ब्रह्मा , विष्णु , महेश लोक
भईया । आपने पुछा है कि शिव लोक, शंकर जी , विष्णुलोक , कारणार्वसाई , क्षीरोदसाई और गर्भोदसाई विष्णु भगवान , ब्रह्मलोक , ब्रह्मा जी के बारे में श्री महाराज जी के तत्वज्ञान के आधार पर समझाने के लिए तो यह है ।
भईया श्री कृष्ण से श्री महाविष्णु उत्पन्न हुए हैं जो अनंत ब्रह्माण्ड का मालिक है । यानि समष्टि ब्रह्माण्ड के मालिक ।
ए महाविष्णु भी भगवान श्री कृष्ण के मात्र एक कला का अंश हैं । और उसी महाविष्णु से फिर अनेक श्री विष्णु जो हरेक पृथ्वी के अलग अलग है वो उत्पन्न हुए हैं ए व्यस्टि ब्रह्मांड यानी एक पृथ्वी का मालिक है । और फिर उन्ही श्री महाविष्णु का एक निराकार स्वरूप है, वो सभी जीवों के आत्मा के साथ सायुज्य सखा के रूप में उसके हृदय में कारण शरीर में हमेशा व्याप्त रहते हैं। और सभी के मन में उठे संकल्पों को नोट करतें हैं उसके चित में ।
तो बिष्णु तीन हो गए कारणार्वसाई , क्षीरोदसाई और गर्भोदसाई ।
मैं एक समष्टि ब्रह्मांड यानि अनंत ब्रह्मांड में व्याप्त होकर और एक श्री विष्णु जो व्यष्टि ब्रह्मांड यानि एक पृथ्वी में व्याप्त होकर अपने साकार रूप में और एक प्रत्येक जीवो में निराकर रूप में व्याप होकर दिव्य विष्णु लोक में निवास करते हैं। क्षीर सागर भी विष्णु लोक में हीं है । और विष्णु लोक भी दिव्य लोक में है जो विरजा नदी के ऊपर है ।
ए सभी भगवान श्री कृष्ण के हीं स्वरूप शक्ति के अंश है ।
अब सभी विष्णु जैसे श्री महाविष्णु क्षीर सागर में शेषनाग शईया पर अपने ह्लादिनी शक्ति कमलारानी के साथ अपने साकार रूप में और श्री विष्णु , वो भी अपने ह्लादिनी शक्ति श्री लक्ष्मी जी के साथ अपने साकार रूप में शेषनाग पर रहते हैं । तो वो श्री महाविष्णु और श्री विष्णु भी विष्णु लोक में हीं रहते हैं पर एक व्यष्टि ब्रह्मांड में और दुसरा समष्टि ब्रह्मांड में तीसरा निराकार रूप में जीव में व्याप्त रहते हैं । और अपना अपना कार्यभार देखते रहते हैं । जैसे प्राईम मिनिस्टर और गृहमंत्री दिल्ली में रहते हैं ।
ए जो श्री विष्णु निराकार रूप सबके ह्रदय में जीव के आत्मा के साथ रहते हीं हैं । उनसे जीव को प्राणशक्ति मिलती है ।
अब ब्रह्मा अपने ह्वादिनी शक्ति ब्रह्माणी के साथ ब्रह्मलोक में रहते हैं जिनके द्वारा भगवान अपनी नीज शक्ति से ब्रह्मांड के हरेक पृथ्वी पर अनेक मायाबद्ध जीवों को उत्पन्न किए । तो ए ब्रह्मा स्वंय तो माया से अलग रहते हुए , मुक्त होते हुए ब्रह्म लोक में जो विरजा नदी के नीचे है माया के एरिया में ,उसमें रहते हैं । इसलिए रहते हैं कि मायातित होकर माया के क्षेत्र के ब्रह्मलोक में रहकर माया का संचालन करते हैं वहां से । भगवान की शक्ति से भगवान की माया का संचालन । अगर ए माया के क्षेत्र में नहीं रहेंगे तो भगवान के जीव शक्ति यानि हम सभी प्रकार के माया बद्ध जीव जो दिव्य लोक नहीं जा सकता है उसको कैसे उत्पन्न करेंगें ।
तो हरेक पृथ्वी का अपना अलग अलग ब्रह्मा और उनका अपना अपना ब्रह्मलोक भी है । ए सभी ब्रह्मा भी भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप शक्ति का हीं अंश है ।
अब हरेक पृथ्वी का अलग अलग भगवान शिव भी है यानी शकंर भी है । तो ए सभी भगवान् शिव भी, भगवान श्री कृष्ण के हीं स्वरूप शक्ति का हीं अंश है । तो हरेक शंकर अपने मुल स्वरूप में विरजा नदी के ऊपर दिव्य लोक अवस्थित शिव लोक में स्थित कैलास पर्वत पर अपने ह्लादिनी शक्ति के साथ यानि पार्वती जी के साथ साकार रूप में निवास करते हैं और हरेक पृथ्वी पर भी अलग अलग कैलास पर्वत है , तो उस पर वो अपने शक्ति स्वरूप में रहते हैं । यानि ऐसे समझिए की उनका अपना औफिस अपने अपने पृथ्वी पर कैलाश पर्वत पर भी है , जहां पर वो अपने प्रकाश स्वरूप में निवास करते हैं । पर इन सबका हैडक्वाटर दिव्य लोक में स्थित शिव लोक है । जहां पर ए सभी शकंर अपने मूल स्वरूप में रहते हैं और स्वरपशक्ति के रूप में, प्रकाश रूप मे सभी पृथ्वी पर अवस्थित कैलास पर्वत पर निवास करते हैं । हरेक पृथ्वी का कैलास पर्वत उस पृथ्वी का धुरी है जो दिव्य शक्ति का केंद्र है पृथ्वी का ।
पर श्री महाराज जी ने हमें हिदायद दी है कि यह सब केवल लक्षण विशेष के आधार पर अंतर है , जैसे पानी एक ही है , जल रूप है जिसको कि हम पीते हैं । और उसी का एक रूप बर्फ है और तीसरा निराकार रूप भाफ है ।
इसलिए हमें भगवान श्री कृष्ण और विष्णु जी मे़ शंकर जी में या किसी भगवान में अंतर करके किसी को छोटा बड़ा नहीं मानना है , भेद भाव नहीं रखना है । सब एक हीं हैं ।
यह बात है ।
और विरजा नदी दुध के तरह सफ़ेद दिव्य नदी है । तो विरजा नदी तक माया का लोक हैं । स्वर्ग लोक , पितृलोक , गंधर्व लोक देवलोक , ब्रह्म लोक सब माया के एरिया में है । और यह सब विरजा नदी के बाहर है नीचे है । विरजा नदी बहुत बड़ा गोलाई में है जो दिव्यलोक को घेरे हुए है सब ओर से ।
इस एरिया में माया का प्रवेश नही है ।
कहने का मतलव श्री महाराज जी तत्त्व ज्ञान दिए की माया तो भगवान की जड़ शक्ति , यानि अपरा शक्ति है । तो माया भगवान के गोलोक जा तो शक्ति है पर विरजा नदी पार करते हीं माया का कुछ नहीं चलता , शक्ति अपने शक्तिमान से मिल सकती है , पृथक तो नहीं हो सकती । पर वो निष्क्रिय हो जाती है । जैसे कमिश्नर के औफिस में कलक्टर जाकर ।
तो विरजा नदी के गोलाई के घेरे में सभी दिव्य लोक है।
सबसे पहले सिद्धलोक है जिसमें सिद्ध ऋषि-मुनि आदि तपस्या और ध्यान में लीन रहते हैं । उसके उपर शिव लोक है । भगवान शंकरजी का । उसके उपर भगवान विष्णु का वैकुंठ लोक है , उसके उपर नरसिंह भगवान का नरसिंह लोक है । यानि भगवान के तमाम अवतार का लोक । सबसे उपर साकेतपुरी है , भगवान राम का लोक और उससे भी ऊपर साकेतपुरी से सटा हुआ, भगवान श्री यूगलसरकार का , यानि प्रिया प्रीतम का लोक हैं गोलोक, जिसमें हमारे श्री महाराज जी भी है हमारी मां पद्मा और भगवती मईया के साथ । गोलोक के उपर कोई लोक नहीं ।
तो सभी विरजा नदी के ऊपर है । श्री राधे ।
महाप्रलय में माया का सभी लोक और सभी माईक जीव भगवान के महोदय में समा जाता है । गोलोक का कभी प्रलय नहीं होता ।
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