर रहना ही वेहतर है , वहां से पलायन करना ही वेहतर है , नही तो अनुकुल परिस्थिति प्राप्त कर , ऐ सारे दोष अपना काम कर जाते हैं जो हमारे अंदर दमित रहते है उसी प्रकार जैसे आग की एक चिनगारी सुखी लकड़ी प्राप्त कर भड़क जाती है | ऐ सब दोष हम सभी में भगवद्प्राप्ति तक रहते है अत: कुसंग और कुसंगी से दुर रहना ही वेहतर है " :- प्रवचन से ( मार्च २०११)

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"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।