ब्रह्म , परमात्मा और भगवान् एक ही हैं या इनमें अंतर है ?

हमारे श्री महाराज जी ने इस विषय (तत्व ज्ञान ) पर बड़े ही सुन्दर ढगं से प्रकाश डालें है ( दिव्य स्वार्थ पेज नं - ३९ ,४०, ४१ तथा ४२) प्रस्तुत है उनके ही श्री मुख से- एक का नाम ब्रह्म , एक का नाम परमात्मा, एक का नाम भगवान् | तो क्यों जी एक तत्त्व श्री कृष्ण के ये तीन नाम हैं या इनमें कोई अन्तर है | ध्यान दो , बहुत इम्पॉर्टेन्ट है | जैसे वारि, सलिल , तोय, जल | ये सब जल के पर्यायवाची शब्द हैं तो क्या ऐसा है कि एक ही श्री कृष्ण का नाम - ब्रह्म , परमात्मा और भगवान है | हां एक ही श्री कृष्ण ब्रह्म , परमात्मा , भगवान कहलाते हुए भी इन तीनो के लक्षण में अन्तर हैं |
एक भी हैं और विशेष लक्षण भी है | ध्यान दो ये कभी मत सोचना कि ब्रह्म अलग है , परमात्मा अलग है और भगवान अलग हैं , ऐसी दुर्भावना मत करना | तीनों एक ही तत्त्व है लेकिन विशेष लक्षण हैं तीनो के अपने - अपने |
देखिये एक होता है पानी , एक होती है वर्फ और एक होती है भाप, जल में विशेष ठण्ड डाल दी गई जीरो पर, वो वर्फ बन गई | और टेम्प्रेचर दिया गया तो भाप बनकर उड़ गया | तो वरफ , जल , भाप एक ही पदार्थ है, लेकिन तीनों के लक्षण अलग अलग है | काम अलग- अलग है |
अब ब्रह्म किसे कहते हैं तो एक परिभाषा बना दी गई जो निर्विशेष हो | वेदों में शास्त्रों में सब जगह |
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च |
( श्वेता. ६-८)
तस्य शक्तयस्त्वनेकधा ह्लादिनी संधिनी | (राधापनिषद् )
आदि तमाम भरे पड़े हैं मंत्र शास्त्रों में वेदों में , तमाम गीता , भागवत, वेद शास्त्र सब कह रहे है कि ब्रह्म नाम की पर्सनैलिटि निर्गुण निर्विशेष है , निराकार है |
और एक होता है होता है परमात्मा , और एक भगवान् | तो भगवान् तो श्रीकृष्ण हैं उनमें तमाम बहस नहीं है | अब इन दोनो के बारे में समझना है |
तीनो में शक्तियाँ है | एक बात गाँठ बाँध लो | तीनों में सब शक्तियाँ हैं | अब उन शक्तियों का विकास प्राकट्य कहीं पर बहुत कम कहीं पर कुछ अधिक और कहीं पर पूरा | बस इतना सा अन्तर है |
ब्रह्म में शक्तियाँ है पर कम प्रकट हुई और जितनी प्रकट हुई बस उतनी ही है और सदा रहेंगी ये भी याद कर लो | ऐसा नही कि आज ब्रह्म परमात्मा हो जाये, परमात्मा भगवान हो जाये ऐसा नही होगा |
क्या शक्ति है ब्रह्म के पास ? तो अपनी सत्ता की रक्षा करने की शक्ति और ज्ञान स्वरुप और आनन्द स्वरुप | यानी ब्रह्म सच्चिदानन्द है, ये तीन चीजें जो मैने ब्रह्म की बताई हैं कई बार आप लोगों को - सत् , चित् , आनन्द ब्रह्म में भी है , परमात्मा में भी है और भगवान में तो हैं ही हैं | सभी शक्तियाँ है | उनका प्राकट्य ब्रह्म में केवल इतना है कि वो अपनी सत्ता की रक्षा करते हैं और सदा आनन्द स्वरुप रहते हैं , सदा विज्ञान स्वरुप रहते हैं बस |
इसके आगे कोई शक्तियाँ नही हैं उनमें कि वो आकार भी धारण कर लें , लीलायें भी करें | वो उनमें कोई गुण भी प्रकट हो कृपा आदि के ऐसा कुछ नहीं | शक्ति तो है पर अल्प व्यक्त है | अब अल्प शक्ति भी व्यक्त न होगी तो जो उसमें लीन होगें , वो ब्रह्मानन्दी कैसे बनेंगें ?
इसलिये सबसे कम मात्रा की शक्तियाँ जिसमें प्रकट हैं वो एक सत्ता मात्र , ज्योति मात्र , ज्ञान मात्र , ब्रह्म कहलाता है, यह ज्ञानियों का आराध्य हैं | व्यक्ति साधन चतुष्टय सम्पन्न हो जाने के बाद तो उस अद्वैत ज्ञान के सुनने का अधिकारी हो जाता है , जिनकी संख्या अरबों में कोई एक होता है |
देहधारियों के लिये तो वो दुर्गम है लेकिन इम्पॉसिबिल नहीं |
ब्रह्म की प्राप्ति हुई है, होती है , और होगी | पर बहुत हीं कठीन है |
अब परमात्मा को देखिये , परमात्मा में बहुत शक्तियाँ प्रकट होती हैं , वो उसको साकार बना देती हैं | उसको शरीर रुप में बना देती हैं | आँख , कान , नाक पूरा जैसे आपका मनुष्य का शरीर है ऐसा | और इतना ही अन्तर है कि आपके दो हाथ हैं उनके चार हाथ होते हैं | वो महाविष्णु हैं | और महाविष्णु के एक निराकार रुप भी हैं , जो आपके अन्त:करण में बैठकर आपको शक्ति देतें हैं और आपके कर्मो को नोट करते हैं , हिसाब किताब रखते हैं | इनका एक और रुप है जो एक ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं | और एक तीसरा रुप भी है जो अनन्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त है | तो महाविष्णु के तीन प्रकार हो गये , एक समष्टि ब्रह्माण्ड में व्याप्त , एक व्यष्टि ब्रह्माण्ड में व्याप्त और एक जीवात्मा में व्याप्त |
ध्यान दो - मैने आपलोगों को अवतार प्रकरण में बताया था न कि भगवान श्री कृष्ण का अशं पुरुष ( महाविष्णु ) हैं | और पुरुष जो है तीन प्रकार का होता है | कारणार्णवशायी , गर्भोदशायी, क्षीरोदशायी | तो इसलिये परमात्मा भी तीन प्रकार का हो गया | किन्तु प्रमुख रुप से परमात्मा उसी को माना जाता है जो महाविष्णु हैं , जो आपमें बैठ कर आपको शक्ति देते हैं , आपके कर्मो को नोट करते है और आपके कर्मो का फल देतें हैं ऐ निराकार रुप मे आपके अंदर रहते हैं |
और साकार रुप में वैकुण्ठ में हैं | उनका नाम भी है , गुण भी है , रुप भी है और धाम भी है | परन्तु लिला और परिकर नही हैं | इनकी उपासना होती है | योगीजन इनकी उपासना करते हैं | तो ऐ भी भगवान् श्रीकृष्ण का ही रुप हैं |
और तीसरा रुप तो आपलोग जानते ही हैं जो राधाकृष्ण का रुप , जिसमे पुरी की पुरी शक्ति व्यक्त है , भगवान मे पुरी शक्ति व्यक्त है , इनका धाम भी है , रुप भी है , गुण भी है , लीला भी है और परिकर भी है ,जिसकी उपासना आपलोग करते हैं | तो उन्ही राधाकृष्ण का ही दुसरा रुप परमात्मा और तीसरा रुप ब्रह्म हैं | और सब लक्षण विशेष का अन्तर होते हुए एक ही है |
और ब्रह्म के उपासक को ज्ञानी कहा जाता है , परमात्मा के उपासक को योगी कहा जाता है | और भगवान के उपासक को भक्त कहते हैं |

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।