भक्त कौन ?
श्री महाराज जी ने अपने प्रवचन में यह कहानी सुनाए थे ।
तो मैं अपने मेमोरी के आधार पर लिख दिया :-
एक दरबेश था अरब में , खुदा का भक्त पांच टाईम नियम से नमाज़ पढ़ता था , अनेकों चेले बनाए थे उसने । चेले मांग कर लाता था, जिससे सबका गुजारा चलता था ।
उसके पास पीतल का टोंटी बाला लोटा था । एक कंबल था , एक कफनी था , एक लाठी था । इसके अलावे कुछ भी नहीं था उसके पास, विल्कूल संन्यासी साधु की तरह था वो फकीर । हर समय अल्लाह अल्लाह जपता रहता था ।
उसकी प्रसिद्धि दुर दुर तक थी कि वो बहुत बड़ा भक्त हैं ।
एक दिन उसी राज्य में वो सुना कुछ लोगों से कि उस अरब देश का साह बहुत बड़ा भक्त हैं ।
वो सोंचा की एक साह , ( उस राज्य का दिवान था नबाब था ) जिसके पास अकूत दौलत है , नौकड़ चाकर , सोना चांदी का भंडार है वो भक्त कैसे ?
उसने सोचा चलता हुं उसके दरबार में देखता हुं उसको ।
वो राजा अपने सिपाहियों को बोल रखा था कि " इस दरबार में कोई साधु , कोई दरवेश , कोई फकीर ,कोई गरीब व्यक्ति आए तो उसे रोका ना जाए और बिना मुझसे पुछे , बिना समय गंवाए उनको मेरे पास आदर के साथ लाया जाए दरबार में या रंगमहल में भी, और उनका हर प्रकार से ख्याल रखा जाए "।
तो उस दरवेश को उसका सिपाही बड़े आदर के साथ रंगमहल ले लाया । चुंकि राजा को तो मालुम नहीं था कि उसका सिपाही उसके ही आज्ञा से बिना किसी पुर्व सुचना के किसी दरवेश को उसके दरबार ला रहा है ।
अत दरवेश जब दरबार में हाजिर हुआ तो उस समय वो राजा सोने के पलंग पर लेटा था , पलंग के चादर में हीरा मोती जरा हुआ था । दस अति सुंदरियां उनके सेवा में लगे हुए थे ।
और कुछ नर्तकियां रंगमहल के प्रांगन में नाच रही थी । चारों तरफ हीरा मोती जरा हुआ था खंभे में , दिवालों पर चारों तरफ।
अब जैसे ही राजा ने देखा कि उसका सिपाही आदर के साथ एक दरवेश को अंदर लाया है तो वो उठ खड़ा हो गया और दौड़ कर दरवेश का जुता अपने हांथ खोल से खोल कर उसका चरण धोना चाहा । पर दरवेश आग बबूला हो गया और बोला :-
"नहीं राजन तुममें मेरा चरण छुने का योग्यता नहीं हैं । मैं तो सुना था कि तुम खुदा का बहुत बड़ा भक्त हो पर तुम तो यहां भोग विलास में लिप्त हो । मैं तो यही देखने आया था और अब मैं यहां दो सेकेंड भी नहीं रूकुंगा , मैं चलता हुं " । यह बोल कर वो जाने को मुड़ा ।
पर उस दरबेश के इतना बोलते हीं राजा ने आदर के साथ उसको मनाने का और अपना आतिथ्य स्वीकार करने और सेवा का अवसर देने का बिनती करने लगा । पर दरवेश नहीं मना और जाने जाने को हुआ ।
तो फिर राजा ने कहा उससे कहा " आपकी आज्ञा हो तो मैं इसी समय सबकुछ छोड़ कर आपके साथ चलने को तैयार हुं ।"
दरवेश कुछ पल रूका पर मान गया । सोचा देखता हुं इसका परिक्षा लेकर ।
राजा ने उसी समय अपना मुकुट , अपना राजसी कोट जिसमें किमती हीरे मोती जरे थे , जुते जिसमें अत्यंत किमती हीरे जरे थे, पल में उतार दिया सब। और नंगे पैर उस दरवेश के साथ चल दिया हमेशा के लिए उसके साथ ।
पर कुछ किमी. चलने के बाद राजा ने देखा वो दरवेश किसी कारण से परेशान हो रहा है और बार बार पीछे मुड़ मुड़ कर देख रहा है ।
तो राजा ने पुछा की हुजूर आप कुछ परेशान लग रहें हैं क्या हुआ ?
तो दरवेश बोला , राजन मैं अपना टोंटी बाला लोटा आपके दरबार में भूल आया हुं । एक हीं लोटा था मेरे पास ।
जब राजा ने कहा उस फकीर से कि आप हुजूर एक छोटा सा पीतल के लोटा के लिए परेशान हैं ? मैं तो आपके एक आदेश पर अपना राज पाट , अकूत खजाना हीं नहीं यहां तक कि अपने पांच अति सुंदर रानियों और चार पुत्र एवं बारह कुवांरी पुत्रियों को हमेशा के लिए छोड़ आया हूं आपकी और खुदा कि सेवा में, वो भी बिना उन लोगों से मिले और बताए और बिना अंतिम बिदाई के । और हमेशा के लिए आपके साथ खुदा की सेवा में रहने का निश्चय कर लिया है एक पल में ।
पर आपका मन तो उस तुक्ष लोटे जैसा धन में बसा है ?
इतना सुनते ही वो दरवेश भौंचक होकर उस राजा के चरणों में गिर परा और लगा गिड़गिड़ाने। और कहा राजन भक्ति क्या है मैंने जाना हीं नहीं अबतक । मेरा जीवन व्यर्थ साबित हुआ आज ।
आज मुझे पता चला कि बाहर के संसार से भक्ति का कुछ भी लेना देना नहीं है । हमारे अंदर का संसार जबतक नहीं मिटेगा जबतक कोई लाभ नहीं ।
आज से आप हमारे गुरू है, आपने हमारी आंखें खोल दीं और मुझे भक्ति का मार्ग बता दिया , आज से मैं आपका दास हुं ।
राजन आप अपने राज्य वापस लौट जाइए । आपसे बड़ा भक्त अभी समुचे अरब में नहीं है कोई , मैं अभी जाना , मुझसे घोर अपराध हो गया । आज ही यह जाना मैं कि भक्ति किस चीज का नाम है, कैसे कि जाती है । मुझे माफ़ कर दिजिए । मैं आपके बाहर के संसार से आपको नाप लिया ।
मेरी गुनाह खुदा कभी माफ नहीं करेंगें । इस प्रकार वो दरवेश रोता हुआ चला गया ।
तो हमारे श्री महाराज जी का सारा सिद्धांत अंदर के संसार को मन से मिटाने का है । जो यह भुल जाते हैं वहीं किसी के बाहरी व्यवहार से उसको टोकते रहते हैं और लगते हैं ज्ञान देने । इसका मतलव ऐसा जीव श्री महाराज जी के सिद्धांत के A को हीं नहीं समझा है तो वो B C D E आदि को क्या समझेगा ?
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