ये स्वर्ग भी हमारे मृत्यु लोक की तरह है , कोई अन्तर नही है | वहाँ भी काम, क्रोध , लोभ , मोह, मद, मात्सर्य , ईर्ष्या , द्वेष सब बीमारियाँ स्वर्ग में भी हैं |
परीक्ष्य लोकान् कर्मचितान्
ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृत: कृतेन |
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ||
( मुण्डकोपनिषद् १-२-१२ )
इस मंत्र का अभिप्राय यह है कि बड़े - बड़े योगियों ने , तपस्वियों ने , अनेक प्रकार के साधन किये किन्तु थक गये | न तो माया निवृत्ति हुई और न आनन्द प्राप्ति हुई | कोई लक्ष्य हल नहीं हुआ | स्वर्ग तक गये | स्वर्ग के सुखों को देखा , भोगा और वैराग्य हो गया |
ये स्वर्ग भी हमारे मृत्यु लोक की तरह है , कोई अन्तर नही है | वहाँ भी काम, क्रोध , लोभ , मोह, मद, मात्सर्य , ईर्ष्या , द्वेष सब बीमारियाँ स्वर्ग में भी हैं |
और वह भी कुछ दिन के लिय मिलता है | तब उन लोगों ने निश्चय किया कि उस ब्रह्म को जानने के लिये , भगवान को पाने के लिये और कोई साधन काम नहीं देगा | केवल एक साधन है | क्या ?
श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की शरण में जाना होगा |
श्रोत्रिय , ब्रह्मनिष्ठ , दो शब्द हैं | श्रोत्रिय माने क्या ? जिसको शास्त्र और वेदों का इतना ज्ञान हो कि हमको समझा सके | खाली अपने लिये ज्ञान हो , ऐसा गुरु हमारे काम का नहीं |
जो हमको समझा सके , थियरी तत्व ज्ञान | भगवान् क्या है , जीव क्या है , माया क्या है और भगवत्प्राप्ति कैसे होगी , संसार का सुख कैसा है , मन क्या है , बुद्धि क्या है ? सब निर्णय हो जाय ऐसा गुरु हमको चाहिये | थ्योरिटिकल मैन | लेकिन खाली थ्योरिटिकल मैन होगा , शाब्दिक ज्ञानी होगा , तो भी हमारा काम नही बनेगा |
इसलिये ब्रह्मनिष्ठ भी होना चाहिये अर्थात भगवान् का दर्शन किये हो | खाली शाब्दिक ज्ञान नहीं , प्रैक्टिकल भी हो | दोनो नौलेज जिसमें हों ऐसा गुरु हमको चाहिये |
वेद कह रहा है ;-
ब्राह्मणो निर्वेदमायान्नास्त्यकृत: कृतेन |
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ||
( मुण्डकोपनिषद् १-२-१२ )
इस मंत्र का अभिप्राय यह है कि बड़े - बड़े योगियों ने , तपस्वियों ने , अनेक प्रकार के साधन किये किन्तु थक गये | न तो माया निवृत्ति हुई और न आनन्द प्राप्ति हुई | कोई लक्ष्य हल नहीं हुआ | स्वर्ग तक गये | स्वर्ग के सुखों को देखा , भोगा और वैराग्य हो गया |
ये स्वर्ग भी हमारे मृत्यु लोक की तरह है , कोई अन्तर नही है | वहाँ भी काम, क्रोध , लोभ , मोह, मद, मात्सर्य , ईर्ष्या , द्वेष सब बीमारियाँ स्वर्ग में भी हैं |
और वह भी कुछ दिन के लिय मिलता है | तब उन लोगों ने निश्चय किया कि उस ब्रह्म को जानने के लिये , भगवान को पाने के लिये और कोई साधन काम नहीं देगा | केवल एक साधन है | क्या ?
श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की शरण में जाना होगा |
श्रोत्रिय , ब्रह्मनिष्ठ , दो शब्द हैं | श्रोत्रिय माने क्या ? जिसको शास्त्र और वेदों का इतना ज्ञान हो कि हमको समझा सके | खाली अपने लिये ज्ञान हो , ऐसा गुरु हमारे काम का नहीं |
जो हमको समझा सके , थियरी तत्व ज्ञान | भगवान् क्या है , जीव क्या है , माया क्या है और भगवत्प्राप्ति कैसे होगी , संसार का सुख कैसा है , मन क्या है , बुद्धि क्या है ? सब निर्णय हो जाय ऐसा गुरु हमको चाहिये | थ्योरिटिकल मैन | लेकिन खाली थ्योरिटिकल मैन होगा , शाब्दिक ज्ञानी होगा , तो भी हमारा काम नही बनेगा |
इसलिये ब्रह्मनिष्ठ भी होना चाहिये अर्थात भगवान् का दर्शन किये हो | खाली शाब्दिक ज्ञान नहीं , प्रैक्टिकल भी हो | दोनो नौलेज जिसमें हों ऐसा गुरु हमको चाहिये |
वेद कह रहा है ;-
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत |
( कठोप. १-३-१४)
अरे मनुष्यों ! उठो, जागो , महापुरुष के पास जाकर शरणागत हो और उनके द्वारा भगवान् का ज्ञान प्राप्त करो |
और हमारे सब ग्रन्थ कहते ही हैं , भागवत कहती है -
( कठोप. १-३-१४)
अरे मनुष्यों ! उठो, जागो , महापुरुष के पास जाकर शरणागत हो और उनके द्वारा भगवान् का ज्ञान प्राप्त करो |
और हमारे सब ग्रन्थ कहते ही हैं , भागवत कहती है -
तस्माद् गुरुं प्रपध्धेत जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम् |
शाब्दे परे च निष्णातं ब्रह्मण्युपशमाश्रयम् ||
(भाग. ११-३-२१)
शाब्दे परे च निष्णातं ब्रह्मण्युपशमाश्रयम् ||
(भाग. ११-३-२१)
शब्द ब्रह्म में भी परिपूर्ण हो और परब्रह्म माने प्रैक्टिकल भी हो | ये दो शर्ते भागवत भी कह रही है |
ऐसे गुरु के द्वारा समझो और साधना करो तब लक्ष्य की प्राप्ति होगी | - श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन श्रुंखला से |
ऐसे गुरु के द्वारा समझो और साधना करो तब लक्ष्य की प्राप्ति होगी | - श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन श्रुंखला से |
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