यह मनुष्य का शरीर बार बार नहीं मिलता ।
मिलत नहिं नर तनु बारम्बार ।
कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार ।
उलटो टांगी बाँधि मुख गर्भहिं, समुझायेहु जग सार ।
दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नंदकुमार ।
भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार ।
यह 'कृपालु' नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार ।
कबहुँक करि करुणा करुणाकर, दे नृदेह संसार ।
उलटो टांगी बाँधि मुख गर्भहिं, समुझायेहु जग सार ।
दीन ज्ञान जब कीन प्रतिज्ञा, भजिहौं नंदकुमार ।
भूलि गयो सो दशा भई पुनि, ज्यों रहि गर्भ मझार ।
यह 'कृपालु' नर तनु सुरदुर्लभ, सुमिरु श्याम सरकार ।
भावार्थ - यह मनुष्य का शरीर बार बार नहीं मिलता । दयामय भगवान चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् दया करके कभी मानव देह प्रदान करते हैं । मानव देह देने के पूर्व ही संसार के वास्तविक स्वरुप का परिचय कराने के लिए गर्भ में उल्टा टांग कर मुख तक बाँध देते हैं । जब गर्भ में बालक के लिए कष्ट असह्य हो जाता है तब उसे ज्ञान देते हैं और वह (जीव) प्रतिज्ञा करता है कि मुझे गर्भ से बाहर निकाल दीजिये, मैं केवल आपका ही भजन करूँगा । जन्म के पश्चात जो श्यामसुंदर को भूल जाता है, उसकी वर्तमान जीवन में भी गर्भस्थ अवस्था के समान ही दयनीय दशा हो जाती है । 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मानव देह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, इसलिए सावधान हो कर श्यामसुंदर का स्मरण करो । :- sri mahraj ji
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