तो सिद्ध हुआ कि केवल भक्ति से हीं तुम भगवान को जान सकते हो , पा सकते हो | और कोई दुसरा मार्ग नही है |

अस्थाय योगं निपुणं समाहितस्तं नाध्यगच्छं यत आत्मसम्भव: |
( भागवत. २-६-३४)
ब्रह्मा कहता है कि मैंने बहुत युगों तक ' योगं आस्थाय' योग समाधि लगा कर के ' सुचिरम् ' बहुत दिन तक ध्यान करते हुए पता लगाया कि श्रीकृष्ण कौन हैं ? लेकिन ' नाध्यगच्छन् ' मैं नहीं समझ पाया | तब फिर मैं भक्ति की शरण ली | इसलिये , जैसा कि मैने कल बताया था कि -
भगवान् ब्रह्म कार्त्स्न्येन त्रिरन्वीक्ष्य मनीषया |
तदध्यवस्यत् कूटस्थो रतिरात्मन् यतो भवेत ||
(भाग. २-२-३४)
इसलिये चैलेंज किया ब्रह्मा ने , अरे जीवों जब मैंने इतना परिश्रम करके भी कुछ नहीं पाया तो तुम बुद्धि मत लगाना | यह बुद्धि तो संसार रुपी प्रकृति में ही पूर्णतया नहीं विज्ञ हो सकती क्योंकि प्रकृति का पूर्ण विज्ञान बिना ब्रह्म के हो ही नही सकता | जहां तक आज विज्ञान गया है , जैसे - औक्सिजन , नाइट्रोजन , फिर उसके बाद इलैक्ट्रोन , प्रोट्रॉन , न्यूट्रॉन | अब उसके भी टुकरे हो गये | अब वे कहते हैं कि एक ऊर्जा शक्ति है | ऊर्जा शक्ति में वो शक्ति कहाँ से आयी यह पता नहीं है | जहाँ यह आपको चले पता कि पता नहीं है, वही है 'पता' उस ब्रह्म का | जहाँ तुम्हारी बुद्धि थककर रुक जाये बस समझ लो कि वो ' एरिया' है | अब उसके आगे तुम बुद्धि ले ही नही जा सकते | सिर फट जाएगा |
तो सिद्ध हुआ कि केवल भक्ति से हीं तुम भगवान को जान सकते हो , पा सकते हो | और कोई दुसरा मार्ग नही है |
श्री महाराज जी ( दिव्य स्वार्थ - ५८, ५९)

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