मानव गुढ़ रहस्य भाग :- २
गुढ़ रहस्य भाग :- २ ( ध्यान से किन्तु भाव से पढ़िए इस पोस्ट को , लाभ होगा ।)
इस पोस्ट में कुछ पागलपन की बात करूंगा तब आगे और रहस्य की बात करूंगा थोड़ा पागलपन के साथ साथ रहस्य की भी । मैं क्लिष्ट भाषा का भी इस्तेमाल नहीं करूंगा,
तो आइए कुछ साधना के मार्ग में उनको पाने के लिए कुछ व्यवहार में उतारने वाली पागलपन की बात करतें हैं ।
कैसे एक घंटे की साधना में बारह घंटे साधना करने का लाभ मिले । भाव आए , आंसु आए , बला की तरप और व्याकूलता आए कैसे ? जो भी तत्वज्ञान और पद गाए हैं उसको व्यवहार में लाए सहज रूप में ?
ऐसे तो बहुत प्रबचन सुना , सुन भी रहें हैं ,बहुत किर्रतन भी कर रहें हैं , रूपध्यान भी करतें हैं पर महसूस नहीं होता कुछ ।
तो कहीं न कहीं कुछ गडबर तो जरूर हो रहा है , श्री महाराज जी का सिद्धांत और रूपध्यान का विज्ञान तो गलत हो नहीं सकता , तो कुछ कमी है हममें , हम ठीक ठीक साधना नहीं कर पातें होंगे इतना प्रबचन सुनते हैं पर ठीक ठीक नहीं समझते होंगे , जरूर कहीं हमसे चूक हो रही है ।
मैं ठेठ और गंवारी भाषा का इस्तेमाल कर रहा हुं इस पोस्ट में ।
संसारिक दृष्टांत का भी इस्तेमाल करूंगा । और मुझे पागल हीं समझ लिजिए , कोई चिंता नही , लोक लाज , लोक व्यवहार त्याग के पागल हुं मैं इस मामले में और निपट गंवार भी । सब ज्ञान का और समाजिक मुखौटा का चोला थोड़ी देर के लिए त्याग दिजिए । मेरे पागलपन पर साधक को छोड़ कर वांकी को हसीं भी आएगी । कोई चिंता नहीं । हम साधकों को लाभ होगा , बस यह काफी है ।
और बात करते करते गुढ़ रहस्य की भी बात कर दुंगा इसमें या आगे के पोस्ट में ।
तो शुरू करते हैं - देखिय संसार में जितने भी फेमस वैज्ञानिक हुए हैं बड़ा वैज्ञानिक जिसका की बच्चा बच्चा नाम जानता है वो हुए हैं न्यूटन , आंइस्टिन , आर्किमिडिज आदि ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे । तो संसार में भी जीवन में बहुत कुछ पाने और लोगों को देने के लिय ए लोग पागल बने। तो किसी चीज को पाने के लिए तड़प आवश्यक है , बला की तरप , व्याकुल्ता । बिना इसके ना तो संसार का बढ़िया सामान मिलता है और ना हीं आध्यात्म का । और इसके लिए एवनौर्मल बनना होता है ।
तरपता हुआ व्याकूल लोग पागल हीं दिखेगा सामान्यतः वांकी जीव को । सामान्य जीव कुछ नहीं पा सकता है । क्या पा लेगा , धन रखना दूकान , पद समाजिक प्रतिष्ठा इकठ्ठा कर लेगा , पर इससे ज्यादा कुछ नही ।
अपने और अपने परिवार के लिए जी लेगा , बुरा नहीं है यह और न मैं बुरा कहता हुं इन सबको , सहज गुण है , सामान्य व्यवहार है कमाना खाना , बच्चों को पालना ।
थोड़ा दान वान करके परोपकार भी लोग कर लेतें हैं ।
खैर छोड़िए इन बातों को ।
आगे बढ़ते हैं । तो पागल होना होगा । लोक लाज , लोक व्यवहार और समाजिक मुखौटा को त्याग कार रूपध्यान साधना करते करते पागल बनना होगा ।
( श्री महाराज जी के सिद्धांत को याद किजिए एक बार यहां -" जब तक हमको संसार में अपने ज्ञान , बिद्या , बुद्धि के बल का भान, अहंकार होगा और इसका आश्रय हम लेंगें तब तक हम कुछ भी दुर्लभ बस्तु नहीं पा सकते हैं । )
न्यूटन पेंड़ के नीचे लेटा था अनपढ़ था , इसलिए सहज था , निर्मल था , कचड़ा कम था अंत:करण में ,भगवान ने संसार को कुछ देने के लिए उसको चुना , वो लेटा था , पर आंखें खुली थी उसकी , जागरूक था , सहज था वो और सजग भी था, और पागल भी । सेब गिरा । अब कोई नौर्मल आदमी होता वो तो सोचता की भाई कोई सामान नीचे हीं तो गिरेगा ?
पर वो था पागल , सहज पागल वो खुद से परिप्रश्न करने लगा । हम लोग प्रश्न करते हैं तो मन में बहुत बात रखकर करतें हैं इसलिए सहज नहीं हो पाते , हम लोग संत से प्रश्न करते हैं तो कुछ हीं लोग जानने के लिए करतें हैं जिज्ञासु भाव से , ज्यादातर लोग ,लोगों के नजर में आने के लिए प्रश्न करने के लिए माईक थामते है , लोग हमको देखें , लोगों के ध्यान को आकर्षित करने का प्रयास है । कुछ पाने का और जानने का प्रयास नहीं , बहुत कम है ऐसे लोग ।
तो खैड़ छोड़िए इन बातों को , काम की बात करें ।
तो न्यूटन ने बेतुका प्रश्न करने लगा मन ही मन , मन बुद्धि और विवेक में बहस छिड़ गया उसके । लोग देखा उसको खुद से बड़बराते हुए , समझा पागल है ।
लोग पागल हीं समझते हैं , और सचमुच एक असली पागलपन हीं है यह ।
संसार में भी पागलों को नंगा धड़ंग या बेतरतीब कपड़ा पहन कर घुमते हुए जीव को देखा होगा । वो बेचारा क्यूं पागल हुआ ? कुछ संसार के चीज के अभाव में या प्रचुरता में , पर पागल हुआ कुछ , लोक लाज , लोक व्यवहार दोनों का भान नहीं है उसको भी , वो उदेश्य हीन पागल है, मानसिक रोगी । खैड़ छोड़िए इसको भी ।
तो न्यूटन भी पागल हो उठा अपने प्रश्न के उत्तर पाने के पीछे । कोई किताब में नही ढूंढा उत्तर। बस मन बुद्धि और सहज विवेक में युद्ध शुरू हो गया , एकाकी हो गया ।
पागलपन कि हद तक गया उत्तर भगवान सुझा दिए । ध्यान दिजिए जब इंसान किभी चीज के लिए पागल हो कर प्रयास करता है चाहे वो सामान भौतिक हो या परालौकिक । भगवान दया करके कृपा कर देतें हैं , और उन चीजो में ज्यादा कृपा करते हैं जिसमें नि:स्वार्थ आत्म कल्याण की बात हो या परोपकार की बात हो । आत्मकल्याण का स्वार्थ निश्वार्थ इसलिए हुआ कि इसमें हमारे देह का सूख , मौज मस्ती शामिल नहीं है । आत्मा का सूख नि:स्वार्थ होता है (याद किजिए श्री महाराज जी के तत्वज्ञान को यहां )
तो न्यूटन का अपना स्वार्थ नहीं था , संसार का कल्याण था उसमें इसलिए भगवान उसको तीन नियम का ज्ञान दे दिए । तीन गति नियम , गुरूत्वाकर्षण का भेद , सिद्धांत दिए उस पागल को । संसार का भला हो गया । उस बेचारे को यह ज्ञान ना तो किसी बुक से मिला और ना हीं किसी प्रवचन से । और ना किसी संसारिक जीव से ।
उसको जो कुछ मिला वो पागलपन के हद की साधना से भगवान से । ऐसे वैज्ञानिक के अंदर कौन सा बल होता है वो रहस्य भी आगे के पोस्ट में पता चलेगा । आपसे ऐसे हीं चर्चा करते करते आगे के पोस्ट में।
दिन प्रति दिन कलयुग बीत रहा है । हमलोगों के सोचने समझने कि शक्ति क्षीण होती जा रही है ।
भगवान संत का शरीर , गुरू का शरीर धारण करके आतें हैं हमारी बहुत मदद करते हैं , यह उनकी कृपा है । हमे हमारे परम कल्याण के लिए बहुत सहज भाषा में हमें दुर्लभ बात कहते हैं खेल खेल में ,तो कभी मजाक मजाक में तो कभी गंभीर प्रबचन में तो कभी बात को हमारे लिए मजाक करके , शेरों शायरी में रोचक बना कर हमारे खोपड़ी में डालते हैं । ताकी हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ हो , हमारा अंत:करण शुद्ध हो , ( यह कैसे होता है शुद्ध , भी रहस्य की बात आगे के पोस्ट में पता चलेगा ।)
तो हमको भी पागल होना होगा । नोर्मल जीव नौर्मल संसार का चीज हीं पा सकता है , वो भी साधारण चीज हीं ।
तो कैसे अब व्यवहार में कैसे करें तो समझिए ।
एक घंटा के लिए अपने घर में कमरा बंद होकर एकांत सुनिश्चित कर लिजिए , घर में सबको बोल दिजिए भुकंप भी आ जाए आपको डिस्टर्भ ना करें किसी हाल में , थोड़ा डरा भी दिजिए घर के मेंबर को कि देखो मैं साधना करने जा रहा हुं अगर डिस्टर्भ किया बीच में तो या तो मैं पागल हो जाऊंगा या तुमको पागल बना दुंगा । फिर मेंटल एसाइलम लेके दौड़ना मुझको ।
तो डरा दिजिए , ए भी बोल दिजिए कि इस दौरान कुछ भी आबाज मेरे कमरे से आए बाहर या परम शांती छा जाए तो चिंता मत करना , खटखटाना नहीं दरबाजा किसी भी हाल में ।
और एक बात और ध्यान रखिए कि उस रूम में कोई नूकिली सामान या शरीर को चोट लगे ऐसा सामान ना हो । बहुत आवश्यक है ।
अब सहज रूप से जीस आसन में आराम हो या लेट के या बैठ के , किसी भी पोस्चर में बैठ जाइए , कपड़ा ढिला डाला हो , राधेश्यामीं हो , टिका हो तो और अच्छा।
हां पर्दा उर्दा खिड़की का लगा दिजिए , बाहर का रौशनी और दृश्य ना दिखे ।
लोक लाज और लोक व्यवहार कमरे से बाहर निकाल दिजिए, एटीकेट का चक्कर छोड़िए । स्वलाज भी त्याग दिजिए ( हैजिटेशन भी त्याग दिजिए ) सहज और विल्कूल नेचुरल बन जाइए , तीन चार साल का भोला बालक , सब ज्ञान वान का चोला तो बाहर हीं रख आए हैं आप । अब होगा न्यूटन की तरह मन बुद्धि , विवेक में बहस शुरु , चिंतन शुरु पर उदेश्य अलग , उद्देश्य केवल हरि गुरु का दिदार , उनका रस रूप गंध को पाने की व्याकुलता ।
अब साधना से पहले कुछ भावुक क्षण बिताया हूआ खुद के अनुभूति का याद, आध्यात्मिक प्रेम के भावुक क्षणों को याद करिए चार पांच मिनट चिंतन , मनन , करने का अभ्यास , मनोभाव बनेगा , इससे , साधना के पहले , रूपध्यान में तरप पैदा करने में , आंसु लाने में आसानी होगी । माहौल बनैगा कमरे में और मन में भी ।
पिछला चल रहा संसारिक चिंतन से मन भगवान की तरफ मुड़ जाएगा सहज ।
अब मनपसंद, श्री महाराज जी का पद् चुन लिजिए , जिस पद में दीनता , सहिष्णुता और उनके विरह के ताप की आग हो वो पद सबसे पहले शुरु कर दिजिए ।
फिर साधना और तरप , परम व्याकूलता पैदा करिए ।
बढ़ाते जाईए साधना करते करते भोले बालक की तरह अपने मां राधा रानी गुरूदेव या मां राधारानी या यूगल सरकार और श्री महाराज जी को समाने खड़ा करके साधना करते करते लोटने लग जाईए । विल्कूल बच्चे की तरह ।
देखिए बच्चा जब किसी चीज के लिय मां को बोलता है और जब मां नहीं ध्यान देती है तो वो भोला बालक पहले एक्टिंग में जमीन पर लोट पोट करने लगता है सिर्फ एक्टिंग में लेकिन समय बिताता है यह उसका एक्टिंग हकिकत में बदल जाता है । पहले उसको आंसु़ नहीं आ रहा था पर अब आने लगा । अब वो सहज और स्वभाविक रूप से छिड़िया जाता है। खुब विलख विलख कर सुबक सुबक कर करूण रूप से रोने लगता है । हिंचकी आने लगती है और नांक और आंख और मूख सबसे पानी आने लगता है फिर मां उठाती है उसको द्रवित होकर । या गुस्से में , मां का गुस्सा भी उसका प्यार है । ठीक उसी तरह करिए । लोट पोट करिए कमरे में कभी पागल की तरह फर्श कर तो कभी कुर्सी पर , सुध बुध खो जाए , नो हैजिटेशन , स्वलाज भी नहीं । व्याकूल हो भोला बालक के तरह सहज ।
अब पद वद् कुछ नहीं सिर्फ तरप , करुण पुकार । अगर पद् से पुकार हो विरह का तो और बढ़िया या कोई भी विरह का फिल्मी गीत स्वाभाविक आ जाए तो कोई हर्ज नहीं ।
लिजिए आपसे बात करते करते मुझे व्याकूलता आ गई :-
मैं बंद कर रहा हुं लिखना , अब लिखा हीं नहीं जाएगा ।
अब अगले पोस्ट में । अब इस गीत के साथ मेरे साथ तरपिए , धुन याद करिए इस गीत का और तडपिय फर्श पर :-
😭😭😭😭😭😭😭🙏🏻🌹🙏🏻
कब आओगे कब आओगे
जिस्म से जान जुदा होगी क्या तब आओगे
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
आजा रे.. के मेरा मन घबराए
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
ओ.. देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
कहाँ है रौनके महफ़िल यही सब पूछते हैं
कहाँ है रौनके महफ़िल यही सब पूछते हैं
कहाँ है रौनके महफ़िल यही सब पूछते हैं
बरहा तेरे न आने का सबब पूछते हैं
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
ओ.. देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
हर बात का वक़्त मुक़र्रर है हर काम कि सात होती है
हर काम कि सात होती है
वक़्त गया तो बात गयी बस वक़्त कि कीमत होती है
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
आजा रे.. के मेरा मन घबराए
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
रस्ता रोका कभी काली घटा ने
घेरा डाला कभी बैरन हवा ने
रस्ता रोका कभी काली घटा ने
घेरा डाला कभी बैरन हवा ने
बिजली चमक के लगी आँखे दिखाने
बिजली चमक के लगी आँखे दिखाने
बदले हैं कैसे-कैसे तेवर फ़ज़ा ने
बदले हैं कैसे-कैसे तेवर फ़ज़ा ने
सारे वादे इरादे, बरसात आके
सारे वादे इरादे, बरसात आके, धो जाती है
मैं देर करता नहीं, देर हो जाती है
मैं देर करता नहीं, देर हो जाती है
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
आजा रे माही मैंने अंखियां उलीट दिया ।
दिल दिया ऐतबार कि हद थी
जान दी तेरे प्यार कि हद थी
मर गए हम खुली रही आँखें
ये तेरे इंतज़ार की हद थी
हद हो चुकी है आजा, जाँ पर बनी है आजा
महफ़िल सजी है आजा के तेरी कमी है आजा
देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
ओ.. देर न हो जाए कहीं देर न हो जाये
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
रस्ता उडीकदीयां रस्ता उडीकदीयां
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
आजा वे माहीं..
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
दर से हटती नहीं नज़र आजा
आजा दिल कि पुकार पर आजा
देर करना तेरी आदत थी सही
देर से ही सही मगर आजा
देर से ही सही मगर आजा
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
आजा आजा..
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
आजा वे माहीं तेरा रस्ता उडीकदीयां
क्रमशः- अगले पोस्ट में , आगे का पोस्ट उत्तरोत्तर गहरा बात जानने बाला बड़ा इंटरेस्टिंग होगा और श्री महाराज जी के फिलौसफी पर हीं होगा पर अभी तक नहीं सुना होगा , वो होगा ।
श्री राधे ।
(लिखने में टाइपींग मिस्टेक के तरफ ध्यान ना दें )
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