प्रेम की परिभाषा आसान नही हैं | संसारिक प्रेम , प्रेम नही स्वार्थ है | इसमे स्वार्थ पुरा नही होने पर द्वेश की संभावना छुपी हैं |


प्रेम की परिभाषा आसान नही हैं | संसारिक प्रेम , प्रेम नही स्वार्थ है | इसमे स्वार्थ पुरा नही होने पर द्वेश की संभावना छुपी हैं | 
पर नि:स्वार्थ प्रेम इतना आसान नहीं तो मुश्किल भी नहीं , पर यह तभी हो सकता है जब हम केवल देना और बस सिर्फ देना सिख जाएँ और केवल देने में ही आनंद महसुस करें |
इसको समझने के लिए एक हिरण और हिरणी की कहानी मां ने अपने प्रवचन में सुनाई थी :-
एक हिरण और हिरणी जगंल में प्यास से कई दिनो से तरप रहे थे | सुखा पड़ा था | नदी नाले तालाब सुख चुके थे | प्यास से दोनों का बुरा हाल हो चला था | दोनों को प्यास के मारे दम निकलने वाला था | इतने में किसी मुसाफिर के द्वारा छोड़े हुए फुटे मटके मे केवल चार धुँट पानी दोनो को एक पेर के नीचे परा मिला |
परन्तु दोनो ने एक दुसरे को यह कहते हुए दम तोर दिया की पहले तौं पी तो पहले तौ पी !
यह है प्रेम | प्रेम में प्रेमी अपने लिये नही सिर्फ प्रेमास्पद के सुख के लिये सोचता है | अपने जान की भी परवाह नही करता | महराज जी हमे ऐसा प्रेम हमे हमारे ईष्ट से करने को कहते है |
:- हरि बोल

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