विश्व शान्ति कैसे हासिल हो ? - भाग-2
विश्व शान्ति - भाग-2
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अत: अशांति का प्रमुख कारण हुआ खुद को शरीर जानना , मानना और संसार के पदार्थों में सुख मानना ।
जब सुख मान लिया तो उनके वस्तुओं को पाने के लिए, स्वार्थ सिद्धि के लिए अनेक प्रकार की चाल चलेगा , अपराध करेगा, यानी अपराधों की संख्या बहुत बढ़ जाती है । लेकिन अगर कोई भी जीव हिन्दू फिलॉसफी को मान लें कि भगवान् ही आनंद है और प्रत्येक जीव के ह्रदय में भगवान् का निवास है -
" य आत्मनि तिष्ठति ।" (वेद)
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते । (श्वेता. ४-६, मुण्डको.३-१-१)
"समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनीशया शोचति मुह्मामान:। ( श्वेता. ४-७, मुण्डको. ३-१-२)
एकोदेव: सर्वभूतेषु गूढ: सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा । (श्वेता. ६-११)
के अनुसार भगवान् प्रत्येक क्षण के संकल्प को नोट कर रहा है, यह विश्वास हो जाए कि भगवान् सब कुछ देख रहा है, सब कुछ नोट कर रहा है और कर्म फल देगा तो मनुष्य इस भय से अपराध नही करेगा ।
हर समय सावधान रहेगा । अरे ! संसार के संपर्क से ही लोग अपराध से बच जाते हैं ।
जा रहे हैं अँधेरे में किसी स्थान पर किसी पाप के लिए और पीछे से एक दोस्त ने कंधे पर हाथ रख दिया और पुछा - ' कहो कहाँ जा रहे हो ?' ' कहीं नहीं ऐसे ही घूम रहा था हवा खाने के लिए।' देखो बच गया अपराध से ।
तो अगर हम भगवान् को सर्वत्र अनुभव करेंगें तो फिर अपराध का प्रश्न ही नहीं होता, गलत काम का प्रश्न ही पैदा नहीं होता । अपराध कम होंगें तो अपने आप शांति होगी । ये निर्णय पक्का हो कि संसार में सुख नहीं है भगवान में ही सुख है - ये प्रमुख आधार है शान्ति का ।
ये निर्णय पक्का हो कि संसार में सुख नहीं है भगवान् में ही सुख है - ये प्रमुख आधार है शान्ति का ।
हमें आनंद चाहिए, शान्ति चाहिए, वो शान्ति मायिक पदार्थों से नही मिलेगी, भगवान से ही मिलेगी - ये निर्णय जितनी मात्रा में होगा, उतनी मात्रा में संसार संग्रह करने की कामना कम होगी, तो उतनी मात्रा की हमारी चार सौ बीसी कम हो जाएगी, फिर छल फरेब जितना हम करते हैं इन वस्तुओं को पाने के लिए , उतना कम होगा ।
जो ईश्वर में आनंद नहीं मानता तो संसार में आनंद मानना पड़ेगा उसको । और जब मानना पड़ेगा संसार के सामान में आनंद , तो संग्रह करने के लिए अच्छे स्टैण्डर्ड के लिए प्रयत्न करेगा वो , कौन रोक सकता है उसको ! अब तरकीब कुछ भी लगाए वो । एक तरफ दान दे रहा है, कह रहा है कि हमारी तनख्वाह एक रुप्या दी जाए और दूसरी तरफ अरबों रुप्या खींच रहा है पीछे के दरबाजे से , बाहर से गरीबों को १०,००० दान दे रहा है ।
संसार बना है उपयोग के लिए और हम उसका उपभोग कर रहें हैं । ऊँचे स्टैण्डर्ड की बीमारी गड़बर है , बाकी संसार तो परमावश्यक है , खाना -पीना ! फिर विश्व शान्ति कैसे हो ?
शेष अगले भाग में - ( श्री महाराज जी )
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