कृपालु महाराज जी जैसे दुर्लभ संत बड़े नसीब वालों को हीं मिलते हैं

हमारे महाराज जी जैसे दुर्लभ संत बड़े नसीब वालों को
एक संत हुएँ है संत प्रिया दास , भक्त माल के भाष्य कर्ता, इन्होने कहा है :-
" हरि के जो वल्लभ है , दुर्लभ भुवन माझ ,
तिनहिं की पदरेणु , आसा जिये करिहे |
जोगी तपी जपी तासो मेरो कछु काम नाही ,
प्रीति परितिति रीति मेरी मती हरिहें ||

हीं मिलते हैं | इसको समझने के लिये संत प्रिया दास की उक्ति को समझिए |
हरि के वल्लभ किसको कहते है ? हरि के वल्लभ उनको कहते हैं जिनको श्री हरि प्यार करते हैं | जो गोलोक से आते हैं कभी कभी , ये बड़े दुर्लभ होतें हैं | बड़े ही दुर्लभ ! जिनके पदरेणु के लिय भगवान तरसते हैं | बड़े बड़े ऋषि , मुनिन्द्र , ज्ञानि ध्यानी , ब्रह्मा की कौन कहे देवता की तो बात हीं छोड़ो | प्रेम रस के रसिक संत इतने दुर्लभ हैं कि हजारो , वर्षो में जब भगवान कलिमल ग्रसित अपने प्यारे जीवों पर तरस खाकर , कृपा कर देतें हैं तो उनको कृपालु जैसे संत दे देते हैं | सोचिये आप सब कि आप सब कितने सौभाग्यशाली है कि आपको कृपालु जैसा अति दुर्लभ संत का संग मिला |
योगी , ज्ञानी , तप , जप करने वाले तो बहुत हैं इस पृथ्वी पर , बहुतायत में मिल जाऐगें | जो लोग श्री हरि का जप , तप ध्यान करते हैं बहुत हैं परन्तु प्रेम रस के रसिक संत तो केवल नसीब वालो को ही मिलते हैं | क्योंकि इनको खुद हरि प्रेम करते हैं उनके पीछे पीछे चलते है कि उनका पदरेणु मिल जाय |
इसलिये संत प्रियादास जी ने कहा है कि हरि के जो वल्लभ हैं वो अति दुर्लभ हैं | और जिनको ऐसे रसिक संत मिल गये और वो उनको जान लिया , मान लिया , प्यार करने लग गया उनसे , उनके भाग्य पाने को तो देवता भी तरसते हैं कि ऐसा मेरा कब सौभाग्य होगा |
तो संत प्रिया दास जी कहते है कि योगी , जप तप करने वाले , ज्ञानियों से मुझे क्या काम , इनसे तो सिर्फ श्रद्धा करना चाहिये , नमस्कार है परन्तु मेरा काम तो सिर्फ अति दुर्लभ संत से हैं जो प्रेम रस के रसिक संत है , उनके प्रिति पर पूर्ण विश्वास हैं | उनके संग करके ही मुझे सुख मिलता हैं | ऐसे संत ने तो मेरा दिमाग , यानि मेरी बुद्धि ही हर लिये हैं , मेरी मति , मन इनमें हीं रम गया हैं | हमें ज्ञानियों , ध्यानियों , जप तप करने वाले योगी से क्या काम |
तो सोंचिये की हम सब कितने भाग्यशाली हैं जिनको कृपालु जैसे अति दुर्लभ रसिक संत मिले | अब उनके चरित्र को सुनना , चिन्तन , मनन और अनुशिलन करना सिरियसली हमारा काम हैं तभी हमारा दिव्य कल्याण होगा | :- मां के द्वारिका २०१४ के प्रवचन से |

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