भगवान् को भक्ति प्रिय है .

कोई भी धर्म हो अगर वो श्रीकृष्ण में प्रेम नहीं उत्पन्न करता | अगर श्रीकृष्ण में अनुराग नहीं पैदा करता वो धर्म नहीं अधर्म है | फेंक दो उसको कूड़ा खाने में | भगवान् को धर्म प्रिय नहीं है | भगवान् को भक्ति प्रिय है
चैलेंज है भगवान् का, १२ गुणों से युक्त भी ब्राह्मण हो , १२ गुणों से युक्त ब्राह्मण अगर दिया लेके ढूँढों तो पूरे पांच अरब में नहीं मिलेगा , वो १२ गुण क्या होते हैं आपको बताये जायें तो आँखें खुली रह जायें ऐसे ही लेकिन अगर ऐसा हो भी जाय तो भी वो चाण्डाल श्रेष्ठ है जो श्रीकृष्ण भक्ति करता है | :- श्री महाराज जी ( रास पंचाध्यायी - पेंज ५६ )

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नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।