भक्ति के लिए उधार नहीं !
भक्ति के लिए उधार नहीं !
ये मानव देह जिससे हमें पुरुषार्थ की प्राप्ति होगी, ऐसा पुरुषार्थयुक्त देह, पर उसी देह में सबसे बड़ी कमजोरी है जीवन की क्षणभंगुरता | दो प्रकार के कर्म होते हैं- शारीरिक कर्म और आत्मा सम्बन्धी कर्म ! शरीर संबंधित कर्म में उधार कर लीजिये, कोई प्रॉब्लम नहीं होगी, लेकिन आत्मा संबंधित कर्म में उधार मत कीजिये | और अक्सर यही होता है कि हम संसार सम्बन्धी धर्म को पहले करते हैं- तन से, मन से, धन से | उसको प्रायोरिटी देते हैं, महत्व देते हैं | और आत्मा संबंधित कर्म - अरे ! कुछ समय बच जाता है तो करते हैं, लापरवाही है उसमें |
मेरी राय तो ये है की काम, क्रोध, लोभ, मोह इनमें उधार कर दीजिये | आज नहीं करूँगा, कल करूँगा |पाप कर्म करने की प्रवृति बनती है - उधार कीजिये | कल करूँगा | लेकिन वहाँ हम उधार नहीं करते | दोषपूर्ण कार्य करने में उधार नहीं करते | उसको पहले करते हैं तुरंत करते हैं | यदि काम, क्रोध, लोभ आदि में उधार कर लेंगे तो हमारे लिए फायदेमंद भी हो सकता है, क्योंकि मनुष्य के कर्म करने की प्रवृत्ति बदलती रहती है | हो सकता है कि आज गुस्से की परिस्थिति बनी, तो गुस्सा आया; कल परिस्थिति नहीं बनी, तो गुस्सा नहीं आया, पाप से बच गए|
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