तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं|
श्री कृपालु जी महराज द्वारा दिय प्रवचन 4nov 84-
जितने भी महापुरुष संसार में हुए है उसमें दो प्रकार के क्या
तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं|जितने भी महापुरुष संसार में हुए है उसमें दो प्रकार के क्या
एक महापुरुष वो होते हैं जो अवतार लेकर आये हैं |
नित्य सिद्ध अवतारी महापुरुष | जैसे ललिता का अवतार कोई महापुरुष आ जाय , विशाखा का अवतार कोई महापुरुष आ जाय , राधा का अवतार आ जाय , चन्द्रावली का अवतार आ जाय , भरत का अवतार आ जाय, लक्ष्मण का अवतार आ जाय यानी ये जो सिद्ध लोग हैं सदा से सिद्ध , इनको कहते हैं पार्षद परिकर , उनका अवतार लेकर कोई संसार में आवे और अपना नाम चेन्ज कर दे और संसारी बन कर रहे, जैसे गोपियाँ थीं तमाम ब्याह किया , बाल बच्चे भी उनके थे और थीं कौन ? ललिता विशाखा वगैरह ये सब गोलोक की नित्य सिद्ध परिकर हैं
एक तो ये महापुरुष होते हैं |
दुसरे अवतारी महापुरुष एक और होते है वो नित्य सिद्ध तो नही हैं लेकिन जैसे आज आपने भगवत्प्राप्ति कर लिया सन् ८४ में और ८५ में आप मर गये और ८६ में फिर आ गये संसार में | तो आप भी अवतारी हो गये , क्योंकि आपको कुछ करना धरना नहीं है भगवत्प्राप्ति आप कर चुके | अब दुबारा जब संसार में आयेंगे जीव कल्याण के लिये , तो अवतारी कहलायेंगे | ये दुसरे प्रकार के अवतारी हुए और तीसरे वे होते हैं जो इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति करते हैं और मरने के पहले तक वह महापुरुष की सीट पर बैठे हैं |
सन् ८४ में भगवत्प्राप्ति किया और ९४ तक जीवित हैं दस साल वो महापुरुष हैं तो वो भी महापुरुष हैं |
ये तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं जो भगवान् के पार्षद हैं तो उनका कहना ही क्या है?
और जो नम्बर दो के महापुरुष हैं वह भी अवतारी हैं उनको भी कुछ करना धरना नही हैं | लेकिन संसार में जब ये लोग आते हैं तो जैसा मन में आया वैसा व्यवहार करते हैं | उल्टा सीधा कोई गृहस्थी में हैं, कोई ब्रह्मचर्य ही रहा जीवन भर , कोई सन्यासी ही रहा , कोई कुछ घपड़ सपड़ |
क्योंकि इनके लिये न शास्त्र है , न वेद , न कायदा है , न कानून है , न पाप है , न पुण्य है , न धर्म है न अधर्म है , स्वतंत्र होते है , स्वेच्छाचारी होते हैं -
स स्वराड् भवति | ( छान्दो ७-२५-२)
वेद कहता है -
आप्नोति स्वराज्यम् | ( तैत्तिरीयो. १-६)
वेद कहता है -
सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति | ( छान्दो. ७- २५-२)
वेद कहता है -
स्वैरं चरन्ति मुनियोऽपि न नह्ममानास्तस्येच्छयाऽऽत्तवपुष: कुत एव बन्ध: |
( भाग १०-३३-३५)
भागवत कहती है ,
तो ऐसे तीन प्रकार के महापुरुष होते हैं|
;- जगद्गुरुत्तमई , भक्तियोगरसावतार , श्री कृपालु जी महाराज , प्रवचन ९ , ४ नवम्बर १९८४ , मनगढ़ धाम
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