भगवान के नाम स्मरण , गुण गणन से लाभ ।।

हम सभी ने श्री महाराज जी के प्रबचन में सुना है कि ।
प्रत्येक जीव के अनंत जन्म हुए , अनंत बार मानव बने ।
अब प्रत्येक जन्म में मान लिया जाए की केवल एक हीं पाप किया और एक हीं पुण्य किया तो अनंत जन्म के अनंत पाप और अनंत पुण्य हमारे अंत:करण में जमा है।

 अब मान लिया जाए थोड़ी देर के लिए कि भगवान का नाम लेने से पाप कटता है तो अनंत जमा पाप से अनंत पाप भी माईनस हो गया तो , फिर भी अनंत पाप हीं बचेगा , तो  ऐसा पाप कटने से क्या फायदा हुआ , अनंत तो बचा ही है अभी ?

 इसलिए पाप पुण्य दोनों हरि गुरू द्वारा भगवद् प्राप्ति के समय हीं भष्म होता है, ।
रूपध्यान के साथ भगवन् नाम लेने से अंत:करण का कुसंस्कार समाप्त होकर यह शुद्ध होता हैं  तब गुरू द्वारा दिव्य बना कर सब पाप पुण्य भष्म करके प्रेम दान दिया जाता है ।

और भगवान भी गीता में स्पष्ट कहें हैं अर्जुण को कि अर्जुन तुमको अब गुढ़तम रहस्य बतलाता हुं । क्या पाप पाप का रट लगाए बैठे हो  । 

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ॥66॥ गीता

अर्थात - सभी कर्मों और धर्मों को छोड़ कर मेरे शरण में आ जाओ फिर मैं जैसा आदेश देता हुं वो बेहिचक करो , मैं तुम्हारे सभी  पीछले पापों को नष्ट कर दुंगा और आगे का भी नोट नहीं करूगां । 

तो इस प्रकार श्री महाराज जी ने कहें हैं कि पाप और पुण्य शरणागति के पश्चात हरि गुरू द्वारा नष्ट होता है ।
किसी भी साधन से यह भष्म नहीं होगा किसी का ।
चाहे कितना गंगा नहा लें , जप तप नाम ले ले , दान हवन करले ।
तो यह तो श्री महाराज जी का प्रारंभिक प्रबचन है फिर कैसे लोग कन्फ्यूज होते हैं और पहला पाठ हीं भूल जाते हैं ।
गंभीर बात है । तो ऐसा कन्फ्यूजन होना‌ यह बतलाता है कि कुछ लोग श्री महाराज जी की भी पुजा करने लगे हैं कर्मकांड की तरह  और आरती उतारने लगें हैं फिजिकल ड्रामा । सिद्धांत का समझ नहीं बहुतों को । और फेसबुक पर भी बहुत कम लोग ही सिरियस है । जो समझते हैं सिद्धांत  । कोई गलत पोस्टर बना के डाल दिया पसंद करने लगे और तत्वज्ञान भूल गए । हे राधे । राधे राधे । 
मैं तो सबका भले के लिए लिख देता हुं , नहीं तो क्या मतलव ।,

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