अपने खुद का दोष देखना चाहिए । तो आप अपना दोष दुर कर पाएंगे , दुसरे को ठीक करने से पहले खुद को ठीक करें ।।
मैं यह पोस्ट साधकों के लिए नहीं लिख रहा हुं । मेरा यह पोस्ट उन लोगों के तरफ इशारा है जो आज हद तक बढ़ कर ऐसा काम करने में लगे हैं जिनके लिए वो खुद कहीं से योग्य नहीं है । ना तो दिव्य दृष्टि है उनके पास जिससे वो दुसरे के अंदर की बात जान सके और ना खुद का दामन पाक साफ है उनका । और ऐसा करके खुद के गंदे नियत का परिचय दे रहें हैं खुलेआम । और उनके ऐसा करने से कोई लाभ नहीं वल्कि सनातन धर्म का नुक़सान हीं हो रहा है । मेरा ईशारा ब्यास पीठ पर बैठ कर दुसरे का बुराई करने वाले प्रबचन कर्ता से है ।
मैं अपनी भावना व्यक्त करने के लिए विवश हुं । मुझे भी अपनी भावना व्यक्त करने का अधिकार पुरा है।
और मैं भी अपने गुरू से एक बालु के अशं भर ही सही खड़ा और कड़ा ,और सच वोलने का गुण पाया है , चाहे निंदा करने वाले को बुरा लगे या भला ।
आजकल लोग व्यास पीठ से दुसरे को बुरा बोलते रहते हैं खुल कर । और दुसरे के आस्था पर चोट करते रहते हैं , जबकि वो खुद भगवद् प्राप्त नहीं है । अरे भगवद् प्राप्त तो दुर कि बात है उनके खुद के दामन में कितना छेद है वो उनको समझना चाहिए पहले ।
मैं तो पौजीटिव आदमी हुं , इसलिए गलत बात निगेटिव बात पसंद नहीं करता । मैं तो विश्वास करता हुं कि आप अपने धर्म के जो पांच जगद्गुरू हुए हैं अबतक तो आप लोग अपने धर्म के शीर्ष पर बैठे भगवद् प्राप्त संतों का ऊसमे भी पंचम मूल जगद्गुरूत्तमई श्री कृपालु जी महाराज जैसे धरोहर का जम कर प्रचार क्यों नहीं करते सही सही ??
जितना समय और ताकत दुसरे की खिंचाई में लगाते हैं आप उतना में तो सनातन का कितना ज्यादा प्रचार कर लेते भाई ।
आप अपने भगवान , पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण का प्रचार जम के क्यों नहीं करते ? ताकी लोग आपसे आपके शुद्ध नियत से प्रभावित होकर , प्रेरित होकर आपके इष्ट भगवान राम , कृष्ण आपके पंचम मूल जगद्गुरू जो सनातन धर्म के सर्वोत्कृष्ट भगवद् स्वरूप है ।
श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण,वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य,निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य,सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापनसत्संप्रदायपरमाचार्य,भक्तियोगरसावतार,भगवदनन्त श्रीविभूषित , पंचम मुल जगद्गुरूत्तमई , १००८ स्वामि श्री कृपालु जी महाराज ।। इनका प्रचार अपने व्यास पीठ से क्यों नहीं करते ताकि आपसे प्रभावित होकर लोग आपके तरफ स्वत: आ जाए ?
अफसोस आप ऐसा नहीं करेंगे । कारण दुसरे का बुराई करके उसके अनुयायियों को आप सनातन के तरफ नहीं अपने तरफ खिंच कर अपना दुकान चलाना चाहते हैं ।
आपको सनातन धर्म के हित से कोई मतलव नहीं
आपका असली मकसद लोगों को अच्छी चीज से जोड़ना , विशुद्ध सनातन से जोड़ना अपने धर्म के उत्कृष्ट संत से जोड़ना कतई नहीं है ।
आपके नियत में हीं खोट है । इसलिए मैं आप पर सबाल उठा रहा हुं ।
आपका असली मकसद साईं का तो कभी इसका तो कभी उसका , उसका बुराई करके उसके अनुयायियों को अपने तरफ खिंच के अपना दुकान चलाना हैं ।
आप लोगों को इसलिए तो बुद्धिजीवी लोग समझते हैं डकैत । इसलिए वो सनातन से और आप से और भी दुर भागते हैं । आप जितना दुसरे की बुराई करते हैं उतना उसके अनुयायियों की संख्या बढ़ रही है । आप सनातन का रक्षक नहीं भक्षक है ।
पहले आपलोगो को बेनकाब करना जरूरी है ।
अरे दूसरा गलत है या सही आप जैसे बिना भगवद् प्राप्त जीव कैसे डिसाइड कर लिया ? , आप जैसे ओछी नियत वाले को लोग खुब समझते हैं ।
लोग हंसते हैं आप पर । मुझसे बात करते हैं कुछ लोग और कहते हैं कि देखिए जरा कैसा घटिया लोग हैं ।
जो जीवन में कभी दो रूपया दान नहीं किया वो दान पर भाषन दे रहा है माईक लेकर आज , दान का विज्ञान समझा रहा है दुसरे को ।
जिसके दामन में बहत्तर छेद है वो दूसरे को बुरा वोल रहा है अपने व्यास पीठ से ।
मैं पुछता हुं क्यों करते हो बुराई दुसरे का । कौन तुमको यह अधिकार दिया ? दिखाओ मुझे ।
तुम पाक साफ हो क्या ???
अरे तुम सनातन का असली सेवक रहते , शुभचिंतक रहते , भला चाहते सनातना का तो अपने धर्म के अच्छें संत श्री महाराज जी जैसे संत , भगवान राम , कृष्ण के बातों को ठीक से बतला कर , दीनता , विनम्रता , सहिष्णुता का गुण अपना कर लोगों को इनसे जोड़ने में सहायक होते ।
तुममें तो वो दैवी गुण है ही नहीं । तुम्हारे मस्तिष्क में नफ़रत , द्वेष , घृणा का कीड़ा भरा परा है । तुमसे भला लोग कभी प्रभावित नहीं होंगे । नोट कर लो ।
अरे अब भी संभव जाओ , अपने असली संतों का मूल जगद्गुरूओं का , अपने शास्त्रों का , शस्त्रो का , अपने सनातन इष्ट का दीनता , विनम्रता , सहिष्णुता के साथ इतना प्रचार करो जम के कि दुसरे आदमी , आधा से अधिक अनुयाई दुसरे को छोड़ कर हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाए इधर और तुमसे सहानुभूति हो जाए उनको , तुम्हारा सम्मान करने लग जाए दिल से । अरे दिल जीतो ना अपने अच्छे व्यवहार से । सनातन के तो मूल सिद्धांत में दिल जीतना कहा गया है । अरे सनातन का मूल है यह सब गुण यथा - दया , क्षमा , त्याग , करूणा , दीनता , सहिष्णुता , प्यार , प्रेम व्यवहार ।
दुसरा गाली बक रहा है तो तुम भी गाली बकोगे तो तुममें उसमें क्या फर्क है भाई । तुम तो खुद बुरे साबित हो रहे हो सबसे पहले ।
तुम्हारा नियत ही खडाब है । तुम साधु के भेष में खुद डकैत हो । तो तुम दुसरे पर किचड़ फेंक कर कैसे सफल हो सकते हो , चाहे कोई लाख बुरा था । पर तुमको तो कतई हक नहीं ।
और मैं तो सच बोलने और लिखने रोगी हुं हीं ।
तुम बुरा करने से नहीं बाजोगे । मैं सच लिखने और बोलने से बाज नहीं आऊंगा ।
तुम सनातन के भेष में सनातन द्रोही हो ।
तुम अगर ठीक रहते , नियत शुद्ध रहती तो इतना जम के सनातन का प्रचार करते की लोग कंभिंस होकर इधर आ जाते ।
पर तुम खुद रौरव नरक जाने का ठान लिए हो दुसरे को क्या समझाओगे । । यह सनातन का सिद्धांत है ।
तुम तो खुद असली संतों का विरोध करते आए हों । अपने इष्ट के बारे में भी उल्टा पुल्टा बोलने से नहीं चुकते हो । तुम कैसे सनातन का हितैषी हो ? तुम तो मूल जगद्गुरूत्तमई का भी विरोध करने से नहीं चुके !
संसार में संसारी के गलत का विरोध करो ,अपने बराबर बाला गलत करता है तो । और धर्म के क्षेत्र में किसी का बुराई ना करें , अपने धर्म का इतना जोर से प्रचार करिए की दुसरा सब जुड़ जाए । मेरी विनती है आपसे , बुरा मत मानना भाई । सच कडुवा होता है ।
कहां जेकेपी और इस्कौन का संचालक या सच्चा डेडिकेटेड साधक किसी का बुराई और टांग खिंचाई करता है कभी ? पुरे विश्व में इनके द्वारा भक्ति का प्रचार हो रहा है । और इनके योगदान से ही सनातन बढ़ रहा है । तुमसे नहीं ।
समझ में नहीं आती क्या ???
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