भगवान श्री कृष्ण और महर्षि दुर्वासा का लीला ब्रह्मचर्य तथा संन्यासी के बारे में तत्वज्ञान देने के लिए :-

भगवान श्री कृष्ण और महर्षि दुर्वासा का लीला ब्रह्मचर्य तथा संन्यासी के बारे में तत्वज्ञान देने के लिए :- 
एक बार गोपियां भगवान श्री कृष्ण के पास गई और उनसे बोलीं , हम गोपियां एक व्रत की हैं आज हमें एक बहुत बड़े ऋषि को भोजन जिमाना है , आप ही बतलाएं हम किनको जिमाए ? और कहां जिमाये ? 
भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों से कहा - यमुना जी के उस पार मेरे गुरू महर्षि दुर्वासा हैं तुम सब जाकर उनको जिमा कर अपना व्रत तोड़ो । 

गोपियां युमना जी में आय भयानक बाढ़ के कारण उस पार नहीं जा सकी ।
वो भगवान श्री कृष्ण से उस पार जाने का उपाय पुछा । 
भगवान ने कहा जाओ जाकर कहो यमुना जी से कि अगर मैं आजीवन ब्रह्मचारी हुं तो वो तुम सभी को पानी के बीच से रास्ता दे दें ।
गोपियां सोंचने आपस में बातें करने लगी कि ये छलिया जो दिन रात हमारे पीछे पीछे भागता है वो ब्रह्मचारी ?  
फिर भी गोपियां जाकर यमुना जी से कहा कि अगर हमारे प्रियतम श्री कृष्ण आजीवन ब्रह्मचारी है तो हमें उस पार जाने का रास्ता दे दों ।‌
यमुना ने झट से उन गोपियों के लिए रास्ता दे दें दिया ।‌
गोपियां आचार्य में ।

अब उस पार जाकर गोपियों ने दुर्वासा को छप्पन ब्यंजन का भोग जिमाया । दुर्वासा सभी खा गए । कुछ भी नहीं छोड़ा ।
अब गोपियां को फिर से यमुना के इस पार आने की समस्या ।
उन्होंने सोंचा जो चेला ऐसा है जिसके लिए यमुना जी ने हमें रास्ता दे दिया उनका गुरू तो और भी पहुंचा हुआ सिद्ध महापुरुष होगा । 
अत: सभी दुर्वासा के पास गई और यमुना को पार करने के लिए सहयोग मांगा ।

दुर्वासा ने कहा जाओ जाकर कह दो यमुना से कि दुर्वासा ने आज तक घास के एक तिनके के अलावा कुछ भी ग्रहण नहीं किया है कुछ भी नहीं खाया है तो वो तुम सभी के लिए उस पार जाने का रास्ता दे दें ।
अब गोपियां फिर आश्चर्य में और आपस में बातें करने लगी -अभी अभी तो छप्पन भोग छक कर हजम किए हैं और फिर कहते हैं कि एक घास के तिनके के अलावा कुछ नहीं खाया है । 
इस तरह बातें करते हुए वो यमुना जी से वही कहा जैसे दुर्वासा ने बतलाया था । 
यमुना जी फिर से उन सभी को रास्ता दे दीं ।
:- श्री महाराज जी 

इस लीला से यह स्पष्ट होता है कि भगवान और महापुरूष सदा ब्रह्मचारी होते हैं । उनको पंचभूत का शरीर मानना तथा स्वयं को देह मानना अज्ञानता है । ब्रह्मचर्य और सन्यास मन का बिषय है तन का नहीं ।

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