दीनता और अहंकार शून्यता हमारी आध्यात्मिक योग्यता है सदगुरू और भगवान की भक्ति के लिए ।
दीनता और अहंकार शून्यता हमारी आध्यात्मिक योग्यता है सदगुरू और भगवान की भक्ति के लिए । भगवान हमारे इसी गुण पर रिझतें हैं और कृपा करतें हैं । शर्त यह है कि हमारी दीनता और अहंकार शून्यता वास्तविक हो, रियल हो , नेचुरल हो ,वनावटी और एक्टिंग में न हो।
खुद को दीन मानना क्या ? हम हैं हीं दीन !
कोई कितना बड़ा सत्ताधीश क्यों नहीं जब उसका उसके जन्म और मृत्यु पर वश नहीं तो कोई कैसे अपने को सर्व सम्पन्न और शक्तिशाली माने !
अगर कोई संसार में खुद को सर्वसमर्थ मानता है तो यह उसकी मूर्खता है।
इस माईक जगत का एक भी बस्तु और जीव ऐसा नहीं जिसमें एक तो क्या हजारों दोष नहीं ।
तो फिर खुद को अगर हम दीन नहीं मानते तो यह सबसे बड़ा आश्चर्य हैं ।
बस हमें केवल अपने वास्तविक स्वरूप को स्वीकार करना हैं ।
जिस दिन हम अपने स्वयं के वास्तविक निर्वल स्वरूप के सत्य को स्वीकार कर लेंगें हमें आंसू आने लगेगा ।
आंसु नहीं आने का मूख्य कारण हैं हम खुद को दीन नहीं मानते । नही जी हम तो कुछ हैं । बस हो गया , अहंकार आ गया । और भगवान एवं सद्गूरू को यही हमारा अहंकार पसंद नहीं । फिर हम कम्पलेन करतें हैं कि हम पर कृपा नहीं हो रही ।
कृपा कैसे हो ? हम तो अपने बल को मानतें हैं तो फिर निर्वल के बल राम की कृपा कैसे हो हम पर ?
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