वास्तविक दृष्टिकोण
श्री महाराज जी ने जो दृष्टि हमें दिए हैं वो हर क्षेत्र के लिए दिय हैं । श्री महाराज जी का यही निर्देश है कि भक्ति सबको करना चाहिए और केवल भगवान ऐवं गुरू की हीं भक्ति करनी चाहिए यह अंतरंग मामला है । भक्ति अंदर की व्यक्तिगत साधना है । हमारा लक्ष्य भगवद्प्राप्ति हीं होनी चाहिए ।
अब शरीर के नाते हम संसार में भी कर्मयोग के सिद्धांत को अपनाकर कोई भी कर्म करना चाहिए हमें और देश भक्ति , सनातन वैदिक धर्म का प्रचार , गुरू के वाणी का प्रचार जन हित के लिए कर सकते हैं ।
लेकिन इसके लिए भी तत्वज्ञान , ज्ञान और साधना की परम आवश्यकता है खुद को योग्य बनाने के लिए ।
श्री महाराज जी ने हमें जोर देकर कहे है कि " साधना भक्ति रूपध्यानयुक्त साधना करके अपने अंदर को अंदर के संसार को , अपने अंत:करण को शुद्ध करते रहो , जैसे जैसे साधना की स्पीड , गहराई बढ़ती जाएगी अंदर का मशीन ठीक होते जाएगा, शुद्ध होते जाएगा । अज्ञान , कुसंस्कार मिटने लगेगा । जैसे जैसे गंदा बस्तु अनंत जन्मों का छंटने लगेगा वैसे वैसे बढ़िया बस्तु अंदर ठहरने लगेगा । जैसे तत्वज्ञान आदि । नहीं तो अंतःकरण का वर्तन गंदगी से , कचड़ा से भरा है उस पर जब तक शुद्ध तत्वज्ञान रूपी जल नहीं डालोगे यह कचड़ा साफ नहीं होगा । जैसे जैसे कचड़ा साफ होगा अंत:करण में शुद्ध तत्वज्ञान रूपी जल भर जाएगा । "
जैसे समझिए । एक बाल्टी में गंदा पानी भरा है । तो उस बाल्टी को आप उलट नहीं सकते । बहुत बड़ा और भारी है वो वाल्टी , कई जन्मों का कचड़ा भरा है उसमें , बहुत बड़ा बाल्टी है , उसको कोई भी क्रेन आदि मशीन से भी टस से मस नहीं कर सकते । तो अब एक हीं उपाय है उसमें श्री महाराज जी रूपी महापुरुष , अपने गुरू के नल से पाईप जोड़ कर ( यानि गुरू के बुद्धि से अपनी बुद्धि जोड़कर ) उस बाल्टी में उस पाईप को डाल दिजिए , अब जैसे जैसे शुद्ध पानी उस वाल्टी में गिरने लगेगा गंदगी धीरे धीरे मिटने लगेगा , उस वाल्टी का जल शुद्ध होने लगेगा धीरे धीरे अपने आप ठीक उसी प्रकार जैसे एक वाल्टी लिजिए उसमें गंदा जल भरा है , तो उस वाल्टी में शुद्ध जल के नल को खोल दिजिए । कुछ समय बाद सारा गंदा जल बाहर उतला कर निकल जाएगा और फिर वाल्टी का जल कुछ समय बाद विल्कूल शुद्ध दिखने लगेगा ।
अब जब तक हम यह नहीं करेंगें हम ना तो सनातन वैदिक धर्म को कंठस्थ कर पाएंगे ना ही अपने मन को निर्मल बना पाएंगे ना देश भक्ति या कोई भी अच्छा काम ठीक से कर पाएंगे संसार में भी । तो इसके लिए पहले हमें खुद को ठीक करना होगा ।
इसिलिए श्री महाराज जी बार बार हमें निर्देश दिए हैं कि जितना हम अपने मन में , अपने ह्रदय में महापुरुष को भगवान रूपी निर्मल जल को लाएंगे हमारा अंत:करण शुद्ध होगा । और गंदी बस्तु , बिषय , व्यक्ति को लाएंगे तो यह और अशुद्ध होगा ।
आपका संजीव । ( क्रेडिट श्री कृपालु जी महाराज जी )
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