भक्ति मार्ग पर चलने वाले पथिक के जीवन में संसारिक सुख दु:ख क्यों आता है ?

जानतें हैं आप? कि भक्ति मार्ग , श्री हरि और गुरू के प्रेम मार्ग पर चलने वाले पथिक को संसार में संसारिक दु:ख और ताप से क्यूं गुजड़ना पड़ता है ? 
क्यूं कि जब वो जीव भक्ति मार्ग पर चलना शुरू करता है तो भगवान उसके सारे पापों को जल्द से जल्द इसी जीवन में भुगवा देना चाहते हैं ताकि फिर आगे उस जीव को संसारिक रोग , शोक , दु:ख ना सताए । दुसरा भलाई कि जीव जो उनका निज जन है, वो उनकी दासी माया के रंग मे रंगे ना कभी । माया का दास ना बने कभी ।

यही कारण है कि संतों ने कहा है कि" भगवद् प्रेम मार्ग तलवार के धार पर चलने के सामान है " 
'यह प्रेम मार्ग आग का दरिया है जिसमें डूब कर जाना‌ है "
जिसमें भक्त सोने की तरह तप कर १००% शुद्ध कुंदन बन जाता हैं । 
देख लिजिए जितने भी भक्त हुए हैं वो पहले दु:ख हीं झेला हैं । जैसे प्रह्लाद् ध्रुव , मीरा , बिद्यापती , नरसी मेहता , सुदामा , कुब्जा अनेकों उदाहरण हैं ।
भक्ति मार्ग में आने पर दु:ख मिलने लगा हैं ! लोग आपका विरोध करने लगे हैं ! हां , मतलव आप सही रास्ते पर हैं । आपका भक्ति कबूल हुआ श्री हरि गुरू द्वारा अब बढ़ते जाना है । यह सबसे बड़ा आध्यात्मिक सुख है ।

जिसको भक्ति मार्ग में आने के बाद भी केवल संसारिक सुख हीं मिल रहा है अभी तक , इसका मतलव हैं, उसके भक्ति का शुरूआत हुआ हीं नहीं अभी।‌ दरअसल वो अपने संसारिक सुख को भगवान का कृपा मान रहा है ।  और खुद को भक्त समझ लिया है और अपने को पुण्यात्मा । और भक्ति मार्ग पर चल कर दुख पाने वाले जीव को पापी । यह सबसे बड़ा भ्रम है । अरे आप संसारी सुख को कृपा माना तो दुख को भी कृपा क्यों नहीं मानते ? इसका मतलव केवल कहने के लिए लोगों से कृपा मान लिया पर अंदर से अहंकार है कि हमारे पुण्यों का फल है । और दुसरा पाप किया है इसलिए उसको दुख मिला है , ऐसा मान लिया आप ?

पर सिद्धांत तो कहता है कि भगवान जिसपर कृपा करतें हैं तो उसका संसार पहले छिन लेतें हैं । वो संसार के सुख को सुख नहीं शूल समझता हैं । 
अभी वैसे धनवान जीवों का सारा इम्तेहान वांकी है । यह बड़ा कटु सत्य है और शास्वत सत्य  है ।  इसलिए भक्तों का इतिहास साक्षी है  कि दुख में हीं भगवान मिले हैं । 
इसिलिए राज रानी महारानी कुंती भगवान से दु:ख मांगी थी कि विशुद्ध भक्ति मिले । 
सुई के छेद से ऊंटों का काफिला गुजड़ सकता है पर धनवान के ह्रदय में हरिप्रेम आ जाए , असंभव । 

(मेरा यह पोस्ट कुछ ऐसे लोगों के लिए है जो अपने सुख में इठलाते हुए  , किसी दु:ख झेलते जीव को कहतें हैं कि वो पापी है इसलिए उसको ऐसा दंड मिल रहा है - सावधान ।  आप कहोगे की "नहीं जी पुण्यात्मा जीव सदा सुखी रहता है"  तो गलत , क्यूंके सबके अनंत जन्म हुए और अनंत पाप और अनंत पुण्य सबके हैं । आपका केवल पुण्य है ऐसा नहीं, मैं कोई पोस्ट बिना कारण नहीं लिखता हुं  ) 
श्री राधे , जय राधे ।

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