विश्वशांति कैसे हासिल हो ? प्रवचन का अंतिम भाग ।
विश्व शान्ति ब्लौग संख्या ३
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भगवान् को मानने से अथवा युँ कहो कि भक्ति करने से अंत:करण शुद्ध होगा । वास्तविकता तो यह है कि श्रीकृष्ण भक्ति के बिना अंत:करण शुद्ध होना असंभव है । और सत्य अहिंसा आदि का आचरण अंत:करण की शुद्धि के बिना असंभव है । ये सब दैवी गुण तभी आएँगें, जब हमारे अन्त:करण की शुद्धि होगी । हमारे अन्त:करण की शुद्धि जितनी मात्रा में होगी , उतना ही हमारा संसार से वैराग्य होगा । अन्त:करण शुद्ध केवल ईश्वरीय भक्ति से हीं होगा । जब तक यह निश्चय न हो जाए कि संसार में सुख नहीं है, भगवान् में हीं सुख है, संसार की सम्पत्ति बटोरने की कामना रहेगी ।
जब यह निश्चय हो जाएगा शान्ति भौतिक पदार्थों से नही , भगवान् से मिलेगी , जितनी मात्रा में यह निश्चय होगा , उतनी मात्रा में संसार का सामान संग्रह करने की कामना कम होगी तो उतनी मात्रा की चारसौ बीसी कम हो जाएगी । संसार से सम्पत्ति बटोरने की कामना खतम होगी । आज एक आदमी अरबपति है, खरबपति बनना चाहता है तो अगर ईश्वरीय भावना होगी , अन्त:करण शुद्ध होगा तो समझेगा कि संसार में सुख नहीं है ।
आवश्यकता की पूर्ति के अलावा जो हमारे पास है वो गरीबों को दान दे दो, तब ये भावना पैदा होगी । अत: भक्ति के द्वारा ही वास्तविक परोपकार की भावना जाग्रत की जा सकती है । अगर कोई भक्ति करेगा तो अन्त:करण की शुद्धि होगी । अन्त:करण शुद्ध होगा तो दैवी गुण ( सत्य, अहिंसा , अस्तेय, गरीबों की सहायता ईत्यादि)आएँगें , यही दैवी गुण आधार हैं विश्व शान्ति के । हमारी अन्त:करण की शुद्धि पर ही हमारा हिन्दू धर्म जोर देता है ताकि हमारे विचार शुद्ध होंगें तो ये राग-द्वेश-अशान्ति जो संसार में फैल रही है, अपने आप समाप्त हो जाए । जातिबाद आदि की बीमारी ये सब बीमारियाँ समाप्त हो जाएँ अगर सही-सही हिन्दू धर्म को समझ ले , मान ले ।
:- श्री महाराज जी ।
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समाप्त
जय हो जय हो जय हो बरसाने वारी प्यारी
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