श्री महाराज जी ने क्या हिदायत दी है हमें ?

 श्री महाराज जी ने क्या हिदायत दी है हमें :- 
एक भी मायाधीन इस पृथ्वी पर नहीं है जिसमें काम क्रोध मद मोह लोभ ईर्ष्या अहंकार दुर्भावना और स्वार्थी न हो महापुरूषों को छोड़ कर । सब प्रक्रार का दोष सबमें है , किसी में थोड़ा कम तो किसी में ज्यादा लेकिन सब बुराई सबमें है । 
तो यह समझें रहो और प्रयास करो , साधना करो कि अंत:करण कि शूद्धि हो और यह सब दोष धीरे धीरे समाप्त हो जाए ।

लेकिन किसी से जाकर मत बोलो कि तुम तो अहंकारी हो , कामी हो क्रोधी हो लोभी हो , स्वार्थी हो । अगर तुम जाकर बोलोगे तो वो भी पलट के तुमको बोले देगा कि तुम भी तो कामी हो , स्वार्थी हो , अहंकारी हो लोभी हो तो फिर तुमको कैसा लगेगा? तुरंत तुमको क्रोध आ जाएगा क्योंकि वास्तव में ये सभी दोष तुममें भी है । तुमको भगवद् प्राप्ति नहीं हुआ है अबतक और न माया गई है । तो फिर सब दोष तो तुममें भी है जो उसमें भी है । अब एक अंधा दुसरे को कहें कि तुम अंधा हो तो कैसा लगेगा ? ये तो हंसने बाली बात है । 
ऐसा कौन सी बीमारी जो उसमें है और तुममें नहीं है , फिर तुमको उसका दोष बताने का अधिकार किसने दिया ?

केवल महापुरुषों का काम है दुसरे के दोष को बताना और उसके दोष को समाप्त करने के लिए मार्ग बताना । 
तुम्हारा काम नहीं है । 

अरे कुछ लोग तो मुझे आके बोल देते हैं , नहीं महाराज जी ऐसी बात नहीं है जब मैं किसी के दोष बताता हुं तो , तो तुम समझते हो तुमको छोड़ेंगे क्या ? तुम भी तो दोषी हो । 

संसार में एक बाप भी तत्वज्ञान यहां से सुन कर जाकर बेटे को , भाई को बोलेगा कि तुम स्वार्थी हो तो वो भी तो कहेगा कि तुम भी स्वार्थी हो , तुम कौन से दूध के धोय हो । तो फिर शुरू होगा मार पीट लत्तम जुत्तम। निकल जाओ मेरे घर से , लो स्वार्थ कि हानि हुई , स्वार्थ था की बेटा सम्मान करे , कुछ भी बोल दो । लेकिन ज़बाब मिल गया तो फिर क्रोध आ गया । सिद्ध कर दिए तुम की ये दोष तुममें भी है । तो किसी से कहो मत जाके कि तुम स्वार्थी हो अहंकारी हो , अपने दोष को देखो उसे ठीक करो । तो तत्वज्ञान खुद को ठीक करने के लिए है दूसरे के दोष को देखने और उसे जाकर बताने के लिए नहीं । :- श्री महाराज जी ।
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अब जिसको तत्वज्ञान अधिक है वो तत्वज्ञान से कुछ अधिक देर तक अपमान को सहता है , क्रोध को दबाता है , लेकिन है तो वो भी माया के अंडर में हीं अभी , अधिक बोलोगे तो पलट के जबाब दे हीं देगा । क्योंकि वो भी तो सोंचेगा कि सब दोष तो इसमें भी है और देखो तो जरा आकर हमको लेक्चर दे रहा है , जितना बर्दास्त कर रहा हुं और सिर पर चढ़े जा रहा है अपना दोष नहीं दिखाई दे रहा है इसको । तो वो तत्वज्ञानि भी तुमको तुम्हारे दोष का एहसास करा देगा तो गलती तो उसकी नहीं है , गलती तो तुम्हारी है कि स्वयं में सब दोष रहते हुए उसको समझाने क्यों गए ? क्या तुमको ये अहंकार पहले नहीं है कि तुमको सब मालुम है और उसको नहीं मालुम । तो सबसे बड़ा अहंकारी तो तुम हुए ।

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