अनन्यता का ठीक ठीक परिभाषा तथा संपूर्ण ज्ञान, पुज्यनियां रासेश्वरी देवी जी द्वारा
अनन्यता का ठीक ठीक परिभाषा तथा संपूर्ण ज्ञान, पुज्यनियां रासेश्वरी देवी जी द्वारा :- भक्ति मार्ग के साधकों का पहला कर्तव्य है कि संसार से बहुत ज्यादा लगाव न रखें । हमारा लक्ष्य तो भगवान की प्राप्ति है !
हम सभी इस संसार में एक यात्री कि भांति आए हैं , हमारा लक्ष्य तो हरिगुरू के लोक में उनकी दिव्य सेवा ,उनका दिव्य प्रेम कि प्राप्ति है । इसलिए हमारे गुरूदेव का आदेश है घोर बिषई जनों से दुरी बना कर रखें ।
कुसंगी और कुसंग के मैटेरियल से दुर रहें ।
चाहे भगवद् पथ पर हमारी गति धीमी हो लेकिन कुसंग हमें बहुत पीछे धकेल देता है।
इस प्रकार हम चलेंगे दो कदम और कुसंग के कारण धकेल दिए जाएंगे चार कदम पिछे की ओर तो जरा आप हीं सोंचिए हमारा हाल क्या होगा ? हम कहां पहुंचेंगे ?
संसार में हर किसी से दोस्ती बढ़ाना ठीक बात नहीं । अपने जीविकोपार्जन के लिए जितना आवश्यक हो बस उतना हीं संबंध रखे किसी से , उतना हीं व्यवहार करें संसार से । अधिक लेन देन ठीक नहीं ।
वांकि बिषय भोग में लिप्त तथा भगवद् बिषय में रूचि न रखने वाले लोगों से दुरी बना लें बिना कोई दुर्भावना के ।
दुसरी बात अनन्यता पर ध्यान दें ।
अनन्यता की सीधी सी परिभाषा है मन भगवान के किसी भी रूप गुण लीला धाम में जाए या भगवद् प्राप्त किसी भी महापुरूष में जाए यानि भगवद् एरिया में जाए तो यह सब अनन्यता है । और मन अगर संसार में जाए , संसारिक बिषय बस्तुओं के तरफ जाए तो अन्यता है यानि अनन्यता भंग होना माना जाता है ।
कुछ लोग अनन्यता का गलत अर्थ लगा कर भगवान शंकर , विष्णु , ब्रह्मा , गणेश, नारद , हनुमान, जगदंबा , काली, सरस्वती , लक्ष्मी आदि भगवान श्री कृष्ण के हीं निज स्वरूप शक्ति से दुर्भावना कर लेते हैं , भेद मानते हैं उनमें , यह घोर नामापराध है।
तथा कुछ लोग भगवान के निज जन यानि दुसरे वास्तविक महापुरुषों के साथ भी भेद भाव रखते हैं । जबकि वो सभी भगवान श्री कृष्ण के हीं निज जन है ।
हमारे गुरुदेव ने तो कहा है कि सभी महापुरूष हमारे हीं हांथ पांव कान नाक आदि है इनमें भेद करना महान अपराध है, श्री महाराज जी ने तो इन्हीं महापुरुषों के मतों का , उनके द्वारा लिखे भाष्यों का समन्वय किया है वेदों द्वारा, गीता , श्री मद् भागवद् द्वारा । उन्होंने तो यहां तक कहा है कि भगवद् बिषय संबंधित बातें , भक्ति के अनुकूल बातें एक चंडाल से भी अगर मिले तो ले लो । और आपलोगों में लगभग 99% लोग अन्य महापुरुषों की बातें तो छोड़ो भगवान के निज स्वरूप शक्ति में भी भेद भाव कर लेते हैं जो कि घोर पतन का और पतन की ओर ले जाना वाला सोंच है ।
हमारे श्री महाराज जी ने तो अपने प्रवचन में अनेकों जगह गौरांग महाप्रभु, तुलसीदास , सुरदास, वाल्मीकि, षड़़गोस्वामी , मीरा , श्री भतृहरि , काली दास , तुकाराम , रविदास तथा अपने पिछले चारों जगद्गुरुओं आदि महान संतों को सम्मान देते हुए उनके द्वारा लिखे भाष्यों तथा ग्रंथों के श्लोकों का उद्धरण के द्वारा हमें तत्वज्ञान दिया है ।
वो वेद के द्वारा इनके श्लोकों के वास्तविक अर्थो का समायोजन तथा समन्वय करते हुए हमें समझाया है ।
अत: भक्ति संबंधित इनके बातों को जो हमारे गुरू के सिद्धांतों के अनुकूल है , जो हमारे भक्ति में सहायता करता है, इनके श्लोकों को , इनके पदों को सुनने में अनन्यता का हनन विल्कूल नहीं है । वल्कि इनमें भेद करना नामापराध है ।
सार यह कि भगवान के किसी भी रूप गुण लीला धाम में भेद का भाव रखना तथा उनके किसी भी वास्तविक संतो के प्रति भेद भाव करना नामापराध के श्रेणी में आता है ।
ऐसा करना श्री महाराज जी के आदेशों के खिलाफ है ।
इसलिए श्री महाराज जी ने स्पष्ट कहा है कि हमारा मन जब किसी भी भगवद् बिषय , भगवद् एरिया में , भगवद् प्राप्त महापुरुषों और भगवान के किसी भी स्वरूप में जाए तो यह अनन्यता है और जब हमारा मन इनके अलावा संसार में जाए , संसारिक बिषय में जाए , माया के एरिया में जाए तो अनन्यता का भंग होना माना जाता है ।
हां रूपध्यान अपने ईष्ट और गुरू का हीं करें तथा उनके बतलाए सिद्धांतों का हीं अनुपालन करना चाहिए।
लेकिन भगवद् बाते श्लोक दुसरे महापुरुष का सुनना गलत नहीं है ।
अरे आप में से बहुतों का मन दिन रात तो अधिक से अधिक समय घर में संसार के तरफ हीं रहता है , अनावश्यक TV serials , news papers , mobile में अनावश्यक बिषय में लगा रहता है , कुछ लोग तो भगवान राम में तथा कृष्ण में भेद मानते हैं , जैसे हीं राम कि कथा शुरू हुई , भगवान शंकर आदि कि बातें हुई कुछ दो चार लोग उठ के चल दिए बाहर ! जानते भी हैं कि भगवान शंकर , अर्जुन आदि समस्त वैष्णवों में श्रेष्ठ वैष्णव तथा गोपियों में श्रेष्ठ गोपी हैं ?
आप लोग यहां पर कौन सी अनन्यता का सिद्धांत का प्रदर्शन करते हैं ?
कुछ तो अनन्यता का ऐसा एक्टिंग करते हैं कि वो गोपी महाभाव के लेवल पर पहुंच चुके हैं ! अरे पहले पहले ठीक ठीक भक्त बनो , अनन्य बनो , इन सबका एक्टिंग , दिखावा , प्रदर्शन मत करो ।
अरे जानते भी हैं कि अनन्यता का सिद्धांत क्या है ?
इसलिए सबसे पहले अनन्यता किसे कहते वो समझे ठीक से समझें फिर नामापराध से बचेंगे वर्णा अनन्यता के नाम पर भगवद् जनों से भेद भाव करके उल्टा अपराध करके पाप कमाते रहेंगे ।
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