रुपध्यान कैसे करें ?
प्रश्न - रुपध्यान कैसे करें ?
दिशा निर्देश श्री महाराज जी द्वारा :-
श्री राधाकृष्ण का रुपध्यान करते हुये , उनके दिव्य प्रेम एवं दिव्य दर्शन की लालसा से रोकर , उनका नाम-गुण लीलादि का संकीर्तन करना है | रुपध्यान, मन से बनाना सर्वश्रेष्ठ है | फिर भी स्वेच्छानुसार मूर्ति अथवा चित्रादि का अबलंब लिया जा सकता है | उस रुप में दिव्य भावना रखनी है , क्योंकि उनका देह चिदानंदमय दिव्य है |
रुपध्यान , भगवान् के नवजात शिशुरुप से लेकर १६ वर्ष की आयु तक का करना है | उस रुप का श्रृंगार आदि स्वेच्छा पूर्वक नित्य नया नया करते रहना है |
रुपध्यान के साथ-साथ , उनकी अनेक मन भायी लीलाओं का भी ध्यान करना है | तथा उनके दीनबंधुत्व , पतितपावनत्वादि गुण भी सोचना है |
श्री कृष्ण , उनके नाम , उनके गुण , उनकी लीला , उनके धाम , उनके संतजनों में पूर्ण अभेद मानना है | ये सब श्री कृष्ण हीं हैं |
मौक्षपर्यन्त की कामना एवं अपने सुख की कामना का पूर्ण त्याग करना है |
इष्ट देव एवं गुरु को सदा सर्वत्र अपने साथ निरीक्षक एवं संरक्षक के रुप में मानना है |
खाली समय में यत्र तत्र सर्वत्र श्वास से ' राधेश्याम,' नाम का जप करते रहना है | हरेक में , हर जगह में , हर किसी में तथा स्वयं में भगवान् राधाकृष्ण का निवास है , ऐसा फील करते रहना है |
परदोष-दर्शन, परनिंदा ( भले ही वह निंदनीय हो ) , लोकरंजन , निराशा , आलस्य , बिषयीजनों का संग आदि कुसंग से बचना हैं |
श्री कृष्ण , उनके नाम , गुण , धाम एवं भक्तों के प्रति अक्षम्य नामापराध से बचना है |
वे ही मेरे सर्वस्व हैं , ' यही भावना दृढ़ करना है |
:- श्री महाराज जी
दिशा निर्देश श्री महाराज जी द्वारा :-
श्री राधाकृष्ण का रुपध्यान करते हुये , उनके दिव्य प्रेम एवं दिव्य दर्शन की लालसा से रोकर , उनका नाम-गुण लीलादि का संकीर्तन करना है | रुपध्यान, मन से बनाना सर्वश्रेष्ठ है | फिर भी स्वेच्छानुसार मूर्ति अथवा चित्रादि का अबलंब लिया जा सकता है | उस रुप में दिव्य भावना रखनी है , क्योंकि उनका देह चिदानंदमय दिव्य है |
रुपध्यान , भगवान् के नवजात शिशुरुप से लेकर १६ वर्ष की आयु तक का करना है | उस रुप का श्रृंगार आदि स्वेच्छा पूर्वक नित्य नया नया करते रहना है |
रुपध्यान के साथ-साथ , उनकी अनेक मन भायी लीलाओं का भी ध्यान करना है | तथा उनके दीनबंधुत्व , पतितपावनत्वादि गुण भी सोचना है |
श्री कृष्ण , उनके नाम , उनके गुण , उनकी लीला , उनके धाम , उनके संतजनों में पूर्ण अभेद मानना है | ये सब श्री कृष्ण हीं हैं |
मौक्षपर्यन्त की कामना एवं अपने सुख की कामना का पूर्ण त्याग करना है |
इष्ट देव एवं गुरु को सदा सर्वत्र अपने साथ निरीक्षक एवं संरक्षक के रुप में मानना है |
खाली समय में यत्र तत्र सर्वत्र श्वास से ' राधेश्याम,' नाम का जप करते रहना है | हरेक में , हर जगह में , हर किसी में तथा स्वयं में भगवान् राधाकृष्ण का निवास है , ऐसा फील करते रहना है |
परदोष-दर्शन, परनिंदा ( भले ही वह निंदनीय हो ) , लोकरंजन , निराशा , आलस्य , बिषयीजनों का संग आदि कुसंग से बचना हैं |
श्री कृष्ण , उनके नाम , गुण , धाम एवं भक्तों के प्रति अक्षम्य नामापराध से बचना है |
वे ही मेरे सर्वस्व हैं , ' यही भावना दृढ़ करना है |
:- श्री महाराज जी
सभी को कहें कृपया...
ReplyDelete||जय जय श्री श्रीराधाकृष्णचन्द्रजी||
"परमपूज्य सन्तन्-भक्तन् श्री व श्री 'गौ माँ' के चरणाम्बुजों में कोटिशः प्रणिपात" ।
'जय श्री गौ माँ, जय श्री शाश्वत-विश्वगुरु राष्ट्र भारत' ।
'वन्दे मातरम्, वसुधैव कुटुम्बकम्' ।
धन्यवादः, आभार ।
"जय श्री आर्यावर्त्त-जम्बुद्वीप, जय श्री सनातन वैदिक-संस्कृति" ।
श्री राधे
ReplyDeleteश्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे श्रीराधे
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