तमोगुण , रजोगुण अविद्या माया है , सतो गुण विद्या माया

तमोगुण , रजोगुण अविद्या माया है , सतो गुण विद्या माया , ज्ञान मार्गी विद्या माया द्वारा अविद्या माया को खतम तो कर देते है परन्तु विद्या माया को नही , अत: ज्ञानी लोगों को भी अंत मे विद्या माया को समाप्त करने के लिय सगुण साकार भगवान श्री कृष्ण की ही उपासना करनी परती है और भक्ति द्वारा विद्या माया समाप्त हो जाने पर ही भगवत् प्राप्ति होती है .
ठीक उसी प्रकार जैसे संसार में आप लोग साबुन लगा कर नहा कर शरीर के गंदगी को दुर करते है फिर साफ पानी द्वारा उस साबुन को भी साफ कर देते है |
अत: गुरु से प्राप्त ज्ञान की जरुरत आपके बुद्धि को पटरी पर लाने के लिय है . और जब गुरु ज्ञान आपकी खोपरी में समा गई तब फिर आप अपना बुद्धि गुरु की बुद्धि से जोड़े रख कर साधना करिय , हरिगुरु और हरि का रुप ध्यान करते हुए उनके लीला , गुण , और धाम का स्मरण मनन चिन्तन करिय , पद संकिर्तन करिय . फिर ज्ञान वान की कोइ आवश्यक्ता नही हैं क्योकि ज्यादा ज्ञान आपकी खोपड़ी मे याद नही रह पायगी ,
वो कहते है न - हिस्टरी जोगरफी सब बेवफा रात पढ़ा सुबह सफा .
अत: आप सब केवल चार काम करिय - हरि गुरु और हरि का रुपध्यान , उनके गुण उनका लीला और उनके धाम को गाकर आँसु बहाइय , अत्यन्त दीन हीन बनकर , अपने को वास्तव मे मानकर की हम पतित है , रोकर पुकारिय फिर आपको अपना लक्ष्य की प्राप्ति शीघ्रता शीघ्र हो जाएगी .
-जगतगुरु श्री कृपालु महराज जी


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