अक्षय तृतीया का क्या महत्व है ?




ब्रज गोपिका धाम ,उड़िसा में महाराज जी के प्रबचन का विडियो सुना , देखा , महराज जी से एक साधक ने कभी दो जिज्ञासा की थी समझाने के लिये की :- एक अक्षय तृतीया का क्या महत्व है ? दुसरा हम सभी साधक गण महराज जी के आश्रम में रहते हैं स्वादिष्ट खाना खाते हैं जिसका लाभ हानी क्या हैं ?
महराज जी ने बड़े सरल तरीके से समझाया है जो मै आपसे शेयर करता हूँ |
पहले सवाल पर महाराज जी ने कहा , समझाया :-
युँ तो जितने भी त्योहार बनाए गए है उसका बहूत महत्व है हर धर्म में , और वो की केवल सभी अपने इष्ट को सुख पहूँचाने के लिय वनाए गये है | उनकी कृपा प्राप्त करने के लिये वनाए गये हैं , परन्तु हम लोग नासमझी से उन सभी को अपने तरीके से गलत अर्थ लगा कर गलत तरीके से काल क्रम के अनुसार मनाने लगे , यह गलत है | हमे हर पर्व त्योहारों के उसके वास्तविक स्वरुप और उदेश्य को समझ कर मनाना चाहिये |
महराज जी ने कहा की अक्षय तृतीया का काफी महत्व है | यह पर्व इसलिय मनाया जाता है कि लोग इस दिन यथा शक्ति पात्र को दान करें जिससे तुम्हारा इहलोक ही नही परलोक सुधरे , दरिद्रता न मिले कभी , हर जनम में मनुष्य का शरीर ही मिले , जिससे कर्म करके , साधना करके अपने इष्ट को प्राप्त करें समृद्धी मिले , हरि में अनुराग बढ़े | अक्षय तृतीया पर महराज जी ने कहा की सोने के दान को उत्तम कहा गया है शास्त्रों में जिससे हमारा परलोक , इहलोक सब बने | महाराज जी ने कहा की मै भी दान करता हूँ | कल हम भी अक्षय तृतीया पर सात कन्याओं को बुलाये है | उनको खाना खिलायेंगें और सभी को सोने का चैन पहनायेंगें | महराज जी ने हसते हुये कहा की अरे भइ हमें भी तो परलोक बनाना है सेवा करनी है हरि का |
पर लोग आजकल अक्षय तृतीया पर सोना खड़ीदते हैं | दान नही करते | सोचते सोना खड़िद कर तिजोड़ी भरने से लक्षमी आयेगी | अरे लक्षमी तो नही आएगी हां हमारा कल्यान भी नही होगा | हम गलतफमीं मे न रहें | अक्षय तृतीया पर सोना दान करे वो भी सतपात्र को , कुपात्र को नही | और जो सोना दान करने की सामर्थ नही रखते वो रुप्या पैसा , अनाज भी दान कर सकते हैं उनको भी दान का फल अवश्य मिलेगा | हां दान केवल पात्र को हि करना है सही जगह दान करना हैं दिखावे के लिय नही करना है | नाम के लिये नही करना है कि लोग वाह वाह कहें , नाम वाम के लिये दान कर हल्ला करोगे तो दान का फल जीरो बट्टे सौ |
अब दुसरे प्रश्न का जबाब देते हुए महाराज जी ने कहा की आप लोग आश्रम में आते हैं रहते हैं खाते पीते हैं | मै तो एक श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ट ब्राह्मण हूँ तो कुछ लोगों ने मतलव लगाया की उनको पाप लगेगा !
महाराज जी ने हसते हूए कहा की अरे भाइ देखोऽऽऽ मैं तो कमाता वमाता नही हूँ | ऐ सब तो आपलोगों का ही है | आपलोगों का दिया हुआ आपही लोगों के सेवा में लगता रहता है | मेरे पास तो कुछ भी नही है | जो सब जो देख रहें है ये सब आपही लोगों का आपही की सेवा में लगरहा है | फिर भी अगर आपको लगता है कि श्रोत्रिये ब्रह्मनिष्ट ब्राह्मण का खाने से पाप लगेगा जो की शास्त्रानुसार सही भी है तो जाने के समय यथा शक्ति अपनी इक्छानुसार दान खाते में दान दे दिजिये ! इससे तो आपहिका कल्यान होगा | आपका ही परलोक बनेगा |
ऐसे है हमारे प्यारे गुरुदेव , वोलिये हमारे हम सबके प्रिय गुरुदेव की जय  


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