कर्मयोग की साधना
महाराज जी -कर्मयोग की साधना :-
सुमिरन की सुधि यौं करो ,
ज्यों सुरभी सुत मांही |
कह कबीर चारो चरत
बिसरत कबहूँ नाही ||
सुमिरन की सुधि यौं करो ,
ज्यों सुरभी सुत मांही |
कह कबीर चारो चरत
बिसरत कबहूँ नाही ||
एक गाय , जानवर, दिन भर चारा चरती है | लेकिन अपने बछड़े की याद है | याद करती रहती है ये कर्मयोग की साधना है उसकी, और जब शाम को लौटती हैं , चारा चरने के बाद , और गौशाला के पास आती है तो वो जो चोरी-चोरी प्यार कर रहीं थीं थोड़ा-थोड़ा वह कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तो रम्भाती है | बड़े ज़ोर से बोलती है , चिल्लाती हैं अपने बच्चे को पुकारती है और बच्चा भी उसका मां का आवाज़ पहचानता है तो खूँटे में बँधा हुआ , उसका बच्चा भी आवाज़ देता है - मम्मी जल्दी आ जाओ | ये देखो पशुओं मे भी इस प्रकार का विषय है | तो मनुष्य की कौन कहे | हाँ तो हमे इस प्रकार कर्मयोग की साधना करना है अर्थात् हम कार्य करते हुए भी बार-बार एक बात का तो अभ्यास करें कि हम अकेले नहीं हैं कभी भी एक क्षण को भी | इसका आपलोग घण्टे -घण्टे भर में पहले अभ्यास कीजिये |
हम अधिक समय नही ले रहे हैं आपका | एक घण्टे में , एक सेकेण्ड बस , एक मिनट नहीं , जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं , यों यों कर लेते हैं | कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नही है कि समाधि लग जाय |
अरे भाई हर काम करते समय औफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है , कभी इधर को कभी उधर को , कभी कुछ सोंच लेते हैं , कभी छींक आ गई , कभी खाँसी आ गई , ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी | तो आप घऩ्टे भर में एक सेकेण्ड को , जैसे मेज आपके सामने है कुर्सी पर बैठे हैं मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये , हाँ बैठ गये , अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ | एक घण्टा हो गया बैठे हो न ? हाँ बैठे हैं | बैठे हो न ? हाँ बैठे हैं | एक एक घण्टे पर रियलाइज किया की श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं | हाँ हमारी प्राईवेशी आज से खत्म | हम कोई बात प्राईवेट सोंच नही सकते , हमे अधिकार नही सोचने का , क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे है , फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ है , फिर पन्द्रह मिनट पर किया , जब आप यहां तक पहुच जाऐगें तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं | उनका रुप ध्यान नही लाना है केवल फिलिगं लाना है कि मेरे प्राण बल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नही हूँ | हर समय इतना आत्मवल होगा आपको , कितनी खुशी होगी आपको , मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं , मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं ये इन दोनो को हमको हर समय अपने साथ महसुस करने का अभ्यास करना है | फिर कुछ दिनो बाद आपको करना नही पड़ेगा , स्वत: होने लगेगा ,
यही कर्म योग की साधना है जो आप अपने संसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पड़ बढ़ते बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त करलेगें , दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पाऐगें | - कामना और उपासना , भाग -२
हम अधिक समय नही ले रहे हैं आपका | एक घण्टे में , एक सेकेण्ड बस , एक मिनट नहीं , जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं , यों यों कर लेते हैं | कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नही है कि समाधि लग जाय |
अरे भाई हर काम करते समय औफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है , कभी इधर को कभी उधर को , कभी कुछ सोंच लेते हैं , कभी छींक आ गई , कभी खाँसी आ गई , ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी | तो आप घऩ्टे भर में एक सेकेण्ड को , जैसे मेज आपके सामने है कुर्सी पर बैठे हैं मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये , हाँ बैठ गये , अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ | एक घण्टा हो गया बैठे हो न ? हाँ बैठे हैं | बैठे हो न ? हाँ बैठे हैं | एक एक घण्टे पर रियलाइज किया की श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं | हाँ हमारी प्राईवेशी आज से खत्म | हम कोई बात प्राईवेट सोंच नही सकते , हमे अधिकार नही सोचने का , क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे है , फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ है , फिर पन्द्रह मिनट पर किया , जब आप यहां तक पहुच जाऐगें तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं | उनका रुप ध्यान नही लाना है केवल फिलिगं लाना है कि मेरे प्राण बल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नही हूँ | हर समय इतना आत्मवल होगा आपको , कितनी खुशी होगी आपको , मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं , मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं ये इन दोनो को हमको हर समय अपने साथ महसुस करने का अभ्यास करना है | फिर कुछ दिनो बाद आपको करना नही पड़ेगा , स्वत: होने लगेगा ,
यही कर्म योग की साधना है जो आप अपने संसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पड़ बढ़ते बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त करलेगें , दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पाऐगें | - कामना और उपासना , भाग -२
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