कर्मयोग

मै जब भी मां से मिलता हूँ तो उनसे प्रश्न करता हूँ , उनको परेशान करता हूँ , उनसे बहूत प्रेरणा मिलती है , जैसे मैने पुछा  कि एक साधक को कैसे अपने दैनिक कार्यों का सम्पादन करते हूए अपना संबंध हरिगुरु से महसुस करते रहना चाहिए , जोड़े रखना चाहिए । मां की बताई बातें , उनका गाइड लाईन मैं आप से भी शेयर करता रहता हूँ । ताकी आप भी लाभ उठा सकें जो मां से दूर हैं या जिनकी कम बाते होती है ।

मां ने कहा था कि बहूत ही आसान है । पहले तो यह मन में, ह्रदय में बैठा लो की श्री महाराज जी और अम्मा हीं तुम्हारे असली मां वाप हैं , वो भी ऐसे मां वाप जो सर्व समर्थ , सर्वांतर्यामी , सर्वशक्तिमान , सर्वसुखकारी , परम हितैषी ।

 ठीक है..... संसार में हमारे शरीर को जन्म देने वाले मां है, वाप है , सबके हैं । उनके प्रति शरीर के नाते फर्ज है , और वो भी हम हरिगुरु की आज्ञा मान कर ही,  हरिगुरु के निमित्त ही उनकी देख रेख और सेवा करते हैं , करना पडे़गा।

 ठीक है .... संसारी मां वाप आदरणिय हैं सेवा करना फर्ज है । फिर उनकी जरुर सेवा करो पर मन में यह रखो की ये जो हम इनकी सेवा कर रहें हैं ये हरिगुरु के आदेश का ही पालन कर रहें हैं तो मन में सेवा भाव आऐगा , नही तो अहंकार आ जाऐगा की संसारी मां वाप पर हम एहसान कर रहें हैं । जबकी उसके भी मां वाप वही है , चाहे वो माने या ना माने । वे भी श्री महाराज जी के अनुयायी हैं तो अति उत्तम । 

नम्बर दो - ये ध्यान रखो की हमारे वास्तविक माता पिता , गुरु , सब महाराज जी है फिर हम जो भी कार्य कर रहें हैं औफिस में , या व्यापार कर रहें हैं तो वो जो सर्वांतर्यामी हमारे पिता हैं वो सब देख रहें हैं । हमारे हर व्यवहार को देख रहें हैं , जिससे तुमसे धीरे धीरे कार्य स्थल पर भी गलतियां , क्रोध , गलत डिसिजन कम होने लगेगी । और एक दिन गलतियां न के बराबर होगी । साथ यह महसुस हर पल करो कि ये जो हम कार्य कर रहें हैं वो हरिगुरु के निमित्त  ही कर रहें है । जिससे तुम संसार में भी गलतियां नही करोगे । फिर यह याद रख कर कार्य करों की आज का सारा कार्य सही सही करके घर जाऐंगें फिर हमारे संसारी मां वाप से भी ज्यादा हमारा परम हितैषी हरिगुरु हमारा इंतजार कर रहे है कि कब हम घर वापस आऐं ठीक ठाक और श्री महाराज जी की सेवा में लग जाऐं , उनको सुख दे , साधना करें । पद् संकिर्तन सुने , करें पढ़े आदि।
हर पल श्री महाराज जी को अपने ह्रुदय में महसुस करो कि वो हमारे परम शुभ चिन्तक हमारी ओर हर पल देख सुन रहें हैं , कि कब कब हम उनके बताए मार्ग के अनुसार ही कर्मयोग करते हैं । वही हमारे दिल में हैं , हमारे साथ साथ हैं , इस प्रकार तुम हर पल अपने हरिगुरु से तार जोड़े रखोगे । 
तुम्हारा प्रत्येक कार्य कर्मयोग बन जाऐगा । तुम श्री महाराज जी के स्नेह को महसूस करने लगोगे । 
बस इतना करना है ।

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