मानव गुढ़ रहस्य भाग -6 ( हमारे काम की बात )

गुढ़ रहस्य भाग -6 ( हमारे काम की बात )
 कल हमने बात की मन , मनोमयकोष की , फिर बुद्धि और विज्ञानमयकोष की , यह भी कहा की विज्ञान मय कोष में एक मिसिंग है विवेक ।
तो इसमें हम विवेक की बात और फिर अंत:करण चतुष्ट्य के तीसरा एलिमेंट चित्त को समझेगें ।
और इस सबका कुछ व्यवहारिक उपयोग साथ साथ बताते जा रहा हुं पर सबसे व्यवहारिक उपयोग अंत में प्रमाण के साथ बतलाऊंगा फिर हम अपने इन सारी चीज , मन , बुद्धि का सदुपयोग करके विवेक द्वारा कुसंग हीं नहीं वल्की बहुत सारे अनर्थ से बच जाने की कला सिख जायेंगें । मन को शांत करके  साधना के लाभ में जल्दी बढेगें ।
इच्छा शक्ति किसे कहें हैं - तो यह मनोमय कोष है ( मनोमय कोष के एलिमेंट और विज्ञानमय कोष के एलिमेंट को पीछले पोस्ट संख्या 5 में जान चुके हैं )

तो इच्छा शक्ति और मनोवल विवेक द्वारा मनोमय कोष में बनता है इससे आत्मबल भी मजबूत होता है।

चित्त - यह क्या है ? मैं समझने के लिए एक उदाहरण लेतें हैं , यह कंप्यूटर का हार्डडिस्क ( कोष्ट ) है मान लिजिए एक करोड़ जीबी की छमता है , पर यह लिमिट नहीं है , यह छमता बढ़ता रहता है ।
यह बहुत महत्त्वपूर्ण है और सूक्ष्म शरीर में रहता है । अंतःकरण हीं सूक्ष्म शरीर में रहता है ।  यह चित्त भी ध्यान चक्र के पीछे मस्तिष्क के कोर्टेक्स में रहता है।
स्थूल शरीर में आने पर जीवात्मा के मस्तिष्क में यह एक्टिभ हो जाता है । 
तो इस चित्त में कौन सा पीछला कर्म, संस्कार स्टोर रहता है और नया बिचार , कर्म , संस्कार  स्टोर होता रहता है ।
तो यही यंत्र है जिसमें हमारे तमाम पीछले तमाम जन्मों में किए पाप , पुण्य , संस्कार , कुसंस्कार जमा रहता है और आगे का क्रियामान भी नोट होता रहता है । 

याद रखिए यह अंत:करण मशीन एक ओटोमैटिक मशीन है , इसमे चार सब फाईल है , पाप , पाप के फाइल में , पुण्य , पुण्य के फाइल में , कुसंग , कुसंस्कार के फाइल ( प्रकोष्ट कहतें हैं इस फ़ाइल को ) में और सुसंग , मौरल ज्ञान , आध्यात्मिक ज्ञान , तत्वज्ञान आदि सब सुसंस्कार के फाईल में जमा होता है । यह हमारे मनसा , बाचा और दृष्यमाण कर्म का अनंत जन्मों का रेकर्ड है और इसका  ऐक्सेस भगवान हमारे ह्रदय में बैठे हमारे सायुज्य सखा और हमारी  आत्मा के पास है , हम दोनों यानी भगवान और हमारी आत्मा यानी मैं इसके पल पल में नोट हो रहे संकल्प और कर्म के साक्षी हैं। भगवान का बनाया यह मशीन ओटोमैटिक है , अपने आप नोट होता रहता है, रेकर्ड होता रहता है सी सी टीभी जैसा  ।
चारों फाईल में ।
और मन को यहीं से बिचारों का मैटेरियल भी मिलता है ।
मन को बिचार का शब्जेक्ट बाहर से मिलता है , ( थोड़ा टेक्निकल है यह ध्यान देने की आवश्यकता है यहां ) 
विज्ञान मय कोश के रिसेप्टर्स ( कान , नाक , जीभ, आंख, त्वचा रूपी कैमरा  ) संसार से , बाहरी बातावरण से बिषय लाकर बुद्धि द्वारा समझाकर मन को भेजता है।

 फिर मन,  चित्त में संग्रहित अनुभव के फाईल में अपना अनुभव ढुढंता है उससे संबंधित ,  फिर बिचार शुरू हो जाता है मन में ।
फिर मन उस बिचार को बुद्धि को भेजता है । फिर बुद्धि विश्लेषण करके डिसिजन मन को सुना देता है वापस फिर मन संकल्प करके  कर्म इंद्रियों को आदेश देता है , फिर कर्म होता है ।
उदाहरण - पांच लोग बात कर रहें हैं पार्क में या डाइनिंग रूम में या कहीं भी  । अब एक को बाहर से कोई बिषय मिल गया , अब उसको एक घटना याद आ गया पास्ट लाइफ का उसके चित्त में था , उससे वो एक घटना कहानी के रूप में सुनाया सबको  । 

अब बांकी पांच का रिसेप्टर्स रिसिभ किया उस बात को , फिर उसका बुद्धि एक्टिभ हुआ वो मन को भेजा , मन अपने चित्त में वैसा हीं घटना , मिलता जुलता घटना  प्री रेकर्डेड  फाईल से निकाला सोंचा , बुद्धि को भेजा , बुद्धि डिसिजन दे दिया मन को विश्लेषन करके , थोड़ा और बनाबटी बात मिला दिया , रोचक बना दिया उसको , भेज दिया मन को की तुम भी इस घटना को सुना दो , मन संकल्प किया फिर भेज दिया कर्म इंद्रिए मुख को , आदेश दिया , अब मुख सुनाने लगा , अब सब अपना अपना अनुभव शेयर करने लगा ग्रुप में । गपास्टिंग घंटों जारी होता है । सब सुनाना चाहता है बारी बारी से ।

इसमें हर तरह की बातें हैं किसी की बुराई है , किसी की बराई है , जो हैं इस ग्रुप में या नहीं भी है यहां उसके बारे में , अच्छी बुरी , तमाम तरह की बातें शुरू , अब दो उसमें बैठा सुन रहा है , सबसे ज्यादा उसको नुकसान हो रहा है सुनाने बाले के साथ साथ ,  सबका  कान ग्रहण कर रहा है और बुद्धि और मन के द्वारा यह कुसंग चित्त के हार्डिस्क के कुसंस्कार के फाइल में नोट हो रहा है ओटोमेटिक और इससे अंत:करण गंदा हो रहा है । भगवान और सबकी अपनी आत्मा सब देख रहें हैं साक्षी भाव में , उनको हमारे हरेक क्षण के हरेक संकल्पों का संज्ञान है । 
फिर उसी के अनुसार भगवान फल देते़ हैं । एक एक बात , संकल्प , विकल्प , कर्म कुकर्म , धर्म , अधर्म सब नोट हो रहा है , रेकर्ड हो रहा है चित्त रूपी चीप में , इसीजी रिपोर्ट के तरह भगवान और हमारी आत्मा के सामने से होकर गुजरते हुए सब नोट हो रहा है अंत:करण के चित्त रूपी चीप में । 

इसी चित्त रूपी चीप में पीछले कई जन्मों के कर्मों के रेकर्डेड, संचित कर्म से कुछ हिस्सा निकाल कर भगवान प्रारब्द्ध के रूप में हमें दिए हैं जन्म के समय  और इस जन्म के क्रियामाण कर्म का कुछ हिस्सा का फल भी हमको मिल रहा है और बांकी संचित भी हो रहा है अच्छा बुरा दोनों कर्म , सारे बिचार, संकल्प  भी संस्कार और कुसंस्कार के फाइल में बिचारो के क्वालिटी के अनूसार जमा हो रहा है , संस्कार बन भी रहा है और  बिगड़ भी रहा है । 
बन कैसे रहा है तो जब कोई ग्रुप में भगवान का और गुरू के गुण धाम लीला का चर्चा कर रहा है तो बन रहा है संस्कार और कुसंस्कार मिट रहा है चर्चा से अंत:करण शुद्ध हो रहा है  । पर वहीं गंदा बात हो रहा है तो पहले जो भी अर्जित किया सुसंस्कार तो वो मिट भी रहा है , अंत:करण गंदा हो रहा है । और भगवान की चर्चा , अच्छी बातों से सुसंस्कार बन रहा है और कुसंस्कार मीट रहा है ।केवल यही दोनों फाईल एक दुसरे को मिटा सकता है ।

इस अंत:करण में दो फाईल ( प्रकोष्ट) और है पाप और पुण्य का यह एक दुसरे को नहीं मिटा सकता है कभी भी । 

तो हमारा अंत:करण गंदा है कुसंस्कारों से , यही फाईल हमको मिटना है । अंत:करण शुद्ध करना है । पाप पुण्य और सतोगुणी फाईल सुसंस्कार वाली वो तो नहीं मिटेगा हमसे वल्की इसी सतोगुण से हीं तमोगुण और रजोगुण रूपी कुसंस्कार का फाइल नष्ट होकर अंत:करण शुद्ध हो जाता है । 
लेकिन हम कमाए चार पैसा और खर्च कर दिए दस पैसा तो यह नहीं मिटेगा और गंदा होता जाएगा पर हम कमाई किए और जमा कर लिए तो अंत:करण जल्दी शुद्ध हो जाएगा  और फिर पाप पुण्य और सतोगुण तो भगवद् प्राप्ति के समय ही गुरूदेव उसको भष्म कर देते हैं पाप और पुण्य दोनों को ।‌ और फिर अंत:करण दिव्य बना देतें हैं । 

अब लंबा हो जाएगा पोस्ट तो विवेक के बारे में और अंत:करण के चौथे एलिमेंट अहंकार  के बारे में हम अगले पोस्ट में समझेंगें , इसलिए अगला पोस्ट बहुत महत्त्वपूर्ण है । श्री राधे :- क्रमश:

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