भक्त कौन ? जिसको भक्ति प्राप्त हो चुकी हो , भगवान का प्रेम प्राप्त हो चुका है अर्थात भगवत प्राप्ति हो चुकी हो , माया से सदा के लिए मुक्त हो गया हो , केवल वही भक्त हैं ।
पुज्यनियां रासेश्वरी देवी जी :- भक्त कौन ? जिसको भक्ति प्राप्त हो चुकी हो , भगवान का प्रेम प्राप्त हो चुका है अर्थात भगवत प्राप्ति हो चुकी हो , माया से सदा के लिए मुक्त हो गया हो , केवल वही भक्त हैं । और अपने इन्हीं भगवद् प्राप्त भक्त के लिए भगवान ने कहा है कि उसका पतन कभी नहीं हो सकता :-
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।।9.31।। :- गीता ।
वांकी हम सभी अभी साधक है , भक्ति मार्ग का पथिक है , अभी भक्ति मिली नहीं है हमें , अभी हमारी माया नहीं गई है , अभी मायिक विकार काम , क्रोध , इर्ष्या, राग-द्वेष अहंकार मिटा नहीं है हमारा । भगवद् प्राप्ति से पहले कोई भी जीव माया को चाईलेंज नहीं कर सकता है । बहुत खतरा है ।
अत: साधक को बहुत सावधान रहने कि आवश्यकता है । नहीं तो एक क्षण का भी कुसंग साधक को पीछे धकेल सकता है । कमाया एक रूप्या और खर्चा दो रूप्या , स्वाभाविक है अगर ऐसे हीं हम पाने से अधिक खोते रहे तो पतन एक दिन निश्चित है ।
आप लोग अजामिल और सौभरि ऋषि मुनि के पतन कि कहानी सुने होंगे श्री महाराज जी से , अजामिल और सौभरि जैसे महान ऋषि मुनि का पतन हो सकता है एक क्षण में तो हमलोग तो साधारण जीव है । अत: गलतफहमी में न रहे कि हम तो बहुत बड़े और पुराने साधक है हमारा पतन नहीं हो सकता !
मत भुलें कि अभी हम स्टूडेंट हीं है , डिग्री मिली नहीं हमें । संसार में भी डिग्री मिलने के बाद हीं कोई डौक्टर बन सकता है । उसी प्रकार भगवत प्राप्त होने के बाद हीं जीव भक्त कहलाता है ।
अत: जबतक भगवद् प्राप्ति नहीं हो तब तक श्री महाराज जी के द्वारा दी गई सिद्धांत ज्ञान को मजबूती से पकड़ कर साधक को इन मायिक विकारों को दबा कर रखना चाहिए। जैसे एक स्त्री खाना बनाते समय अगर कपड़े में जरा सी चिंगारी गिर जाए तो उसे झट से दबा कर बुझा देती है , उसी प्रकार हमें अपने मन में उठे राग-द्वेष, घृणा , इर्ष्या, काम , क्रोध, लोभ को झट से दबा लेना चाहिए समय रहते , अपने मन को समझाना होगा तत्वज्ञान से तभी हम तेजी से आगे बढ़ सकते हैं ।
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