चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी॥नर तनु धरेहु संत सुर काजा। कहहु करहु जस प्राकृत राजा ॥

चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी॥
नर तनु धरेहु संत सुर काजा। कहहु करहु जस प्राकृत राजा ॥
अहं त्वां शरणं प्रपद्ये ।। 
अहं नित्यस: भजामी त्वयि ।।
अहं सततम स्मरामी त्वयि ।।

हे मेरे गुरूदेव आपकी देह चिदानन्दमय है। आपका देह प्रकृतिजन्य पंच महाभूतों की बनी हुई कर्म बंधनयुक्त, त्रिदेह विशिष्ट मायिक देह कदापि नही है, केवल अज्ञानता बस संसार में आम जनों को ऐसा दिखाई परता है कि आपका देह प्राकृत है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है , आपका देह उत्पत्ति और विनाश के विकारों से रहित है, क्योंकि आप साक्षात् अवतारी सच्चिदानंद भगवान श्री हरि हैं , इस रहस्य को जो लोग आपकी कृपा से अनुग्रहित हो समझ लिया हैं। वो सहज ही आपके वास्तविक स्वरूप को जान लिया है , मान लिया है तथा रियलाईज भी कर लिया है ।‌ 
आपने भगवान और संतों के कार्य के लिए दिव्य नर शरीर धारण किया है और प्राकृत प्रतीत (प्रकृति के तत्वों से निर्मित देह वाले शरीर ) शरीर में विराट महाराजा कि भांति हम पतितों के उद्धार के लिए इस धरा धाम पर आए हैं, हे श्री हरि , हे परम विराट पुरूष हमारे गुरूदेव हम आपके शरण में हैं । हम केवल आपका हीं निरंतर भजन तथा स्मरण करते हैं । 
श्री राधे ।।

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