मैं भिक्षावृत्ति पर निर्भर सन्यासियों का निर्माण नहीं करता । मेरे सन्यासी आत्म निर्भर होते हैं । मेरे यहां न दीक्षा का आडम्बर है न अपने साथ अन्य जगद्गुओं जैसा सिंहासन आदि का आडम्बर ।
कुछ लोग श्री महाराज जी के लिखे इस पत्र को ठीक से नहीं पढ़ पा रहे थे फोटो छोटा होने के कारण , तो अब पढीए वही लिखा गया है श्री महाराज जी का अमूल्य वाक्य जो फोटो में है -
मैं संन्यासियों को भी प्रेमी बनाता हुं
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मैं भिक्षावृत्ति पर निर्भर सन्यासियों का निर्माण नहीं करता । मेरे सन्यासी आत्म निर्भर होते हैं । मेरे यहां न दीक्षा का आडम्बर है न अपने साथ अन्य जगद्गुओं जैसा सिंहासन आदि का आडम्बर ।
वह सब मैंने सन 1962 की चीन कि लड़ाई के बहाने war fund में दान कर दिया । जगद्गुरू होते हुए भी सबके लिए हर समय उपलब्ध रहता हुं ।
लोग अपने काम के लिए P.A रखते हैं , मैं लोगों के पत्र स्वयं पढ़ता हुं और उनके उत्तर स्वयं लिखता हुं ।
लोग सन्यासी बनाते हैं । मैं सन्यासियों को भी प्रेमी बनाता हुं । प्रकाशानन्द को देखो न । दण्ड कमंडल ले कर मेरे पास आया था । शंकराचार्य पद् के लिए उसका नाम भी था । उसने स्वीकार नहीं किया । उसने अपने दंड कमंडल गंगा जी में बहा दिया ।
मैं कोई नया सम्प्रदाय नहीं बनाता । केवल शास्त्रों वेदों का सिद्धांत बोलता हुं । लोगों के पाखण्ड का विरोध करता हुं । अत: लोग मेरा विरोध करते हैं । जिद्द मेरे यहां नही चलती । किसी ने मेरे पास आकर कहा , की ऐसा कर दीजिए वर्णा जान दे दुंगा । मैंने कह दिया अगर जान देना तुम्हारे हाथ में है तो देकर देखो ।
कृपालु तुम्हारे इस धमकी में आने वाला नही है । तुमको यह समझे रहना है कि कर्ता केवल मन है । उसके द्वारा किया हुआ कर्म हीं कर्म की संज्ञा में आता है ।
लोगों में भ्रम है कि जो लोग अनपढ़ होते हैं अल्प बुद्धि वाले अथवा अभावों से ग्रस्त और अंधविश्वासी होते हैं वही भक्ति मार्ग में जाते हैं । किंतु उनके विरूद्ध मेरा कहना है कि भक्ति मार्ग अत्यन्त साहसी और समझदार लोगों का पथ है । जो श्रद्धा विश्वास से सम्पन्न लोग होते हैं वही इस रास्ते पर पैर रख पाते हैं । इसलिए मैं अपने शिष्यों को इंजीनियर , डाक्टर अथवा प्रोफेसर लोगों के रूप में देखना चाहता हुं ।
:- श्री महाराज जी ।
श्री महाराज जी का सिद्धांत मन के सन्यास से है ना की शरीर के सन्यास से । मन से सन्यास का मतलव माया से मन कि आसक्ति का मिटना । उन्होंने यह नहीं कहा कि शरीर से डोक्टर इंजिनियर , आइ ए एस ना बनो । वो तो यह सब बनने के लिए कहें हैं कर्मयोग के लिए । भक्तियोग के लिए । वो तो पक्षधर थे कि बढ़िया से बढ़िया आदमी बनों पोस्ट पाओ , पर आसक्ति ना हो पोस्ट में , पैसा में , संसार में । पोस्ट पा कर सेवा करो ज्यादा बढ़िया से । लोगों को जोड़ों । अपने बच्चे को जोड़ों उसके बच्चे को जोड़ों । आसक्ति विहिन भौतिक विकाश के साथ आसक्ति युक्त आध्यात्मिक विकास ज्यादा से ज्यादा हो ।
श्री राधे
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