साधना पथ पर चलते हुए , हमारा लोक व्यवहार कैसा होना चाहिये ?

संसार में हमें साधना पथ पर चलते हुए औंरों से किस तरह व्यवहार करना चाहिये ? या हमारा लोक व्यवहार कैसा होना चाहिये ?
मैं तो एक दासानुदास हूँ मेरे पास अपना कुछ भी ज्ञान नही हैं | फिर भी महाराज जी ने स्पष्ट शब्दो में इस पर कितनी बार प्रकाश डाला है |
उन्होने हमें सिखाया है कि संसार में दो प्रकार के नही तीन प्रकार के जीव हैं अध्यात्म की दृष्टि से |
१. पहला वे जो भगवान को मानते है ( मानते हैं माने सच में विस्वास करते हैं ठीक उसी तरह जीस तरह अपने आपके अस्तित्व को मानते हैं ) ए लोग हर पल भगवान के सत्ता को मानते है , श्रद्धा करते हैं भगवद् प्रेमी पिपासु हैं , भगवदोउन्मुखी जीव हैं , हरि गुरु के सिद्धान्त को मानते हैं | प्रेम करते हैं हरि से गुरु से , हरि गुरु के चरणानुरागी हैं |
२. दुसरे वे जो केवल दिखावे के लिए राम , राम , श्याम , श्याम करते हैं | इनको वास्तविक रुप से भगवान पर विस्वास उस्वास नही हैं | कोई तो मात्र दिखावे के लिय बड़े बड़े यज्ञ , कर्म काण्ड करवाते हैं , मंदीर तक बनबाते हैं बड़ी बड़ी , दान भी करते हैं तो दिखावे के लिये | बड़ी बडी ढ़ोल पिटवाते है दान करके , स्टेटस सिम्बल को लेकर की लोग हमको बड़ा दानी कहे | राजनीति करते है भगवान के नाम पर , लोगों को बांटते है धर्म के नाम पर , ऐसे लोग हैं
३. तीसरे वे जो भ्रम में है , ऐसे लोगों को पूर्णरुपेन भगवान पर आस्था नही है | ये बेचारे डरे से रहते है कि कहीं भगवान सच में हुआ तो हमारा क्या होगा , डर कर पुजा पाठ करते हैं , डर के मारे मंदीर में , तो कभी मस्जिद में तो कभी गुरु द्वारा में हरेक देवी देवता के सामने आदत बस सर झुका लेतें हैं , डर के मारे एक दो , दस रुप्या दान भी कर लेते हैं , थोड़ा घुमने के बहाने तीर्थ भी हो लेते हैं | थोड़ा मनता बनता भी मना आते हैं | भगवान को और्डर भी दे आते हैं , घुस भी देने का वादा कर आते हैं शर्त के साथ की मां मुराद् पुरी करदे हलुआ बांटुंगी | कैसे कैसे गाने बना लिये है भजन के नाम पर ये लोग |
आरती में गाते भी है कि सब कुछ है तेरा क्या लागे मेरा' परन्तु मन ही मन मे है सब कुछ हो जाये मेरा क्या लागे तेरा ! भगवान के सामने शर्त पर शर्त रख आते हैं कि तुम पहले मेरी पुरी कर फिर मैं तुमको चुनरी चढ़ाउँगी , भोले भाले लोग हैं यें |
यें सोचते है भगवान मेरा नौकर है जो चन्द चढ़ावे के लोभ में इनको मुंह मांगा चीज दें देंगें |
दर असल इनको भगवान पर रत्ति भर भरोसा भी नही की वो सर्व अंतर्यामी , सर्वद्रष्टा , सर्वशक्तिमान , सर्वनियंता , सर्वसाक्षी , सर्वसमर्थ हैं तो क्युँ मांगे , वो मुझे योग्य समझेगें , मेरे प्रारब्ध में होगा तो बिन मांगे दे देंगें | और जब मागना ही है तो उनसे हमें उन्ही को मांगना चाहिये जिससे मांगने की कभी जरुरत ही ना पड़े |
अब आईये असली प्रश्न पर की एक भगवद् प्रेमी पिपासु , साधक , भगवान और गुरु में पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा रखने वाले लोगों को , हरिगुरु के शरणागत , हरिगुरु प्रेमीजन को उपर के तीनो तरह के लोगों के साथ किस तरह का व्यवहार रखना चाहिये ? करना चाहिये |
तो महाराज जी ने बताया है कि तुम पहले प्रकार के लोगों के साथ प्रेम पूर्ण आदर के साथ व्यवहार करो सम्मान दो , क्योंकि वह तुम्हारा सच्चा साथी हैं हरि और गुरु के मार्ग में हैं भगवद् प्रिय जन हैं वही तुम्हारा असली गुरु भाई वहन है | असली कल्याणकारी दोस्त है , हम सफर हैं ये लोग तुम्हारे साधना में सहायक हैं | खुद तो कल्याण के मार्ग में है और तुमको भी उत्प्रेरित करते हैं |
वाकी नीचे के दोनो तरह के लोगों से केवल मात्र संसारिक लिमिटेड व्यवहार करो , तटस्थ रहो , ऐसे लेगों से लगाव मत रखो , केवल उपरी व्यवहार करो , बुरा किसी का मत सोचों | फर्ज पुरा करो केवल , चाहे ऐसे लोग तुम्हारे मां वाप भाई वहन तुम्हारे रिस्तेदार क्यों न हों |
अगर तुम्हारे मां वाप , भाई बहन , रिस्तेदार या दोस्त मे से कोई भी भगवद् प्रेमी है भगवान के प्रति मन से समर्पित हैं | भगवान को वास्तव में मन से प्यार करता हो तो उनको दिल मे रख सकते हों अन्यथा भगवान से विमुख अगर तुम्हारा मां वाप भी हो तौ भी उसको दिल में मत रखो , केवल अपना फर्ज पुरा करो , करते रहो , क्योंकि जैसे लोगों का संग तुम करोगे , तुम वैसा ही वन जाओगे ,
" कबीरा संगति साधु की जो गन्धी का बास,
जो कछु गन्धी दे नही तो भी बास सुवाश ||
इसलिये अगर तुम्हारा भाई बहन , मां वाप , वेटा , वेटी अगर भगवान का अनुयायी है | तुमको भी भगवान के तरफ प्रेरित करता है तो तुम उससे दोस्ती रखो , अन्यथा केवल फर्ज पुरा कर दो मन से अटैचमेंट मत रखो , ऐसे लोगों के प्रति भीतर से कलेजा कठोर कर लो , भीतर से केवल , उपर से केवल प्रेम का नाटक कर दो ,
अत: हरि से गुरु से विमुख लोगों का संग विल्कुल मत करो चाहे वो कोइ भी हो , तुम्हारा मां वाप ही क्युँ न हों , पति या पत्नी हीं क्युँ न हो , केवल काम से काम रखो , संसारिक फर्ज पुरा करदो
राधे राधे


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