जो बीत गई सो बात गई , आगे की सुधि लिजिए ।
हमारा कर्म हीं फल के रूप में भगवान हमें देतें हैं । हम भगवान की दी हुई शक्ति का दुरूपयोग करतें हैं तो प्रारब्ध प्लस क्रियामान कर्म का भोग प्रत्येक मनुष्य को भोगना हीं पड़ता है। अगर हम भगवान की दी हुई शक्ति का दुरूपयोग करतें हैं तो रोग , शोक , दु:ख और दुर्गति को खुद निमंत्रण देकर बुलातें हैं यहां तक मौत को बुलातें हैं ,और मिथ्या आरोप भगवान और भाग्य पर लगातें हैं । अपने कर्मों को दोष नहीं देकर कहतें हैं कि भाग्य में लिखा था । भगवान ने बुला लिया ।
भगवान ने रोग दे दिया आदि , आदि ।
हमारा गलत कर्म हीं दैविक मृत्यू और भौतिक मृत्यु तक को निमंत्रण देकर बुलाती है । इसी को कहतें हैं अकाल या असामयिक मृत्यू । ।
भगवान की दी हुई शक्ति का सदुपयोग करके हम भगवान को प्राप्त कर सकतें हैं , यह मनुष्य के हांथ में हैं । क्रियामान कर्म ही से भाग्य का , किस्मत का निर्माण होता हैं । हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं । भगवान किसी को नहीं रोकते कोई कर्म करने से ।
हां वो अकारण करूण भगवान दया बस , अपने दयामय स्वभाव बस हमारे उपर दया करके गुरू रूप में आतें हैं और हमें तत्त्वज्ञान कराकर हमे सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा , श्रेय मार्ग पर चलने की प्रेरणा देतें हैं । फिर भी हममें से बहुत हरि गुरू पर विश्वास और श्रद्धा नहीं रखते और अपनी दुर्गति को खुद निमंत्रण देतें हैं । और दोष को भगवान को देतें हैं ।
हमारी विडम्बना है , हम अहंकार में चुर अपने को विद्वान समझतें हैं , भौतिक सुख को सुख मानने का भ्रम और विज्ञान को अध्यात्म के उपर समझ कर मानव जीवन को बिषय भोग का बस्तु समझ कर , जीवन को गमा लेतें हैं । और जब बुढ़ापा आता है तब नशा टुटता है तबतक देर हो जाती है । तब पछतातें हैं । कलयुग में केवल हमारे गुरूदेव के बतलाए मार्ग को अपना कर हीं मनुष्य अपनी बिगड़ी हमेशा के लिए बना सकतें हैं । दुसरा कोई मार्ग , पूजा-पाठ , जप-तप योग , तिरथ-विरथ से कुछ नहीं होने बाला , सब व्यर्थ है कलयुग में । केवल हमारे श्री कृपालु जी महाराज के बतलाए मार्ग को अपना कर भगवान की भक्ति करके जीव अपना कल्याण कर सकता है ।
हमें भगवान के दिए हुए शक्ति का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए । पिछले कर्मों को अब हम बदल नहीं सकतें वो तो हो गया , लेकिन आज से अभी से श्री महाराज जी के बतलाए मार्ग को अपना लें , सिरियस हो जाएं तो परम कल्याण सुनिश्चित हो जाएगा ।
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